(१)
खामोश आदमी
अंगड़ाइयों में लीन है मदहोश आदमी
फांसी पे चढ़ रहा है निर्दोष आदमी !
जो कुछ भी हो रहा है ,वह तो साफ़ -साफ़ है
फिर भी न जाने क्यों है खामोश आदमी !
मय्यसर नहीं कपड़े किसी को लाज ढांकने,
घूमता है शान से वो सफेदपोश आदमी !
लो और तेज़ हो गयी नाखूनों की धार
शिकंजे में शेर के दबा खरगोश आदमी !
महंगाई के तूफ़ान में उड़ गयी अमन की बातें .
आंसुओं का दिखावा है अफ़सोस आदमी !
(२)
दूर बहुत हैं सपने
फूलों में छुपा के नागफनी यारों
दोस्तों ने की दुश्मनी यारों !
उफ़ , कितनी आग है इस धूप में
कल तक जो थी गुनगुनी यारों !
नींद से आज बहुत दूर हैं सपने
ज़िंदगी से दूर ज़िन्दगी यारों !
भीतर से कितना भयभीत यहाँ
आदमी से आज आदमी यारों !
बिक रहे संबोधनों के इस शहर में
संवेदना भी हो गयी अजनबी यारों !
इंसानियत के खून का प्यासा है आदमी ,
फैलती नहीं फिर भी सनसनी यारों !
- स्वराज्य करुण
वियोगी होगा पहला कवि,आह से उपजा होगा गान. समाज के कड़वे सत्यों का परिचय कराती हुई सुन्दर कवितायेँ. ये पंक्तियाँ बताती हैं की इसको लिखने वाले व्यक्ति का ह्रदय कितना संवेदनशील है. संवेदनापूर्ण ह्रदय का व्यक्ति ही ऐसी पंक्तियाँ लिख सकता है. पर जाने क्यूँ मुझे ऐसा लगता है की हम निराश न हों और बेहतर समाज के निर्माण का प्रयास करते रहें, तो कुछ तो दुनिया बदलेगी .पुनः इतनी बेहतरीन और दिल को छू लेने वाली पंक्तियों के लिए आपको मेरी ओर से सादर शुभकामनाएं और बधाई.
ReplyDeleteआदमी के भीतर का जानवर अभी मरा नहीं है !
ReplyDeleteहर तरफ हर जगह बेशुमार आदमी
ReplyDeleteफिर भी तनहाइयों का शिकार आदमी
दोनों प्रस्तुतियां बहुत उम्दा है ....बधाई
यहाँ भी देखे
http://kavyamanjusha.blogspot.com/
http://anushkajoshi.blogspot.com/
प्रेरक टिप्पणियों के लिए आप सबको बहुत-बहुत धन्यवाद .
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