अपने इस गीत से पहले मेरी यह गुजारिश है आपसे -
दुआ करो गीत ऐसा गाने की नौबत न आए ,
उसकी सखी-सहेली बन कोई सियासत न आए !
हर चमन में बहारों का मौसम हँसता-खिलता हो ,
रंग-बिरंगे फूलों के चेहरों पे दहशत न आए !
अब पेश है यह गीत ,जो १९९३ के मंदिर-मस्जिद विवाद से निर्मित खौफनाक माहौल की याद दिलाता है -
पूजा के पावन पर्वत पर !
सूर्योदय से पहले ही अब हो जाती है शाम यहाँ ,
कैसी तेरी दुनिया मेरे मौला ,मेरे राम यहाँ !
धर्म-ध्वजा के नाम देखो चमक रहे हैं चाकू
पूजा के पावन पर्वत पर चढ़ गए चोर -डाकू !
मानवता की अस्मत लुट गयी, देश हुआ बदनाम यहाँ ,
कैसी तेरी दुनिया मेरे मौला ,मेरे राम यहाँ !
कल थे जो सुख-दुःख के साथी आज हुए क्यों अनजाने ,
कौन ज़हर के बीज बो रहा , फ़ुरसत किसे है पहचाने !
पथरीली मूरत की खातिर मचा है कत्ले-आम यहाँ ,
कैसी तेरी दुनिया मेरे मौला, मेरे राम यहाँ !
बच्चे तुझको ढूंढ रहे हैं सड़कों- कूड़ेदानो में
मै भी तुझको ढूंढ रहा फटेहाल इंसानों में !
लेकिन उनका कहना है तू बसा अवध के धाम यहाँ ,
कैसी तेरी दुनिया मेरे मौला ,मेरे राम यहाँ !
कब निकलेगा तू अवध की खून सनी दीवारों से
कब निकलेगा तू मज़हब के घुटन भरे गलियारों से !
इस दुनिया को प्रेम-प्यार के कब देगा पैगाम यहाँ ,
कैसी तेरी दुनिया मेरे मौला ,मेरे राम यहाँ !
स्वराज्य करुण
Veri nice and impressive, Thanks useful article.
ReplyDeleteहमारे पास इतना धर्म तो है की हम एक दुसरे से नफरत कर सकें,पर इतना नहीं की एक दूसरे से प्यार कर सकें.किसी ने मुझे ठीक ही कहा था कि वास्तव में मूर्खता ब्रह्म है. जैसे ब्रह्म सर्वव्यापक है,वैसी ही मुर्खता भी व्यापक रूप से व्याप्त है. समझदारी हम सभी में कम ही दिखाई देती है. तभी तो हम लड़ते हैं,एक दूसरे से मजहब के नाम पर. दुनिया बेहतर बन सकती है यदि हम अपना दिमाग और अपनी उर्जा मूर्खतापूर्ण बातों में न लगाकर स्वयं को और दुनिया को बेहतर बनाने में लगायें. ये मुर्खता ही तो है की जिस ईश्वर को हम सर्वव्यापक मानते हैं,जिसको हमने कभी देखा नहीं, जिसको शायद किसी मकान कि जरुरत नहीं, उसके लिए अलग अलग डिजाइन का घर बनाने के लिए हम एक दूसरे से लड़ते हैं और ....-सादर , बालमुकुन्द
ReplyDeleteआप सभी की आत्मीय टिप्पणियों के लिए बहुत-बहुत आभार.
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