Monday, June 19, 2023

(आलेख) साहित्य और पत्रकारिता के इतिहास पुरुष पण्डित माधवराव सप्रे ; लेखक स्वराज्य करुण

आज 19 जून को उनकी जयंती छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता के युग प्रवर्तक साहित्यकार पण्डित माधवराव सप्रे को आज उनकी जयंती पर शत -शत नमन। उनका जन्म 19 जून 1871 -ग्राम पथरिया (जिला -दमोह)मध्यप्रदेश में और निधन23 अप्रैल 1926 को रायपुर (छत्तीसगढ़)में हुआ था। उन्होंने आज से 123 साल पहले 1900 में छत्तीसगढ़ के पेण्ड्रा (जिला -बिलासपुर) से अपने साथी रामराव चिंचोलकर के साथ मासिक पत्रिका 'छत्तीसगढ़ मित्र' का सम्पादन प्ररंभ करके , तत्कालीन समय के इस बेहद पिछड़े इलाके में पत्रकारिता की बुनियाद रखी। इस पत्रिका के प्रकाशक (प्रोपराइटर)थे छत्तीसगढ़ में सहकारिता आंदोलन के प्रमुख सूत्रधार और स्वतंत्रता संग्राम सेनानी रायपुर के वामन बलिराम लाखे । पत्रिका का मुद्रण रायपुर और नागपुर में हुआ।आर्थिक कठिनाइयों के कारण मात्र तीन साल में इसे बंद करना पड़ा । लेकिन यह पत्रिका छत्तीसगढ़ में पत्रकारिता की ऐतिहासिक बुनियाद बन गयी। सप्रेजी की ज़िंदगी का सफ़र महज़ 55 साल का रहा ,लेकिन अपनी कर्मठता और संघर्षशीलता के कारण इस अल्प अवधि में वह अपनी लेखनी से जनता के दिलों में छा गए। उनकी रचनाएँ हिन्दी साहित्य की अनमोल धरोहर हैं।
साहित्य और पत्रकारिता के इतिहास पुरुष सप्रेजी की लिखी ,'एक टोकरी भर मिट्टी ' को हिन्दी की पहली कहानी होने का गौरव प्राप्त है। सप्रे जी ने महान स्वतंत्रता सेनानी लोकमान्य पण्डित बालगंगाधर तिलक के प्रखर विचारों को हिन्दी भाषी लोगों में प्रचारित करने के लिए वर्ष 1907 में नागपुर से 'हिन्दी केसरी ' साप्ताहिक का सम्पादन और प्रकाशन प्रारंभ किया था। तिलकजी मराठी में साप्ताहिक अख़बार 'केसरी' निकालते थे। सप्रेजी को वर्ष 1908 में 'हिन्दी केसरी' में अंग्रेजी हुकूमत के ख़िलाफ़ क्रांतिकारी लेखों के कारण राजद्रोह के आरोप में भारतीय दंड विधान की धारा 124(ए)तहत गिरफ़्तार किया गया था। उनके साथ 'देशसेवक' समाचार पत्र के सम्पादक कोल्हटकर जी भी गिरफ़्तार हुए थे। सप्रेजी ने कई मराठी ग्रंथों का हिन्दी अनुवाद भी किया। इनमें लोकमान्य बालगंगाधर तिलक द्वारा मंडल(म्यांमार)की जेल में कारावास के दौरान रचित900 पृष्ठों का 'श्रीमद्भगवद्गीता रहस्य' भी शामिल है ,जो 1915 में छपा था। सप्रे जी ने 'गीता रहस्य' के नाम से इसका हिन्दी में अनुवाद किया ,जो 1916 में प्रकाशित हुआ। उन्होंने चिंतामणि विनायक वैद्य के मराठी ग्रंथ महाभारत के उपसंहार' का भी हिन्दी अनुवाद किया,जो 'महाभारत मीमांसा' शीर्षक से 1920 में छपा। सप्रे जी द्वारा अनुवादित मराठी कृतियों में समर्थ श्री रामदास रचित 'दासबोध' भी उल्लेखनीय है।नागपुर में सप्रेजी ने हिन्दी साहित्य को समृद्ध बनाने के लिए 'हिन्दी ग्रंथमाला' का भी प्रकाशन प्रारंभ किया था।। सप्रेजी को पुनः विनम्र नमन।- स्वराज करुण

