आलेख : स्वराज करुण
मानस मर्मज्ञ और छत्तीसगढ़ के वरिष्ठ साहित्यकार स्वर्गीय डॉ. बलदेवप्रसाद मिश्र को आज उनकी पुण्यतिथि पर विनम्र नमन । उनका जन्म 12 सितम्बर 1898 को राजनांदगांव में हुआ था। अपने जन्म स्थान में ही लगभग 77 वर्ष की अपनी गरिमापूर्ण जीवन यात्रा को उन्होंने 4 सितम्बर 1975 को चिर विश्राम दे दिया ।
उन्हें 'तुलसी दर्शन ' के अपने इस शोध प्रबंध पर वर्ष 1939 में नागपुर विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की उपाधि प्रदान की । डॉ. मिश्र ने अपने जीवन काल में लगभग 100 किताबें लिखीं । भर्तृहरि के 'श्रृंगार शतक ', और 'वैराग्य शतक ' का उनके द्वारा किया गया भावानुवाद इन्हीं शीर्षकों से वर्ष 1928 में प्रकाशित हुआ। महाकाव्य 'कौशल किशोर ' का प्रकाशन वर्ष 1934 में ,मुक्तक संग्रह 'जीवन संगीत '1940 में और एक और मुक्तक संग्रह 'साकेत संत' का प्रकाशन वर्ष 1946 में हुआ।डॉ. मिश्र द्वारा रचित ग्रंथ ' मानस के चार प्रसंग ' वर्ष 1955 में छपा ,जबकि 'गाँधी गाथा' का प्रकाशन महात्मा गाँधी के जन्मशती वर्ष 1969 में हुआ। उनके लिखे नाटकों में 'शंकर दिग्विजय ' भी उल्लेखनीय है। उनकी रचनाओं और पुस्तकों की एक लम्बी सूची है ।
डॉ. मिश्र की हाई स्कूल तक शिक्षा राजनांदगांव में हुई। उन्होंने नागपुर के हिस्लाप कॉलेज से वर्ष 1918 में बी.ए.और वर्ष 1920 में मनोविज्ञान में एम.ए. तक शिक्षा हासिल की। नागपुर से ही उन्होंने वकालत की डिग्री ली।कुछ समय तक रायपुर में वकालत करने के बाद वे रायगढ़ रियासत के राजा चक्रधर सिंह के आमंत्रण पर वहाँ चले गए। वर्ष 1923 से 1940 तक उन्होंने रायगढ़ रियासत के न्यायाधीश ,नायब दीवान और दीवान के पद पर अपनी सेवाएं दी। इसी दरम्यान वे रायगढ़ और खरसिया नगरपालिकाओं के अध्यक्ष भी रहे। बाद में राजनांदगांव नगरपालिका के अध्यक्ष निर्वाचित हुए।उन्होंने कुछ समय तक रायपुर नगरपालिका के उपाध्यक्ष के रूप में भी जन सेवा के दायित्वों का बड़ी कुशलता से निर्वाह किया।
स्वर्गीय डॉ. बलदेवप्रसाद मिश्र, नागपुर विश्वविद्यालय में हिन्दी विभाग के मानसेवी अध्यक्ष , खैरागढ़ स्थित इंदिरा कला एवं संगीत विश्वविद्यालय के उपकुलपति , हैदराबाद तथा बड़ोदा विश्व विद्यालयों के आमंत्रित प्राध्यापक और मध्यप्रदेश हिन्दी साहित्य सम्मेलन के अध्यक्ष भी रह चुके थे। छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव शहर को अनेक महान साहित्यिक विभूतियों की कर्मभूमि होने का गौरव प्राप्त है। डॉ. बलदेवप्रसाद प्रसाद मिश्र ,डॉ. पदुमलाल पुन्नालाल बख़्शी और गजानन माधव मुक्तिबोध भी इन्हीं महान साहित्यिक रत्नों में शामिल थे। इन तीनो कालजयी साहित्यकारों की स्मृतियों को चिरस्थायी बनाए रखने के लिए छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा वहाँ त्रिवेणी संग्रहालय परिसर बनवाया गया है।
आलेख : स्वराज करुण