जीवन के जलने से पहले धड़कन में आग लगा गए ,
हँसते-गाते मदमाते मधुवन में आग लगा गए !
बाहर -बाहर प्यार की बातें , दिल में नफरत का प्याला,
होठों पर ले प्रेम तराने गुंजन में आग लगा गए !
अभी -अभी देखा था उनको इस जंगल में मौज मनाते ,
आए थे वन-भोज मनाने , वन में आग लगा गए !
मस्ती में दिन काट रहे हैं ,अब वे बस्ती से जाकर ,
खेल-खेल में बस्ती के आंगन में आग लगा गए !
दिखा एक प्रतिबिम्ब दानवी कल जब उनने देखा दर्पण ,
तभी तो अपनी खीज मिटाने दर्पण में आग लगा गए !
हिम्मत नहीं किसी में इतनी रोक उन्हें सवाल उछाले ,
क्यों वे मेहनतकश लोगों के जीवन में आग लगा गए !
बूँद-बूँद जो पानी बेचें , तिनकों की भी करें तिजारत ,
कुछ ऐसे ही लोग यहाँ चंदन में आग लगा गए !
वह माँ जिसने नौ जन्मों तक झेल दुखों को उन्हें उगाया
झोंक उसे भी हाय आग में वतन में आग लगा गए !
बूँद-बूँद जो पानी बेचें , तिनकों की भी करें तिजारत ,
ReplyDeleteछ ऐसे ही लोग यहाँ चंदन में आग लगा गए !
sundar abhivyakti
बहुत खूबसूरती से अपनी बात कही है
ReplyDeleteबहुत सच्ची और अच्छी अभिव्यक्ति !!
ReplyDeleteजबरदस्त आग है, शब्दों में और चित्र में भी.
ReplyDeletebahut sundar hai aap ki kriti ,shubhakamna
ReplyDeleteहर व्यक्ति एक हाथ में माचिस और दूसरे हाथ में पेट्रोल लेकर घूम रहा है . किसी न किसी को फायर ब्रिगेड बनना ही पड़ेगा , सुन्दर रचना .
ReplyDeleteटिप्पणियों के लिए आप सभी को बहुत-बहुत धन्यवाद .
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