सच्चाई , अच्छाई और अहिंसा के पुजारी राष्ट्र -पिता महात्मा गांधी की जयन्ती से महज छत्तीस घंटे पहले मंदिर-मस्जिद के साठ बरस पुराने अदालती झगडे का एक सनसनी के साथ सुखद अंत निश्चित रूप से गांधी जी को एक सच्ची श्रद्धांजलि भी है . धर्म के नाम पर लड़ना-झगड़ना इक्कीसवीं सदी के इंसान को वैसे भी शोभा नहीं देता . लड़ाई अगर वाक्-युद्ध तक सीमित हो , तब भी चल जाए . लेकिन खून-खराबा तो किसी भी हालत में नहीं होना चाहिए . ज्ञान-विज्ञान के इस युग में आज की पीढ़ी ने इसे अच्छी तरह समझ लिया है कि और भी गम है ज़माने में इसके सिवाय . बेरोजगार युवाओं को रोजगार की चिंता , रोज़गार से लगे लोगों को अपनी रोजी-रोटी और नौकरी बचाने की चिंता, किसान को अपनी फसल की अच्छी कीमत की चिंता , मजदूर को दिहाड़ी की चिंता ,दलाल को शेयर की चिंता , अफसर को चेयर की चिंता , अमीर को एन-केन प्रकारेण और ज्यादा अमीर होने की चिंता और गरीब को अपनी गरीबी से ऊपर उठने की चिंता . कहने का मतलब यह कि हर तरफ से चिंतित आज के इंसान को अब ऐसे मुद्दे शायद किंचित भी नहीं सुहाते , जो उसकी ज़िंदगी के आर्थिक पहलुओं से ताल्लुक न रखते हों .
मंदिर-मस्जिद के विवाद पर अदालती फैसले से रंगे और कौमी-एकता की सुर्ख़ियों से सजे आज के अखबारों में एक ऐसी खबर भी थी , जिसने मुझे यह सोचने को मजबूर कर दिया कि विषमताओं से भरे इस समाज में सबसे आख़िरी पंक्ति का इंसान आखिर कब तक पहली पंक्ति में आ पाएगा ? जिस महान विभूति ने गरीबों के बदन में गरीबी के कारण कपड़े नहीं होने की घटना से व्यथित और विचलित होकर ज़िंदगी भर खुले बदन रहने का संकल्प लिया और उसे आजीवन निभाया, वतन की आजादी के आंदोलन के साथ मुफलिसों को गरीबी से आज़ादी दिलाने का सपना देखा और उस दिशा में बहुत कुछ किया भी , आज अगर वे इस खबर को पढ़ लेते कि देश के १०० सबसे अमीर भारतीयों की कुल संपत्ति तीन सौ अरब डालर तक पहुच गयी है ,कि फ़ोर्ब्स नामक पत्रिका में प्रकाशित दस सबसे अमीर भारतीयों की सूची में मुकेश अम्बानी सत्ताईस अरब डालर की संपत्ति के साथ सर्वाधिक अमीर कहलाने लगा है . तब अम्बानी समेत इन सभी अमीरजादों के बारे में साबरमती के उस महान संत की क्या प्रतिक्रिया होती ? केन्द्र-सरकार द्वारा वर्ष २००८-०९ में गठित अर्जुन सेनगुप्ता कमेटी की रिपोर्ट है कि देश में सतहत्तर प्रतिशत लोग प्रति दिन सिर्फ बीस रूपए से भी कम राशि में अपना गुज़ारा कर रहे हैं . ऐसे में सौ-दो सौ अमीरों की अरबों-खरबों की संपत्ति का दिन-दूना रात-चौगुना बढ़ना क्या देश के विकास की निशानी है ?
गरीबी -रेखा की श्रेणी में किसी तरह ज़िंदा रह कर जीवन की गाड़ी खींच रहे करोड़ों लोग आखिर इस रेखा को कब पार करेंगे ? मुझे तो लगता है कि यह गरीबी-रेखा नहीं ,बल्कि लक्ष्मण -रेखा है . गरीबी नामक सीता के लिए इसे पार करने की सख्त मनाही है .जबकि अमीरों की अमीरी को बाँधने के लिए कोई अमीरी-रेखा तय नहीं है ! शायद यही वज़ह है कि गरीब अपनी तयशुदा गरीबी की रेखा को लांघ तो नहीं पा रहा है , बल्कि उसके और भी पीछे जा रहा है , जबकि अरबों-खरबों के मालिक अमीर क्या कर रहे हैं , यह हम सब देख रहे है ! ऐसे में लाख टके का एक सवाल यह है कि गरीबी की लक्ष्मण -रेखा की तरह अमीरी की लक्ष्मण-रेखा कब तय होगी और इसे तय कौन करेगा ? जिस दिन हम इसका जवाब खोज लेंगे ,शायद उस दिन महात्मा गांधी का एक बड़ा सपना हकीकत में बदल जाएगा और देश की तस्वीर को भी बदल देगा , लेकिन सवाल यह भी है कि वह दिन आखिर आएगा कब ?
