ऐसा जादू जमा तुम्हारा मतलब के व्यापार से ,
बहुत कमाया बहुत बनाया मज़हब के व्यापार से !
पहले तो सौदागर जैसे आए हमारे देश में ,
फिर ले आए सात पीढियां सात समंदर पार से !
कुछ उत्तर कुछ दक्षिण में तो , कुछ पूरब कुछ पश्चिम ,
धरती का दम घुट जाए है अब तो इनके भार से !
भाई-भाई से बैर बढ़ा कर घर-आँगन में युद्ध कराया ,
भारत माँ के टुकड़े कर गए नफरत की तलवार से !
विष का पौधा रोपा तुमने हरियर आँचल सूख गया ,
निर्मम मौत मरी मानवता अपने हाहाकार से !
स्याह गर्भाशय में फिर भी एक नयी रचना की आशा ,
अपनी धड़कन तेज कर गयी शिशु की मधुर पुकार से !
स्वराज्य करुण
स्याह गर्भाशय में फिर भी एक नयी रचना की आशा।
ReplyDeleteअपनी धड़कन तेज कर गयी शिशु की मधुर पुकार से॥
वाह भाई साहब आज तो कमाल कर दिया।
उम्दा रचना के लिए आभार
कविता बहुत पसंद आई खासकर उसकी पृष्ठभूमि में मौजूद 'ख्याल' !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर कविता लिखा है आपने जो काबिले तारीफ़ है! बधाई!
ReplyDeleteविष का पौधा रोपा तुमने हरियर आँचल सूख गया ,
ReplyDeleteनिर्मम मौत मरी मानवता अपने हाहाकार से !
बहुत खूबसूरत ....
टिप्पणियों के लिए आप सबको ह्रदय से धन्यवाद .
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