Tuesday, June 13, 2023

जानलेवा साबित हो रहे हैं रेलिंग विहीन रोड डिवाइडर

इसमें दो राय नहीं कि सड़कें बहुत अच्छी बन रही हैं ,लेकिन कई इलाकों में फोर लेन और सिक्स लेन सड़कों पर डिवाइडरों में रेलिंग नहीं होने के कारण हर पल दुर्घटनाओं का खतरा बना रहता है। दरअसल इन डिवाइडरों में हरियाली के लिए झाड़ीनुमा पौधे लगाए जाते हैं , जिन्हें खाने के लिए आस- पास के गाँवों के मवेशी वहाँ आते -जाते रहते हैं। ये रेलिंग विहीन रोड डिवाइडर प्राणघातक साबित हो रहे हैं। कई सड़कों पर ये डिवाइडर ज़रूरत से ज़्यादा चौड़े बनवाए गए हैं। कई बार ये मासूम मवेशी थकान मिटाने के लिए उन रेलिंग विहीन डिवाइडरों की झाड़ियों की छाँव में बैठ जाते हैं। चाहे जो भी कारण हो , कई बार ये बेचारे मासूम जानवर सड़क पार करने के चक्कर में वाहनों से टकराकर घायल हो जाते हैं और उनमें से कइयों की मौत भी हो जाती है। इन मवेशियों से टकराकर कई वाहन भी गंभीर रूप से दुर्घटनाग्रस्त हो जाते हैं।फलस्वरूप उनके चालक और साथ बैठे यात्री भी गंभीर रूप से घायल हो जाते हैं। ऐसी दुर्घटनाएं विशेष रूप से रात के समय ज़्यादा होती हैं। कई बार कुछ लापरवाह किस्म के राहगीर भी शार्टकट के चक्कर में पैदल अथवा अपनी दोपहिया गाड़िया सहित इन डिवाइडरों को पार करते समय अचानक सामने आए वाहनों से टकरा कर घायल हो जाते हैं । इन हादसों से बचाव के लिए फोर लेन और सिक्स लेन की सड़कों के डिवाइडरों में दोनों तरफ रेलिंग लगवाने की ज़रूरत है। मेरा विनम्र निवेदन है कि मासूम पशुओं सहित आम जनता की जीवन रक्षा के लिए इस पर गंभीरता से विचार किया जाए और सड़क बनाने वालों को रेलिंग लगाने के सख़्त निर्देश दिए जाएँ। -स्वराज्य करुण

