दूर -दूर तक नज़र न आए मंज़र क्यों बहारों के
जहाँ भी देखो बैनर -पोस्टर केवल ठेकेदारों के !
रंग-बिरंगे चैनल भी अब हाल चाल क्या बतलाएं
नारों में रंगी दीवार से लगते चेहरे हैं अखबारों के !
अदालतों से बरी हो रहे दौलत के भूखे कातिल भी
नीति,नीयत निर्णय सब कुछ हाथों में हत्यारों के !
अपना दर्द किसे बतलाएं ,सभी व्यस्त हैं अपनों में
इंतज़ार में सदियों से हम पीछे लम्बी कतारों के !
नेताओं के अभिनय से हैं भौचक सारे अभिनेता
गद्दारों की सेवा में लगे सब प्रहरी पहरेदारों के !
-स्वराज्य करुण