भ्रूण ने जब अलसायी-सी
आँखें अपनी खोली ,
गर्भाशय की दीवारों पर
प्रश्नों के अनगिन पोस्टर देखे !
दुनिया भर में इंसानों से
इंसानों की दूरी बढ़ती
पर्वत जैसे वर्तमान पर
नफ़रत की विष-बेल है चढ़ती !
भीतर भी है अन्धकार
बाहर भी अंधियारा है ,
भीतर लेकिन अन्धकार में
गर्भाशय की प्यार भरी गर्माहट है ,
बाहर रोटी के लिए
दबे पाँव पिछले दरवाजे
आते लोगों की आहट है !
देखो बाहर सारी दुनिया
भटक रही है
अंधियारे में पता पूछते हुए सूर्य का ,
कहाँ है सूरज ? कहाँ सवेरा ?
उधर है सूरज ,इधर अन्धेरा !
यहाँ सवालों की दुनिया में
अंधियारा ही अंधियारा है ,
इसीलिए तो भ्रूण को अपना
गर्भाशय ही प्यारा है !
स्वराज्य करुण
अच्छी पंक्तिया लिखी है ........
ReplyDeleteइसे पढ़े और अपने विचार दे :-
क्यों बना रहे है नकली लोग समाज को फ्रोड ?.
यहाँ सवालों की दुनिया में
ReplyDeleteअंधियारा ही अंधियारा है।
बहुत गंभीर चिंतन कविता के रुप में।
सवाल तो गर्भाशय में भी थे पर अंधेरे की वज़ह से भ्रूण नें उन्हें देखा ही नहीं होगा ! उसे बाहर के उजियालों के साथ वाले अन्धेरे से भय क्यों हुआ ? ये भय उजियालों से था कि अंधेरों से ? या कि उनके गडमड हो जाने से ?
ReplyDeleteप्रकृति के वाक्यविन्यास में 'अल्पविराम' की जगह 'पूर्णविराम' लगाने की बात भ्रूण के मन में आई भी तो कैसे ? आगे के शब्द खुरदरे ही सही पर उन्हें पढ़ना होगा !
कविता में प्रकटित प्रेम प्रकृति की भाषा / बिम्बों और व्याकरण के विरुद्ध सा लगता है !
भीतर भी है अन्धकार
ReplyDeleteबाहर भी अंधियारा है ,
भीतर लेकिन अन्धकार में
गर्भाशय की प्यार भरी गर्माहट है
बहुत गहन चिंतन है इस रचना में ...
००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००००.कविता,मार्मिक, विचारोत्तेजक। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteबदलते परिवेश में अनुवादकों की भूमिका, मनोज कुमार,की प्रस्तुति राजभाषा हिन्दी पर, पधारें
आप सब की आत्मीय टिप्पणियों का हार्दिक स्वागत. त्वरित प्रतिक्रिया के लिए आभार.
ReplyDeleteचर्चा मंच के साप्ताहिक काव्य मंच पर आपकी रचना 5-10 - 2010 मंगलवार को ली गयी है ...
ReplyDeleteकृपया अपनी प्रतिक्रिया दे कर अपने सुझावों से अवगत कराएँ ...शुक्रिया
http://charchamanch.blogspot.com/
बाऊ जी,
ReplyDeleteविलक्षण सोच!
आशीष
--
प्रायश्चित
बहुत सुन्दर और सारगर्भित प्रस्तुति।
ReplyDeleteगंभीर चिंतन - उम्दा रचना.
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