Friday, June 9, 2023

(पुस्तक -चर्चा )मंदिर सलामत है : हमारे सामाजिक परिवेश की कहानियाँ

शिवशंकर पटनायक की सैंतीसवीं किताब (आलेख : स्वराज करुण ) विभिन्न विधाओं की साहित्यिक रचनाओं की तरह कहानियाँ भी हमारे सामाजिक परिवेश में ही लिखी जाती हैं। उनका ताना -बाना हमारे समाज में होने वाली सुखद या दुःखद घटनाओं पर ही बुना जाता है। यह ताना -बाना कोई भी रचनाकार अपनी कल्पनाओं के धागों को यथार्थ के रंगों में रंगकर ही बुनता है। ऐसे अग्रणी रचनाकारों में छत्तीसगढ़ के शिवशंकर पटनायक भी शामिल हैं । वे इस प्रदेश के उन साहित्यकारों में से हैं , जो ग्रामीण परिवेश के निवासी हैं और महासमुंद जिले के पिथौरा जैसे छोटे -से गाँवनुमा कस्बे में रहकर समर्पित भाव से साहित्य की सेवा कर रहे हैं। उनकी साहित्य -साधना अर्ध -शताब्दी से भी अधिक समय से अनवरत जारी है। कहानियाँ ,निबंध और उपन्यास उनके लेखन की प्रमुख विधाएँ हैं। उनका नवीनतम कहानी संग्रह 'मंदिर सलामत है ' हाल ही में प्रकाशित हुआ है।यह उनकी सैंतीसवीं किताब है। अब तक 37 किताबों का लेखन और प्रकाशन साहित्य साधना के प्रति उनके समर्पण और उनकी असाधारण साहित्यिक प्रतिभा का सबसे बड़ा उदाहरण है। उनकी ताजातरीन किताब 'मंदिर सलामत है' कुल 10 कहानियों का संकलन है। संग्रह की पहली कहानी 'मंदिर सलामत है ' एक कस्बे मे हुए दो वैवाहिक आयोजनों पर लिखी गयी है। यहाँ मंदिर से लेखक का आशय घर-परिवार से है , जिसे सलामत रखना हम सबकी जिम्मेदारी है । रंग -भेद की सामाजिक बुराई को भी इसमें उकेरा गया है।
इन वैवाहिक आयोजनों में में से एक में नायिका सांवले रंग की होने के कारण समाज के कुछ लोग उसकी आलोचना करते हुए सगाई और विवाह को तोड़ने की कोशिश करते हैं, लेकिन सफल नहीं हो पाते और नेहा और प्रभाष का विवाह सम्पन्न हो जाता है । दूसरी घटना उस परिवार में घटती है ,जिसके मुखिया की पत्नी श्रीमती उर्मिला दास ने मिस्टर षड़ंगी की उच्च शिक्षित सहायक प्राध्यापिका बिटिया नेहा के काले रंग को लेकर सार्वजनिक रूप से प्रतिकूल टिप्पणी की थी। लेकिन वहीं जब उस परिवार की बेटी पूनम की शादी के दौरान कुछ लोग अफवाहों से प्रभावित होकर उस बेटी पर चरित्रहीनता का लांछन लगाते हैं और वैवाहिक अनुष्ठान में व्यवधान डालने का प्रयास करते हैं ,तब मिस्टर षड़ंगी की समझाइश पर ही पूनम का विवाह निर्विघ्न सम्पन्न हो जाता है। यहाँ लेखक ने इन दोनों घटनाओं का वर्णन आत्मकथ्य के रूप में किया है। लेखक को पूनम के पिता मिस्टर दास हाथ जोड़कर कहते हैं -- षड़ंगी साहब , आपने तो पूनम बिटिया का मंदिर बनाकर पुण्य अर्जित कर लिया, किंतु मैंने और मेरी पत्नी ने नेहा बिटिया का मंदिर ध्वंस कर जो पाप किया है , उसका प्रायश्चित हम किस प्रकार करेंगे? लेखक कहते हैं कि मैंने मिस्टर दास को आलिंगन में भरकर कहा -"आपको और आपकी धर्मपत्नी को नेहा को लेकर अपराध-बोध पालने की तनिक भी आवश्यकता नहीं है ,क्योंकि महाकाल महादेव की अति कृपा से उसका मंदिर सलामत है।" संग्रह की अन्य कहानियों में (1) अधिकारी (2)जोजवा (3)मेहरबानी का कर्ज (4)कर्म -दंड (5) दाऊजी (6) तुमने सही कहा था (7)कर्त्तव्य -बोध (8) आक्रोश और (9) चैती शामिल हैं। ये कहानियाँ भी हमारे सामाजिक परिवेश के इर्दगिर्द होने वाली घटनाओं को रेखांकित करती हैं । संग्रह की प्रत्येक कहानी में कोई न कोई सार्थक सामाजिक संदेश ज़रूर गूंजता है। शिवशंकर पटनायक के प्रकाशित अन्य कहानी संग्रहों में (1)पराजित पुरुष (2) प्रारब्ध (3) पलायन और (4) डोकरी दाई भी काफी चर्चित और प्रशंसित हैं। उनके अधिकांश उपन्यास पौराणिक पात्रों और घटनाओं पर आधारित हैं।इनमें महाभारत की पृष्ठभूमि पर आधारित (भीष्म प्रश्नों की शर-शैय्या पर (2)कालजयी कर्ण और (3) एकलव्य भी उल्लेखनीय हैं । उन्होंने महाभारत की प्रमुख पात्रव कुन्ती और रामायण की मंदोदरी पर भी उपन्यासों की रचना की है। रामायण के पात्रों पर आधारित 'अग्नि स्नान' सहित 'कोशल नंदिनी ' जैसे उनके उपन्यास भी काफी प्रशंसित रहे हैं।उनका उपन्यास 'अग्नि स्नान ' रामायण के खलनायक 'रावण ' के आत्मकथ्य पर आधारित है।शिवशंकर पटनायक ने छत्तीसगढ़ के लोक देवता करिया धुर्वा पर भी एक उपन्यास लिखा है। उनके सहित निबंध संग्रहों में (1) आप मरना क्यों नहीं चाहते (2) भाव चिन्तन और (3)मानसिक दशा एवं दर्शन सम्मिलित हैं। आलेख - स्वराज करुण

