(आलेख : स्वराज करुण )
क्या इतिहास सिर्फ़ वंश परम्परा से चले आए राजे -महाराजाओं का होना चाहिए ? आम जनता का इतिहास आख़िर कब लिखा जाएगा ? कहाँ है गरीबों के जीवन संघर्षों का इतिहास ? एक अदद कच्चे -पक्के मकान , दो वक्त के भोजन और तन ढँकने के लिए कुछ कपड़ों के जुगाड़ में लगे साधारण लोगों का इतिहास कहाँ है ?
पुराने राजाओं , महाराजाओं ,बादशाहों , शहंशाहों की शौर्य गाथाएं भी बड़ी अज़ीब लगती हैं । उनकी लड़ाइयों के कारण भी बड़े हास्यास्पद हुआ करते थे । जैसे -उनमें से किसी के कानों में अगर किसी दूसरे राज्य के राजा ,महाराजा की बेटी के अप्रतिम सौंदर्य की सूचना पहुँच जाए तो वह पहले तो उस राजा अथवा महाराजा को खबर भिजवाता था कि अपनी सुन्दर कन्या से मेरी शादी करवा दो ,या फिर युद्ध के लिए तैयार रहो । ऐसे अधिकांश मामलों में आक्रमण होना तय रहता था !
अपनी व्यक्तिगत मनोकामना की पूर्ति और आत्म संतुष्टि के लिए राजा अथवा महाराजा हजारों सैनिकों को युद्ध की आग में झोंक देता था । बचाव पक्ष भी हमले का प्रतिरोध करता था । भयानक संघर्ष होता था ।
बड़ी संख्या में दोनों पक्षों के सैनिक बेमौत मारे जाते थे । ये सैनिक गरीब परिवारों के होते थे । अपने मालिक याने कि राजा ,महाराजा के क्षुद्र स्वार्थ की बलिवेदी पर जो अपने मूल्यवान जीवन की आहुति दे देते थे । उनके परिवार बेसहारा हो जाते थे ।
अच्छा हुआ जो राजाओं ,महाराजाओं और बादशाहों ,शहंशाहों का ज़माना चला गया ,वर्ना उनकी शादियों के नाम पर कितने ही गरीब और गुमनाम सैनिकों की बलि चढ़ती रहती ।
जुए के खेल ने महाभारत करवा दिया । वह भी एक राजघराने के पारिवारिक झगड़े की वजह से हुआ , जिसमें असंख्य गरीब सैनिक मारे गए । छोटे - छोटे राज्यों के विस्तार के लिए भी राजाओं के बीच उनकी व्यक्तिगत महत्वाकांक्षाओं के कारण बड़ी - बड़ी लड़ाइयां हो जाती थी । उनमें मरने वाले सैनिक राजभक्त कहलाते थे , उनकी राजभक्ति के कारण उनके बच्चे अनाथ हो जाते थे । लेकिन इतिहास की इबारतों में तो ऐसे ही स्वार्थी राजाओं और सम्राटों की कथित ' वीर गाथाओं' का बोलबाला है । उनमें महिलाओं की वजह से हुए युद्धों और शिकार कथाओं के प्रसंग तो मिलते हैं ,लेकिन जनकल्याण का कोई उदाहरण नहीं मिलता ।
लगता है - हमारे इतिहास के पन्ने राजे - रजवाड़ों की बेकार की लड़ाइयों में मारे गए गरीब सैनिकों के खून से रंगे हुए हैं ।
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