सच्चाई बंधक है झूठ के दरबार में
अस्मत नीलाम हुई आज भरे बाज़ार में !
देशभक्तों के पांवों में लगी जंजीर है ,
गद्दार घूम रहे चमचमाती कार में !
यह कैसा अंधेर है दुनिया में विधाता ,
चोरों को छूट मिली लूट के व्यापार में !
रंगीन परदे पर बेशर्मों की हँसी,
विज्ञापन खूब हैं हजारों-हज़ार में !
इधर फटे कपड़ों में घूम रही सीता ,
उधर शूर्पनखा है सोलह श्रृंगार में !
गाँव को तबाह कर बना रहे हैं शहर ,
हरियाली बदल रही दहकते अंगार में !
दलालों के दरवाजे हर मौसम दीवाली ,
नोटों की थप्पियाँ हर दिन त्यौहार में !
क
कोई प
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बेच रहे देश को आसान किश्तों में ,
ग्राहकों की कमी नहीं इस कारोबार में !
बिक जाएगा वतन देखते ही देखते ,
ध्यान अगर गया नहीं वतन की पुकार में red;"> - स्वराज्य करुण
वाह भाई साहब,
ReplyDeleteआज तो गजब कर दिया।
एक एक शेर, बब्बर शेर है।
किस किस पे दाद दूँ?
बात तो बिल्कुल सही कह रहे हैं।
ReplyDeleteसटीक बात ..अच्छी प्रस्तुति
ReplyDeleteसच की तस्वीर इतनी भयावह बन ही पड़ी है...
ReplyDeleteअच्छी प्रस्तुति!
सचमुच,ऐसी ही स्थिति है।
ReplyDeleteवतन की पुकार को सुनना, उस पर ध्यान देना सदैव जरूरी होता है.
ReplyDelete.
ReplyDeleteबेच रहे देश को आसान किश्तों में ,
ग्राहकों की कमी नहीं इस कारोबार में ...
A very realistic creation !
.
wah bandhu wah!
ReplyDeletekalam ko talwar banana hi hoga.
अपने आस पास के परिवेश की कटु सच्चाईयों से रूबरू कराती, मर्मस्पर्शी सुंदर रचना.आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
बड़ी जायज़ चिंता है आपकी ! पूर्णतः सहमत !
ReplyDeleteबहुत ही उम्दा ग़ज़ल लिखी है..खास आपके जानिब चंद पंक्तिया आपकी ग़ज़ल के लिए..
ReplyDeleteसोचने को मजबूर हो जाएगा हर कोई,
स्वराज तेरी इस करुण भरी गुहार में,
आलोक अन्जान
http://aapkejaanib.blogspot.com/