Monday, June 5, 2023

(आज विश्व पर्यावरण दिवस पर विशेष) लगातार टूटते -झुकते पहाड़ !-लेखक : स्वराज्य करुण

हरे -भरे पहाड़ लगातार टूट रहे हैं। उनके झरनों पर और उनकी कन्दराओं में रहने वाले वन्य जीवों पर संकट गहराने लगा है। आज पर्यावरण दिवस पर हमें इन टूटते ,झुकते पहाड़ों की भी चिन्ता करनी ही चाहिए । लेकिन आधुनिकता की सुनामी में वो तो टूटेंगे ही ,क्योंकि सीमेन्ट -कांक्रीट का मकान बनवाना अब शायद लोगों की मज़बूरी हो गयी है ।
खपरैल वाली छतों से हर बरसात में पानी टपकने का डर बना रहता है । हर साल मानसून आने से पहले खपरा पलटवाने का झंझट ! हालांकि पहले भी लोग खपरैलों से ढँके मकानों में ही रहते थे। लेकिन आज के दौर में वनों के निरंतर कटते जाने से वन्य प्राणी भोजन -पानी की तलाश में मनुष्यों की बस्तियों में मंडराने लगे हैं।ग्रामीण इलाकों में खपरैल की छतों पर बन्दरों का उपद्रव बढ़ने लगा है।जो अपनी उछल-कूद से खपरैलों को तोड़ -फोड़ देते है ,फिर कच्ची ईंटों और मिट्टी के मकानों पर जंगली हाथी यदाकदा धावा बोल देते हैं । इसके अलावा साँप -बिच्छुओं और अन्य ज़हरीले कीड़े -मकोड़ों के डर तथा आधुनिक जीवन - शैली की चाहत की वज़ह से भी लोगों में मिट्टी की मोटी दीवारों वाले मकानों से अरुचि होने लगी है ,जबकि ऐसे मकान गर्मियों में सुकून भरी ठंडक और ठंड के मौसम में गुनगुनी गर्मी का एहसास देते हैं। कई कारणों से मिट्टी के मकानों के प्रति लोगों दिलचस्पी कम हो रही है । इसके साइड इफेक्ट भी साफ़ दिखने लगे हैं । गर्मियों में सीमेंट -कांक्रीट के मकान किसी तन्दूर की तरह भभकते हैं और अचानक बिजली चली जाने से पँखे ,कूलर और एसी बन्द हो जाने के बाद कुछ समय के लिए उमस भरी यातना झेलनी पड़ती है । कांक्रीट बनाने के लिए चलने वाले क्रशर यूनिटों के आस -पास स्वाभाविक रूप से वायु प्रदूषण होता ही है ,जिसका दुष्प्रभाव मानव और पशु - पक्षियों के स्वास्थ्य और पेड़ - पौधों पर भी पड़ना स्वाभाविक है फिर भी ऐसे मकानों के प्रति अमीर -गरीब , सबमें आकर्षण बढ़ रहा है ।शहरों में खपरैलों की बिक्री अब नज़र नहीं आती । फलस्वरूप कुम्हारों की आमदनी कम हो रही है ,हालांकि वो मिट्टी के घड़े और गमले आदि बनाकर और बेचकर अपना और अपने परिवार का किसी तरह गुजारा कर रहे हैं । लोग अब खपरैल वाली नहीं ,बल्कि सीमेंटेड यानी लेंटर्ड छतों के मकान चाहते हैं । बहुत मज़बूरी में ही कोई खपरैल का मकान बनवाता है ,या उसमें रहता है । सोचने के लिए मज़बूर करने वाला सवाल ये है कि हमारे पूर्वजों ने तो खपरैल और मिट्टी के बने मकानों में पीढ़ियाँ गुज़ार दी , फिर हम क्यों अपने लिए सीमेन्ट -कांक्रीट का जंगल खड़ा करना चाहते हैं ,जो पर्यावरण के लिए भी घातक साबित हो रहे हैं ? पहाड़ टूटेंगे तो हरियाली और बारिश भी कम होगी ही । हमें कोई न कोई नया विकल्प सोचना होगा । *********

