(१)
आंसुओं की खामोशी में , कोलाहल के बीच जिंदगी ,
उगा रही है फसल दर्द की ,खून-पसीना सींच ज़िंदगी !
जानवरों की तरह उम्र की गाड़ी में हम फंदे हुए हैं,
पर्वत लदे हुए हैं इस पर ,भार उमर भर खींच जिंदगी !
पत्थर ढोते हुए पहाड़ों पर से देखो चला काफिला
गुजर रही है धीरे-धीरे कभी ऊंच और नीच जिंदगी !
कौन सुनेगा तेरी पीड़ा ,अपने में मशगूल यहाँ सब
होठों पर रख ले तू उंगली ,मत ज़ोरों से चीख जिंदगी !
छीन ले जा कर उन हाथों से , कैद हैं जिनमे तेरे सपने ,
किन्तु समय के इस शहर में मांग कभी मत भीख जिंदगी !
छीन ले जा कर उन हाथों से , कैद हैं जिनमे तेरे सपने ,
किन्तु समय के इस शहर में मांग कभी मत भीख जिंदगी !
(२)
उलझनों का फैला आकाश जिंदगी,
बन गयी है एक ज़िंदा लाश जिंदगी !
निराशा के जंगल में चीख रहा सन्नाटा,
सो रही है सपनों के पास जिंदगी !
दूर कहीं उम्र के जल रहे हैं गाँव ,
कैसे बचाएं हम आवास जिंदगी !
दौडती ज्यों बेतहाशा चाहतों की हिरणी,
मरीचिकाओं में है कैद प्यास ज़िंदगी !
पतझर के आकाश का मैं हूँ सितारा ,
मेरे नसीब में कहाँ मधुमास जिंदगी !
खुद को पहचानना भी मुश्किल है बहुत ,
आईने में सूरत की तलाश ज़िंदगी !
स्वराज्य करुण
दोनों ही शब्दचित्र बहुत सुन्दर है .....ज़िन्दगी जैसी अनबूझ पहेली को कितनी परिभाषाएँ दी है ....सभी भड़िया है
ReplyDeleteसादर
वाह भाई साहब
ReplyDeleteकौन सुनता है मेरी इन रिन्दों की महफ़िल में
यहाँ तो तरसती है बोलने को जुबान मेरी......
सुन्दर गजल है मीटर में फिट और शानदार हिट
बहुत-बहुत आभार.
ReplyDeleteaapki kavita ki tareef me mere paas shabd nahi hai. behad yatharth aur sundar chitran jindagi ka.
ReplyDeleteज़िन्दगी पर शब्दों की ऐसी बुनावट कम ही देखनें को मिलती है ! सुन्दर अभिव्यक्ति !
ReplyDeleteउम्दा लेखन के लिए आभार
ReplyDeleteआपकी पोस्ट ब्लॉग4वार्ता पर
Jindagi par bahut mukar shabd chitr.
ReplyDeleteबहुत अच्छी कविताएँ
ReplyDeleteआप सबकी आत्मीय टिप्पणियों के लिए ह्रदय से आभारी हूँ .
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