आखिर इस पहाड़ से
कहाँ गयी हरियाली ,
जो कल तक उसकी बांहों में
फ़ैली हुई थी -धमनियों और शिराओं में
दौड़ते खून की तरह ?
कहाँ गए पेड़ ,कहाँ गई लताएं ?
किसने कर लिया एक समूचे
जंगल का अपहरण ?
कौन पी गया पहाड़ की धमनियों का
सारा खून ?
जवाब क्यों नहीं मिलता ?
मौन क्यों है मानसून ?
हवाएं दस्तक देकर लौट
जाती हैं-दरवाजे पर ,
खुलते नहीं द्वार , स्वागत में उठ कर
मुस्कुराते नहीं शिखर ,
कुछ झुकी हुई नज़र आ रही है
पहाड़ की कमर !
आखिर क्यों झुक रहा है पहाड़ ?
उसकी विशाल बांहों से निकली
नन्ही बिटिया की तरह चंचल नदी भी
अब इतनी खामोश , इतनी वीरान ,
जैसे आम जनता के अरमान !
किसका था फरमान ,
जिसने छीन ली झरने की संगीत भरी हँसी
और एक मासूम पहाडी मुस्कान ?
पहाड़ क्या अब होगा नहीं आबाद ,
खामोश नदी क्या फिर नहीं सुनाएगी
अपना सुमधुर कल-कल नाद ?
दोस्तों ! ऐसा होगा ज़रूर ,
लेकिन पहले खोज कर तो लाएं उसे
जिसने छीनी पहाड़ की हरियाली .
जिसने किया जंगलों को बर्बाद .
हम सब मिलकर करेंगे उसका हिसाब ,
इतिहास में लिखेंगे उसका भी अपराध !
- स्वराज्य करुण
सुन्दर कविता ! सार्थक चिंता !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता के माध्यम से आपने बहुत सार्थक सवाल उठाएं है .....प्राकृतिक असंतुलन के दुष्परिणाम जो नज़र आरहे है , उनके मद्देनज़र आपकी चिता व्यर्थ नहीं है !
ReplyDeleteआपको सपरिवार श्री कृष्णा जन्माष्टमी की शुभकामना ..!!
बड़ा नटखट है रे .........रानीविशाल
जय श्री कृष्णा
जिसने छीनी पहाड़ की हरियाली .
ReplyDeleteजिसने किया जंगलों को बर्बाद .
हम सब मिलकर करेंगे उसका हिसाब ,
बहुत सुन्दर कविता !
एक हजार से अधिक स्कूली बच्चों ने लिया पर्यावरण बचाने का संकल्प
http://ashokbajaj99.blogspot.com/
paryavaran par dhyaan na dekar hum apne hi pair par kulhaadi maar rahe hain. behad sundar kavita
ReplyDelete