Monday, September 4, 2023

(पुस्तक-चर्चा ) न्यूनतम शब्दों में अधिकतम कहने की हिम्मत रखती ये क्षणिकाएँ

(आलेख -स्वराज्य करुण) यह एक सच्चाई है कि दुनिया के प्रत्येक मनुष्य और यहाँ तक कि प्रत्येक जीव का जीवन क्षणभंगुर होता है। मेरी शुभकामना है कि सभी स्वस्थ रहें और दीर्घायु हों ,शतायु हों ,लेकिन इस हक़ीक़त से भला कौन इनकार कर सकता है कि अगले पल या अगले क्षण क्या होगा ,इसे कोई नहीं जानता । फिर भी एक बेहतर कल या सुखद भविष्य की आशाओं के साथ ,नई सुबह की उम्मीदों के साथ छोटे -छोटे और बड़े-बड़े सुखों और दुःखों की गठरी लेकर हम सब जिये चले जाते हैं। इस क्षणभंगुर जीवन की बड़ी -से बड़ी बातों को कुछ ही क्षणों में अपनी छोटी-छोटी क्षणिकाओं के माध्यम से बड़े सहज लेकिन प्रभावी ढंग से ,बड़ी ख़ूबसूरती से लिखना और कह देना शिवानंद महान्ती की एक बड़ी ख़ूबी थी। वे छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में स्थित पिथौरा कस्बे के निवासी थे।श्रृंखला साहित्य मंच ,पिथौरा की ओर से उनका पहला कविता -संग्रह 'संशय के बादल ' वर्ष 2018 में प्रकाशित हुआ था । उसमें भी उनकी अधिकांश रचनाएँ क्षणिकाओं के रूप में हैं । महासमुंद जिले में एक कर्मठ सामाजिक कार्यकर्ता के रूप में भी उनकी पहचान और प्रतिष्ठा थी। हिन्दी कविता की क्षणिका-विधा के सिद्धहस्त और सशक्त हस्ताक्षर के रूप में छत्तीसगढ़ के साहित्यिक परिदृश्य में वह बड़ी तेजी से अपनी पहचान बना रहे थे। तभी दुर्भाग्यवश 11 अगस्त 2022 को रक्षाबंधन के पवित्र दिवस पर पिथौरा में सड़क हादसे में गंभीर रूप से घायल होने के बाद लगभग सौ किलोमीटर दूर राजधानी रायपुर के एक निजी अस्पताल में जीवन के लिए संघर्ष कर रहे थे। लेकिन तीसरे दिन यानी 14 अगस्त2022 को उन्होंने इस दुनिया को अलविदा कह दिया। ऐसा लगता है कि इस भयानक हादसे के साथ उनका हमसे सदैव के लिए बिछुड़ना भी कुछ ही क्षणों में हुआ। हम सब व्यथित हॄदय से कह सकते हैं कि देखते ही देखते यह सब 'कुछ ही क्षणों में ' घटित हो गया। इस हृदयविदारक हादसे में उनके निधन के लगभग एक वर्ष बाद उनकी क्षणिकाओं का यह संकलन 'कुछ ही क्षणों में' आपके सामने है। हालांकि उनके इस दूसरे संकलन में इस शीर्षक से उनकी कोई क्षणिका नहीं है । उनकी अब तक उपलब्ध कविताओं और क्षणिकाओं में भी इस शीर्षक से लिखी कोई रचना नहीं मिली है , लेकिन अपनी बातों को 'कुछ ही क्षणों में ' लिख देने और कह देने का उनका अभिव्यक्ति-कौशल संकलन की इन क्षणिकाओं में झलकता है, इसीलिए इस संग्रह का सम्पादन करते हुए मैंने इसका शीर्षक 'कुछ ही क्षणों में' दिया है । शिवानंद के साथ हुए जानलेवा सड़क हादसे ने मुझे भी बेहद विचलित और व्यथित करते हुए जीवन की क्षणभंगुरता का अहसास करवाया। मुझे लगा कि इंसान के साथ कुछ ही क्षणों में क्या से क्या हो जाता है !
