Monday, December 27, 2010
(कविता ) जनता भुगते ब्याज !
तीन माह में कम हो जाएगी ,
नहीं हुई,
छह महीने और इंतज़ार कीजिए ,
कर लिया ,
कुछ भी नहीं हुआ ,
साल भर में कम हो जाएगी .
चलो मान लेते हैं.
झेल लेते हैं एक साल की तो बात है !
देखते ही देखते निकल गए पांच साल ,
बीमारी कम नहीं हुई ,
अखबारों के रंगीन पन्नों पर
छोटे परदे की रंगीन दुनिया में ,
सज - धज कर
बयान देते मुस्कुराते
चेहरों की आँखें
ज़रा भी नम नहीं हुई !
आज भी कहते देखे और
सुने जाते हैं- नहीं है कोई
जादू की छड़ी हमारे पास,
कीजिए हम पर विश्वास ,
हम तेजी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्था
वाले राष्ट्र हैं !
दुनिया भर में है
महंगाई का मर्ज़ !
जनता को याद रखना चाहिए
अपना फ़र्ज़ !
अभी तो कॉमन -वेल्थ और
स्पेक्ट्रम के नाम चढ़ा हुआ है
देश पर अरबों-खरबों का क़र्ज़ !
इसे चुकाना है तो
जनता को ही
उठाना होगा इसका भारी बोझ ,
तब तक बढ़ती रहेगी महंगाई
इसी तरह हर साल , हर रोज !
सत्तर रूपए किलो दाल
और अस्सी रूपए किलो प्याज ,
देश की गाड़ी हांक रहे
अर्थ-शास्त्री भी ढूंढ नही पाए
क्या है इसका राज़ ,
मूल-धन का
घोटाला करे कोई और
जनता भुगते उसका ब्याज !
स्वराज्य करुण
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घोटाला करे कोई और
ReplyDeleteजनता भुगते उसका ब्याज ...
How true !
.
कभी गम के, कभी खून के और कभी-कभी प्याज के आंसू.
ReplyDeleteएक वि्धान सभा चुनाव सिर्फ़ और सिर्फ़ प्याज के मुद्दे पर लड़ा गया।
ReplyDeleteजीतने वाले प्रत्याशी भी हार गए।
माल खाए गंगा राम और मार खाए मनबोध
मूल-धन का
ReplyDeleteघोटाला करे कोई और
जनता भुगते उसका ब्याज !sahi kaha aapne indian leader bahut dhele ho gaye.janta ka bhojh badta hi jaa raha hai. bahut badiya karun ji
सटीक लिखा है...
ReplyDeleteभुगतती तो जनता ही है!
तो क्या जनता ब्याज भी नहीं देगी ?
ReplyDeleteजनता को तो भुगतना ही होगा
ReplyDeleteबिल्कुल सटीक बात कही है…………जनता का ही तो दोष है जो इन्हे वोट देकर सिर पर बैठाया है। भुगतना तो पडेगा ही।
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