स्वराज्य करुण
हम प्रार्थना करें कि वह दिन जल्दी ही आये और बापू के आत्मा को सच्ची शांति प्राप्त हो ।
ReplyDeleteआप सबकी त्वरित आत्मीय टिप्पणियों के लिए ह्रदय से धन्यवाद.
ReplyDeleteधर्म के नाम पर लड़ना-झगड़ना इक्कीसवीं सदी के इंसान को वैसे भी शोभा नहीं देता .
ReplyDeleteबिलकुल सच कहा आपने ....अब वो समय आगया है जब मानवता को ही सबसे बड़ा धर्म माना जाए और ऐसा हो जाने पर सारे झगड़े स्वत समाप्त हो जाएंगे ....बहरहाल निश्चित रूप से ये सकारात्मक अंत बापू को बहुत बड़ी श्रद्धांजलि है .....इसके अलावा जो विवरण आपने दिया वाकई सोचने पर मजबूर कर देता है .....आभार
अच्छा आलेख !
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteमंदिर-मस्जिद के विवाद पर अदालती फैसले से रंगे और कौमी-एकता की सुर्ख़ियों से सजे आज के अखबारों में एक ऐसी खबर भी थी , जिसने मुझे यह सोचने को मजबूर कर दिया कि विषमताओं से भरे इस समाज में सबसे आख़िरी पंक्ति का इंसान आखिर कब तक पहली पंक्ति में आ पाएगा ? जिस महान विभूति ने गरीबों के बदन में गरीबी के कारण कपड़े नहीं होने की घटना से व्यथित और विचलित होकर ज़िंदगी भर खुले बदन रहने का संकल्प लिया और उसे आजीवन निभाया, वतन की आजादी के आंदोलन के साथ मुफलिसों को गरीबी से आज़ादी दिलाने का सपना देखा और उस दिशा में बहुत कुछ किया भी , आज अगर वे इस खबर को पढ़ लेते कि देश के १०० सबसे अमीर भारतीयों की कुल संपत्ति तीन सौ अरब डालर तक पहुच गयी है ,कि फ़ोर्ब्स नामक पत्रिका में प्रकाशित दस सबसे अमीर भारतीयों की सूची में मुकेश अम्बानी सत्ताईस अरब डालर की संपत्ति के साथ सर्वाधिक अमीर कहलाने लगा है . तब अम्बानी समेत इन सभी अमीरजादों के बारे में साबरमती के उस महान संत की क्या प्रतिक्रिया होती ?
ReplyDeleteस्वराज्य करुण भाई !
इन पंक्तियों को अपने लक्ष्य तक पहुंचना चाहिए। हृदय परिवर्तन के सिद्धांत की नींव रखनेवाले बापू का शायद यह सपना भी पूरा हो जाए।
This comment has been removed by the author.
ReplyDeleteराम-रहीम की जन्म भूमि के झगडों में ही उलझे सब ,
ReplyDeleteकौन झाँकने जाए किसके घर का चूल्हा कच्चा है !
जाति-धर्म के भेद-भाव में पढ़े-लिखे भी बहक गए
इससे तो अनपढ़ रह जाना मित्र बहुत ही अच्छा है !
बहुत सुन्दर करुण भाई!!
आज भी वही अंदाज हैं आपके।
बधाई!!!
गद्य की पोस्ट पर कविताई पर प्रतिक्रिया देखकर चौंकिएगा नहीं।
ReplyDeleteजब गरीबी की रेखा तय कर ली गयी तो अब आवश्यकता है कि अमीरी की रेखा भी तय की जाय। सही है।
ReplyDeleteइससे पहले तो देश में लोगों की तिजोरी में जमा काला धन निकालना जरुरी है। कुछ लोगों के पास ही देश का धन जाकर ठहर रहा है। इसलिए गरीबी और अमीरी का अंतर बढ रहा है। आर्थिक असंतुलन स्पष्ट दृष्टिगोचर रहा है। देश की जनता को आवाज उठाना चाहिए। आज इस विषय पर गंभीर रुप से सोचने की आवश्यकता है।
गरीबी -रेखा की श्रेणी में किसी तरह ज़िंदा रह कर जीवन की गाड़ी खींच रहे करोड़ों लोग आखिर इस रेखा को कब पार करेंगे ? मुझे तो लगता है कि यह गरीबी-रेखा नहीं ,बल्कि लक्ष्मण -रेखा है . गरीबी नामक सीता के लिए इसे पार करने की सख्त मनाही है
ReplyDeleteबहुत सही बात ..
