आँगन भी अपने हैं , घर भी हैं अपने ,
ये गाँव अपने हैं , शहर भी हैं अपने .
उत्तर से दक्षिण , पूरब से पश्चिम
ये पाँव अपने हैं , सफ़र भी हैं अपने .
ये देश अपना है , ये अपनी धरती ,
हिमालय भी अपना, सागर भी हैं अपने
.
झीलों में नीली परछाई आसमान की
ये बांध ,नदी और नहर भी हैं अपने
.
देश की बगिया को आओ हम सँवारे
ये फूल और ये भ्रमर भी हैं अपने
.
मेहनत से सीचेंगे सपनों के खेतो को
जागरण के सारे प्रहर भी हैं अपने .
स्वराज्य करुण
ये गली कूचे बूत भी हैं अपने
ReplyDeleteये प्रेमील शहतूत भी हैं अपने
क्युं घुलती फ़िजा में बारुदी गंध
ये बाग औ चमन भी हैं अपने
बस युं ही चार लाईन आपको
समर्पित करने का मन हो गया।
आभार
अपनेपन का विस्तार अच्छा लगता है !
ReplyDeletebehad sundar kavita, behad sundar soch
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