दिन उगता है और ढल जाता है
आदमी को आदमी छल जाता है !
चेहरों के समीकरण हल करने में
बेकार एक-एक पल जाता है . !
किसी भी मौसम का भरोसा नहीं
गिरगिट -सा रंग बदल जाता है !
एक रोटी मिलती है आज के लिए
सवाल फिर कल तक टल जाता है !
जाने क्या होगा फिर सोचते हुए
वक़्त का ये काफिला निकल जाता है !
- स्वराज्य करुण
आपका पोस्ट सराहनीय है. हिंदी दिवस की बधाई
ReplyDeleteअशोक जी ! आपकी उत्साहवर्धक त्वरित
ReplyDeleteटिप्पणी के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद.
पर्यावरण की रक्षा के लिए आपने
ग्राम-चौपाल में बच्चों के नाम पत्र लिख कर
बड़ों को भी कुछ करने की प्रेरणा दी है .
आप स्वयं बच्चों के बीच पहुँच रहे हैं .
आपका यह अभियान ज़रूर रंग लाएगा .
हिन्दी-दिवस पर आपको और ब्लॉग-जगत के
सभी दोस्तों को हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
एक रोटी मिलती है आज के लिए
ReplyDeleteसवाल फिर कल तक टल जाता है !
आपके सभी अशआर मायने लिए हुए हैं...
बहुत सच्ची और गहरी बात कह रहे हैं..
सचमुच बहुत पसंद आए हैं...
हृदय से धन्यवाद आपका...
पता नहीं क्यों ? चेहरों के समीकरण हल करने वाले मुद्दे को वक़्त की बर्बादी मानने के लिए अपना दिल राज़ी नहीं हुआ !
ReplyDeleteशेष सारी कविता अच्छी लगी !
स्वप्न मंजूषा 'अदा' जी और अली साहब को उनकी प्रेरक टिप्पणियों के
ReplyDeleteलिए दिल की गहराइयों से बहुत-बहुत धन्यवाद .
एक रोटी मिलती है आज के लिए
ReplyDeleteसवाल फिर कल तक टल जाता है!
-क्या बात है, बहुत उम्दा ख्याल!
बहुत अच्छी प्रस्तुती
ReplyDeleteरचना जी और उड़न तश्तरी के समीर जी को
ReplyDeleteउनकी टिप्पणियों के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
ali g se sahmat.
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