"शायद उस दिन महात्मा गांधी का एक बड़ा सपना हकीकत में बदल जाएगा और देश की तस्वीर को भी बदल देगा !"
ReplyDeleteगांधीजी का सपना तो अपना नहीं हो पाया , गांधी जयंती पर गरीबी की लक्ष्मण -रेखा की तरह अमीरी की लक्ष्मण-रेखा तय करने का 'स्वराज्य' का सपना सच हो जाये यही है हमारी शुभकामना !
अच्छा आलेख ! बहुत -बहुत धन्यवाद ! !
बहुत विचार परक लेख भाई. आभार.
ReplyDeleteसार्थक चिंतन !!
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteलाख टके का प्रश्न..गरीबी की लक्ष्मण -रेखा की तरह अमीरी की लक्ष्मण-रेखा कब तय होगी और इसे तय कौन करेगा ?
ReplyDelete..भारतीय परिदृष्य में आय और खर्च की लक्ष्मण रेखा निर्धारित ही होनी चाहिए...आयकर का ढांचा ऐसा बनाया जा सकता है कि इसके बाद की सम्पूर्ण आय करयोग्य होगी.सिर्फ इच्छा शक्ति का अभाव है। जिन्हें करना है वे अकूत धन के स्वामी हैं।
आप सबको आत्मीय टिप्पणियों के लिए धन्यवाद. यह भी अनुरोध है कि आप भी अपने ब्लॉग पर इस बारे में कुछ ज़रूर लिखें. शायद उन लोगों तक बात पहुंचे, जो सम्पन्नता की लक्ष्मण रेखा तय कर सकते हैं .
ReplyDeleteआदरणीय सर,मेरी समझ में,कुछ हद तक,ये बात तो आती है कि गरीबी रेखा होनी चाहिए,पर अमीरी की रेखा... मुझे लगता है की अमीरी की कोई रेखा क्यूँ होनी चाहिए? अमीरी की रेखा बनाना मतलब लोगों को अपनी पूरी क्षमता से प्रयास कर उन्नति के शिखर पर पहुँचने से रोकना होगा. लोगों की गरीबी दूर करने की सोच अच्छी है,पर अमीरों की अमीरी दूर करने की कोशिश से क्या हासिल होगा? होगा बस इतना की हमारे देश में एक अमीर की संख्या घट जायेगी और एक गरीब की संख्या बढ़ जायेगी. अब ये देश को अमीर बनाने का कोई तरीका नहीं है की जो पूंजी उत्पन्न करे, उसे पूंजी उत्पन्न करने से रोका जाए? हमें अमीरों के प्रति अपनी सोच को बदलना पड़ेगा, तो ही हम अमीर ह़ो पायेंगे. अमीरों से ये कोई नहीं पूछता की आपने संपत्ति कैसे बनाई? आप अपनी समस्या से बड़े कैसे बने जबकि हजारों गरीब लोग अपनी समस्या के सामने बौने हैं ? आपने किन मुश्किलों का सामना किया और कैसे उसका हल ढूँढा अपनी अमीर बनने की यात्रा में ? ham kaam ki baat nahi puchhte, aur jo kuchh sampatti arjit kar rahe hain, unko bhi kaise roken, ye sochte hain. ab desh kaise ameer banega? punah, jiske upar saraswati ki kripa hoti hai, uske upar lakshmi aur durga ki swayamev kripa ho jaati hai. ye ham achchhi tarah se jaan len ki ham bahut kuchh nahi jaantay aur hame bahut kuchh seekhna padega , tabhi hamari aarthik dasha sudhregi. hamari buri aarthik sthiti kay liye hamari agyaanta jimmedaar hai, isme kisi ameer ka adhik dosh nahi, hamara hi dosh jyaada hai. hamen dand hamari agyaanta kaa mil raha hai , aur kuchh nahi. saadar-BALMUKUND
ReplyDeleteघटना और परिस्थितियां किस तरह व्याख्या को प्रभावित करती हैं, समझने का प्रयास कर रहा हूं, लेकिन सार्थक टिप्पणियों ने तो और भी गंभीर सवाल खड़े किए हैं. विचार-प्रेरक पोस्ट की बधाई.
ReplyDelete