शिवानंद की ये क्षणिकाएँ हमें उनसे जुड़ी अनेकानेक अमिट स्मृतियों से भी जोड़ती हैं। यह संग्रह उनकी प्रथम पुण्यतिथि के अवसर पर प्रकाशित हो रहा है। काश ! वे अपने जीवन-काल में स्वयं के इस दूसरे कविता -संग्रह (क्षणिका-संग्रह) को प्रकाशित होता हुआ देख पाते। लेकिन नियति ने उन्हें हमसे सदैव के लिए छीन लिया । मेरा मानना है कि साहित्य मनुष्य के मनोभावों की शाब्दिक अभिव्यक्ति है। कहानी ,उपन्यास ,निबंध और कविता भी साहित्य की अलग-अलग विधाएँ है। कविता हिन्दी साहित्य के क्रमिक विकास में गीत ,ग़ज़ल मुक्त छंद और अतुकांत कविता जैसे अलग -अलग रूपों में हमारे सामने आती रही है। पिछले कुछ दशकों में कविता का एक नया रूप 'क्षणिका'के रूप में प्रकट हुआ है। कोई भी सच्चा कवि स्वाभाविक रूप से भावुक होता है। वह अपने समय और समाज में घटित तरह -तरह की घटनाओं से भी प्रभावित होता है। अन्याय ,अत्याचार और सामाजिक विसंगतियों से आहत एक सच्चे कवि से कविता भावनाओं के आवेग में ही लिखी जाती है। मेरे विचार से किसी एक क्षण की भावुकता में रची गयी कोई छोटी कविता ही 'क्षणिका'होती है। अपने आस-पास के परिवेश से प्रभावित कवि में यह भावुकता क्षण भर में आती है ,तब अपनी भावुकता के इस क्षणिक उफान में कवि के शब्द 'क्षणिका' के रूप में अभिव्यक्त होते हैं ,जो पाठकों को विषय-वस्तु पर देर तक कुछ न कुछ सोचने के लिए मज़बूर कर देते हैं। शिवानंद महान्ती की इन क्षणिकाओं को भी हमें इसी नज़रिए से देखना और समझना चाहिए। इनमें व्यंग्य भी है और करुणा भी । समय और समाज की सच्चाइयों के बारे में न्यूनतम शब्दों में अधिकतम कह देने की हिम्मत शिवानंद की क्षणिकाओं में देखी जा सकती है। यह उनकी क्षणिकाओं की एक बड़ी ताकत भी है ,जिसे हम 'कुछ ही क्षणों में' शीर्षक से छपे इस संग्रह में महसूस कर सकते हैं। ।संग्रह में शामिल शिवानंद की क्षणिकाएँ हमें मानवीय संवेदनाओं से जोड़ती हैं। संग्रह में उनकी 40 क्षणिकाएँ शामिल हैं। उनकी अधिकांश क्षणिकाएँ हमारे समाज में हो रही व्यथित कर देने वाली विसंगतिपूर्ण हलचल की ओर पाठकों का ध्यान आकर्षित करती हैं । ये क्षणिकाएँ कवि बिहारी की रचना "बिहारी सतसइ' के इस दोहे को चरितार्थ करती हैं ,जिसमें वे कहते हैं- सतसइया के दोहरे ,ज्यों नावक के तीर देखन में छोटे लगें ,घाव करें गंभीर । आजकल के छल-प्रपंच की सियासी तिजारत को देखकर शिवानंद महान्ती के भीतर का कवि आहत भी है और आक्रोशित भी । वह उस समाज की बात कहता है ,जिसका मन इन विसंगतियों को देखकर खौल रहा है और निराशा के अंधेरे में सुख की संभावनाओं को टटोल रहा है । इसकी बानगी 'निराशा के अंधेरे में शीर्षक उनकी इस क्षणिका में देखिए - कदम जो कभी टिकते नहीं थे , अब जम गए हैं अंगद के पैरों की तरह ! दिन जो गुज़र जाते थे देखते ही देखते , बमुश्किल गुज़र रहे है वक़्त को देखते -देखते! उम्मीद की किरणों का विशाल बरगद के पीछे लुकाछिपी का खेल चल रहा है! छल -प्रपंच की सियासी तिज़ारत को देखकर हम मन ही मन खौल रहे हैं , निराशा के अंधेरे में सुख की संभावनाओं को टटोल रहे हैं। महँगाई से परेशान जनता की ओर से अपनी एक बहुत छोटी क्षणिका में कवि की गुजारिश है कि बारिश तमाम मुसीबतों का साथ इस महँगाई को भी बहा कर ले जाए -- मुसीबतें सारे जहाँ की ले जाओ , ऐ बारिश ,महँगाई को बहा कर ले जाओ! कवि छत्तीसगढ़ शासन द्वारा महासमुंद जिला जेल के लिए मनोनीत अशासकीय संदर्शक भी रहे हैं।