(आलेख) सुख - शांति के लिए अपने प्राकृतिक पर्यावरण को बचाइए -- स्वराज्य करुण

लेखक - स्वराज्य करुण) ) विश्व पर्यावरण दिवस आज हमें चीख़- चीख़ कर कह रहा है कि तेजी से तबाह हो रहे अपने प्राकृतिक पर्यावरण को बचा लो , फिर चाहे सामाजिक सांस्कृतिक और राजनीतिक पर्यावरण हो ,चाहे आर्थिक और औद्योगिक पर्यावरण या आपके भीतर का मानसिक पर्यावरण , हर तरह का पर्यावरण स्वच्छ सुंदर और सुरक्षित रहेगा । सुख ,शांति और समृद्धि चाहते हो तो अपने प्राकृतिक पर्यावरण को बचा लो। लेकिन दिक्कत यह है कि सब कुछ जानते ,समझते हुए भी इंसान पर्यावरण को दूषित कर रहा है और अपने साथ -साथ अपनी दुनिया को भी तबाही के रास्ते पर ले जा रहा है। पहाड़ों की हरियाली को नोच खसोट कर उनके नैसर्गिक सौंदर्य को नष्ट करने में अब शायद किसी को कष्ट नहीं होता। बढ़ती जनसंख्या ,बढ़ते शहरीकरण और तीव्र गति से फलते -फूलते औद्योगिक विकास की वजह से जल ,जंगल और ज़मीन ,तीनों आज गंभीर संकट में हैं। जंगल कट रहे हैं ,तो वहाँ रहने वाले पशु -पक्षियों का जीवन भी खतरे में पड़ गया है। नये जंगल लगाने की जरूरत है। देश में आज प्लास्टिक और पॉलीथिन का कचरा हमारे पर्यावरण के लिए एक बड़ी चुनौती बन गया है। शहरों के साथ साथ हमारे गाँव और कस्बे भी प्लास्टिक प्रदूषण के शिंकजे में है। अधिकांश लोग जानते हैं कि प्लास्टिक कचरे की रिसाइक्लिंग करके उसे दोबारा उपयोग में लाया जा सकता है ,सड़क निर्माण में प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल हो सकता है , लेकिन इंसान हर तरफ प्लास्टिक के डिब्बों बोतलों और पॉलीथिन की थैलियों का उपयोग करने के बाद उन्हें लापरवाही से इधर उधर फेंककर प्रदूषण फैलाने का अपराध कर रहा है । यहाँ तक कि अब तो हमारे महासागर भी इस प्रदूषण की चपेट में आ गए हैं। यह एक अच्छी पहल है कि भारत सरकार द्वारा देश के कई शहरों में प्लास्टिक इंजीनियरिंग संस्थान संचालित किए जा रहे हैं ,जहाँ युवाओं को इस विषय में प्रशिक्षण के साथ डिग्री /प्रमाणपत्र भी दिये जाते हैं। प्लास्टिक रिसाइकिलिंग में इन युवाओं की प्रतिभा का उपयोग करते हुए उन्हें रोजगार के अवसर दिए जा सकते हैं। अगर देश में कृषि उपजों के न्यूनतम समर्थन मूल्य की तरह प्लास्टिक कचरे की सरकारी खरीदी के लिए भी न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) घोषित हो और जगह जगह खरीदी केंद्र बना दिए जाएं तो जहाँ बड़ी संख्या में गरीबों को कुछ अतिरिक्त आमदनी हो सकती है ,वहीं हमारे चारों ओर प्लास्टिक और पॉलीथिन के बेतरतीब फैलते लाखों टुकड़े काफी हद तक साफ़ हो जाएंगे। दुनिया भर में कई देशों द्वारा समुद्र और ज़मीन के भीतर और हवा में किया जाने वाला परमाणु हथियारों का परीक्षण भी बढ़ते प्रदूषण का एक ख़तरनाक कारण बन गया है। पूरी दुनिया में परमाणु परीक्षणों और परमाणु हथियारों पर कड़ा प्रतिबंध लगा देना चाहिए। विगत एक साल से भी अधिक समय से जारी रूस -यूक्रेन युद्ध में चल रही भीषण बमबारी से जहाँ जन -धन की भारी तबाही हो रही है ,वहीं बमों और बारूदों से वहाँ हवा , पानी और ज़मीन भी प्रदूषित होती जा रही है। पर्यावरण और मानवता की रक्षा के लिए इस युद्ध को तत्काल रोका जाना चाहिए। ******************************