Sunday, December 12, 2010
बेमौसम , बेरहम, बेमतलब बादल !
अगहन के इस मौसम में जब हर सुबह वन-उपवन और घर-आंगन में निर्मल नीले आकाश के नीचे गुनगुनी धूप की एक अलग ही रौनक होनी चाहिए , आज फिर सूरज को बादलों ने अपने आंचल में छुपा लिया है .जाड़े की सुबह बेरौनक लग रही है. थोड़ी देर के लिए धूप आयी , लेकिन कुछ मिनटों में आसमान पर सलेटी रंग के बादल छा गए. अभी दो दिन पहले ही बादल बेमौसम आकर बेरहमी से बरस गए थे . शहर वालों को धूप नही मिली और गाँवों में मेहनतकश किसानों के खेतों और खलिहानों में फसलों पर बर्बादी का पानी फिर गया . जरा याद करें - कभी इन्ही दिनों शहरों की भीड़ से दूर निकल कर गाँवों की ओर जाने पर आसमान कितना साफ़ -सुथरा दिखायी देता था और उसका गहरा नीला रंग भी कितना खिला-खिला लगता था , लेकिन .आज अगर अपने आस-पास देखें , नज़र उठाकर आकाश को निहारें तो क्या हमारा दिल स्वयं से ही यह सवाल नहीं करता कि आखिर कहाँ चला गया वह नील गगन और कहाँ चले गए उस पर उड़ते पंछी ?
छत्तीसगढ़ सहित देश के कई राज्यों में पिछले डेढ़ माह से मौसम कुछ ऐसा ही चल रहा है. बिन बुलाए मेहमान की तरह बादल आ जाते है. कहीं भी और कभी भी बरस जाते है. बेमौसम आकर बेरहमी से बरस जाने वाले बादलों से इन दिनों सभी परेशान हैं . इस बार तो पहली नवम्बर को भी बादल बेमौसम आए और बेमतलब बरस गए . छत्तीसगढ़ राज्य स्थापना की दसवीं साल-गिरह पर राज्योत्सव के रंगारंग कार्यक्रम रायपुर में एक सप्ताह से चल रहे थे. जिलों में भी तीन दिवसीय राज्योत्सव मनाया जा रहा था जनता में भारी उत्साह था ,लेकिन बेमौसम बादलों ने खूब परेशान किया. बादलों के आने का भला यह भी कोई वक्त है ? आषाढ़ में जाने कहाँ चले जाते हैं ये ? किसान की आँखें आकाश को निहारते -निहारते थक जाती हैं तब तो इनका दिल नहीं पसीजता ! समझ में नहीं आ रहा कि मानसून के दिनों में तो इनके दर्शन बड़ी मुश्किल से होते हैं और आज-कल ठण्ड के दिनों में बरसात होने लगती है.अगहन में आषाढ़ और सावन -भादों का नज़ारा ! बरसात में बेरुखी और जाड़े के मौसम में बेरहमी ? यह कुदरत का करिश्मा है , या ग्लोबल वार्मिंग का नतीजा ? जो भी है, कुछ तो उपाय करना होगा इनकी मनमानी पर ब्रेक लगाने के लिए ! अभी तो बस इतना ही ! बाकी फिर कभी !
स्वराज्य करुण
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
जी हाँ यह ग्लोबल वार्मिंग का ही नतीजा है,कुछ वर्ष पूर्व अगहन-पूस में प्रकृति ने ऐसा ही कहर बरपाया था ; तब मैंने छत्तीसगढ़ी में एक कविता लिखी थी जो पूरा याद नहीं .......
ReplyDeleteखेत उजड़गे ,
खार उजड़गे ;
सून्ना पड़ गे ब्यारा ;
अगहन-पूस के पानी ,
ते अईसे करे उजाड़ा .
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (13/12/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.uchcharan.com
कविताओं की बारिश के बीच यह रौशन पोस्ट. बादल पर इतने भी तोहमत ठीक नहीं.
ReplyDeleteटिप्पणियों के लिए आप सबका आभार. राहुल जी से कहना चाहूँगा कि तोहमत केवल बेमौसम आने वाले बादलों पर है. मानसून के साथ आने वाले मौसमी बादलों का तो हमेशा स्वागत है.
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना" साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
ReplyDeleteबहुत ही खुबसुरत रचना.......मेरा ब्लाग"काव्य कल्पना"at http://satyamshivam95.blogspot.com/ साथ ही मेरी कविताएँ हर सोमवार और शुक्रवार "हिन्दी साहित्य मंच" पर प्रकाशित....आप आये और मेरा मार्गदर्शन करे....धन्यवाद।
ReplyDelete