Friday, December 31, 2010
(कविता ) कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
माटी के कण-कण में क्रंदन, चन्दन जैसी धूल कहाँ है ,
मायूसी के इस मौसम में कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
कहाँ हैं खुशबू, कहाँ हैं खुशियाँ , कहाँ नया संगीत है बोलो ,
विश्वास न हो तो इतिहास को देखो ,वर्तमान के पन्ने खोलो !
वही वचन है , वही भजन है , आवाज़ वही है भाषण की ,
वही रुदन है , वही चीख है, वही सीख है अनुशासन की !
भीख मांगते इंसानों की मीलों लम्बी कतार वही है ,
बरसों के इस अंधियारे में सुबह का इंतज़ार वही है !
कुछ चेहरों पर चर्बी चढ़ गयी और अनगिनत चेहरे सूखे ,
कुछ लोगों की भरपूर रसोई और अनगिनत लोग है भूखे !
सड़कों पर यहाँ बिखरा-बिखरा इंसानों का रक्त वही है ,
केवल करवट बदली इसने ,यह पुराना वक्त वही है !
नए साल का यह दिखावा , फिर भी तो हर साल आता है ,
चूल्हे की बुझी-बुझी राख पर चुटकी भर उबाल आता है !
-- स्वराज्य करुण
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वही वचन है , वही भजन है , आवाज़ वही है भाषण की ,
ReplyDeleteवही रुदन है , वही चीख है, वही सीख है अनुशासन की !
सब कुछ वही है ...
लेकिन समय अपनी गति से चल रहा है।
बिलकुल सही कहा आपने .....लेकिन समय का पहिया तो अपनी गति से चलता ही है !
ReplyDeleteहर पल यही है दिल की दुआ आपके लिए
खुशियों भरा हो साल नया आपके लिए
महकी हुई उमंग भरी हो हर इक सुबह
चाहत के गुल से पथ हो सजा आपके लिए
चुटकी भर उबाल भी मानीखेज हो जाता है.
ReplyDeleteसत्य को दिखती सुन्दर रचना ...
ReplyDeleteनव वर्ष की शुभकामनायें
सत्य का आइना दिखाती सुन्दर और प्रभावशाली रचना .. नव वर्ष की हार्दिक सुभकामनाये .
ReplyDeleteसार्थक रचना के साथ नए वर्ष का आगाज करते हैं।
ReplyDeleteशुभकामनाएं
बेहद खूबसूरत प्रस्तुति।
ReplyDeleteनव वर्ष की हार्दिक शुभकामनायें।
आपके आगमन और सौजन्य टीप के लिए सादर धन्यवाद.
ReplyDeleteआईने की तरह सत्य का बयान करती इस रचना के लिए आभार. नव वर्ष हितकारी हो यही सद्कामना है...