बच्चों की मुस्कान है गायब ,
फूलों की पहचान है गायब !
दुनिया की भीड़ भरी बस्ती में,
हैं लोग बहुत, इंसान है गायब !
सीने में तलवार घोंप कर,
हाथों के निशान हैं गायब !
चिकने-चौड़े राज-पथों पर ,
सच का तो सम्मान है गायब !
भोगी अब भगवान हो गया ,
रोगी के पंछी -प्राण हैं गायब !
गाँव उजड़े , नगर बस गए ,
भूमि-पुत्र नादान हैं गायब !
मन की बात कहूं भी कैसे ,
मन का तो मेहमान है गायब !
-स्वराज्य करुण
कृपया इतनी अच्छी कविताएं न लिखें । हमें जलन होती है ।
ReplyDeleteवाह ! वाह ! वाह ! वाकई बेहतरीन गज़ल है !
बहुत सुन्दर लिखा है आज का सच्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर रचना , ...!!!...एक शानदार और सच को कहती हुई ग़ज़ल ,,,,,लाजवाब !!!
ReplyDelete, शब्दों के इस सुहाने सफ़र में आज से मैं भी आपके साथ हूँ , इस उम्मीद से की सफ़र शायद दोनों के लिए कुछ आसान हो .....मिलते रहेंगे
अथाह...
!!!
विवेक जी , वंदना जी और राजेंद्र जी को उनकी
ReplyDeleteस्नेहपूर्ण टिप्पणियों के लिए बहुत-बहुत धन्यवाद .
आपकी सृजनशीलता को मानना पड़ेगा ! आपनें गायब में से क्या क्या उजागर कर दिया :)
ReplyDeleteअली साहब !आपकी टिप्पणी मेरे लिए
ReplyDeleteमूल्यवान धरोहर है. आभार .
वाह स्वराज भैया, अली साहब ने सही कहा है। गायब का सुंदर इस्तेमाल किया है आपने।
ReplyDeleteढेर सारी शुभकामनाएं-मेल देखें।
aapki rachana padane ke baad mere prashansha ke shabd bhi gayab ho gae.....kyuki ye rachana prashansha se bhi upar hai.
ReplyDeletebahut sundar
अनुष्का
ललित जी और रानी विशाल जी को उनकी
ReplyDeleteआत्मीय टिप्पणियों के लिए ह्रदय से धन्यवाद .
rani vishaal k comment se puri tarah sahmat.
ReplyDeleteबहुत सुन्दर
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