उस दौरान समय -समय पर जेल विजिट करते समय उन्होंने जेल के बाहर बाहर अपने बन्दी परिजनों से मिलने आए लोगों के चेहरों के भावों को ध्यान से पढ़ा और उनकी मनोदशा को दिल की गहराइयों से महसूस भी किया । यह सब 'जेल के बाहर' शीर्षक उनकी इस क्षणिका में प्रकट हुआ है - याचना ,उद्विग्नता, उत्सुकता, कुंठा , कुछ समय का ही है हालाँकि ठहराव, अलग -अलग चेहरों के अलग-अलग भाव ! संभावनाओं और आशंकाओं के वातायन में चकरघिन्नी-सा उलझा हुआ अशांत मन ! मैंने देखे जेल के बाहर प्रतीक्षा रत बंदियों के अनेक परिजन ! कवि आर्थिक विषमता के इस युग मे पैसों के अभाव में अस्पतालों में दम तोड़ते मरीजों और बारिश के अभाव में सूखती फसलों के बीच किसानों की वेदना से भी व्यथित है । उसकी यह पीड़ा इस क्षणिका में प्रकट होती है -- दवाइयों के अभाव में अस्पतालों में दम तोड़ते मरीजों के परिजनों की वेदना जैसी ही होती है बारिश के अभाव में सूखते खेतों में दम तोड़ती फसलों के साथ किसानों की वेदना ! वह कवि ही क्या ,जो आम जनता की तरह आज के निराशाजनक माहौल से व्यथित न हो ? शिवानंद की क्षणिकाओं में जनता की यह व्यथा उभर कर आती है। अपनी बहुत छोटी -सी इस क्षणिका में उन्होंने लिखा है -- इधर हमारी राष्ट्रभक्ति ख़तरे में पड़ जाती है, उधर पेट्रोलियम पदार्थों की कीमतें बढ़ जाती हैं ! कवि शिवानंद आज की सियासत में बेशर्मी की हद तक व्याप्त फूहड़ता से भी बेहद विचलित है वह 'बेशर्म सियासत की नग्नता ' शीर्षक अपनी क्षणिका में कहते हैं - शर्मसार कर रही है बयानों की अशोभनीयता, सवालों के तिलस्म में उलझ गयी है सच्चाई की विश्वसनीयता ! पक्ष और विपक्ष के पुतलों में लग रही है रोज -रोज आग , दिखने लगी हम्माम के बाहर भी बेशर्म सियासत की नग्नता ! कवि शिवानंद ने स्वयं कोरोना की महामारी को झेला था। संग्रह में शामिल उनकी 40 क्षणिकाओं में से 13 क्षणिकाएँ वर्ष 2020-21 के कोरोना काल की त्रासदी से जूझती दुनिया पर केन्द्रित हैं ,जिनमें से कुछ में कवि का अपना दर्द भी छलक उठता है ,जबकि 10 क्षणिकाओं का संकलन उनके प्रथम कविता संग्रह'संशय के बादल' से भी किया गया है । शिवानंद महान्ती अब हमारे बीच नहीं हैं। उन्हें इस भौतिक संसार से गए एक साल देखते ही देखते 'कुछ ही क्षणों में' बीत गया । लेकिन हम जैसे उनके चाहने वालों को लगता ही नहीं कि वे अब दुनिया में नहीं हैं ।फिर भी हक़ीक़त तो हक़ीक़त है। उनका जाना कुछ ही क्षणों में हुआ जो सबको व्यथित कर गया। उनकी पहली पुण्यतिथि (14 अगस्त 2023 ) को ध्यान में रखकर श्रृंखला साहित्य मंच ने महान्ती परिवार के सहयोग से इस क्षणिका संग्रह का प्रकाशन किया था ,लेकिन कुछ धार्मिक मान्यताओं और रीति रिवाजों के अनुसार परिजनों ने उनकी पहली बरसी का कार्यक्रम उनके गृहनगर पिथौरा में 2 सितम्बर 2023 को रखा और इसी अवसर पर उनके क्षणिका -संग्रह का विमोचन भी हुआ। वरिष्ठ साहित्यकार जी. आर. राना विमोचन समारोह में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए। अध्यक्षता छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ भाषा विज्ञानी डॉ. चित्तरंजन कर ने की ।विशेष अतिथि के रूप में साहित्य अकादमी छत्तीसगढ़ के अध्यक्ष ईश्वर सिंह दोस्त और रायपुर के वरिष्ठ पत्रकार पूर्णचन्द्र रथ उपस्थित थे। विमोचन समारोह पिथौरा स्थित गुरु तेगबहादुर सभा-भवन में हुआ ,जहाँ पिथौरा क्षेत्र सहित सम्पूर्ण महासमुंद जिले के अनेक साहित्यकारो और साहित्य प्रेमी प्रबुद्धजन बड़ी संख्या में शामिल हुए। -स्वराज्य करुण सम्पादक -'कुछ ही क्षणों में' श्रृंखला साहित्य मंच ,पिथौरा ********