Friday, December 31, 2010
(कविता ) कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
माटी के कण-कण में क्रंदन, चन्दन जैसी धूल कहाँ है ,
मायूसी के इस मौसम में कहाँ हैं कलियाँ ,फूल कहाँ हैं ?
कहाँ हैं खुशबू, कहाँ हैं खुशियाँ , कहाँ नया संगीत है बोलो ,
विश्वास न हो तो इतिहास को देखो ,वर्तमान के पन्ने खोलो !
वही वचन है , वही भजन है , आवाज़ वही है भाषण की ,
वही रुदन है , वही चीख है, वही सीख है अनुशासन की !
भीख मांगते इंसानों की मीलों लम्बी कतार वही है ,
बरसों के इस अंधियारे में सुबह का इंतज़ार वही है !
कुछ चेहरों पर चर्बी चढ़ गयी और अनगिनत चेहरे सूखे ,
कुछ लोगों की भरपूर रसोई और अनगिनत लोग है भूखे !
सड़कों पर यहाँ बिखरा-बिखरा इंसानों का रक्त वही है ,
केवल करवट बदली इसने ,यह पुराना वक्त वही है !
नए साल का यह दिखावा , फिर भी तो हर साल आता है ,
चूल्हे की बुझी-बुझी राख पर चुटकी भर उबाल आता है !
-- स्वराज्य करुण
Thursday, December 30, 2010
(गीत) फिर ये नया साल कैसा है ?
सब कुछ वैसा का वैसा है.
फिर ये नया साल कैसा है.?
जिसके स्वागत में खड़े हैं
धन-पशुओं के होटल ,
जहाँ गरीबों के खून का
सब पीयेंगे बोतल !
मदिरा वालों का देखोगे
निर्मम माया जाल कैसा है ?
खूब जगमग-जगमग होगा
वहाँ अनोखा डांस-फ्लोर ,
जिस पर जम कर नाचेंगे
शहर के सफेद डाकू-चोर !
काले धंधे वालों के संग
सबका कदम-ताल कैसा है ?
लाखों-लाख रूपए उडेंगे
हत्यारों के हाथों से ,
रक्षक भी तो मोहित होंगे
मीठी-मीठी बातों से !
अफसर -नेता , माफिया का
मिला-जुला कमाल कैसा है ?
इनकी यारी -दोस्ती से
दहशत में है देश ,
इनके जादू से हो जाता
रफा-दफा हर केस !
सब तो हैं मौसेरे भाई ,
फिर कोई सवाल कैसा है ?
- स्वराज्य करुण
Tuesday, December 28, 2010
सच्चाई बंधक है - ( स्वराज्य करुण )
सच्चाई बंधक है झूठ के दरबार में
अस्मत नीलाम हुई आज भरे बाज़ार में !
देशभक्तों के पांवों में लगी जंजीर है ,
गद्दार घूम रहे चमचमाती कार में !
यह कैसा अंधेर है दुनिया में विधाता ,
चोरों को छूट मिली लूट के व्यापार में !
रंगीन परदे पर बेशर्मों की हँसी,
विज्ञापन खूब हैं हजारों-हज़ार में !
इधर फटे कपड़ों में घूम रही सीता ,
उधर शूर्पनखा है सोलह श्रृंगार में !
गाँव को तबाह कर बना रहे हैं शहर ,
हरियाली बदल रही दहकते अंगार में !
दलालों के दरवाजे हर मौसम दीवाली ,
नोटों की थप्पियाँ हर दिन त्यौहार में !
क
कोई प
&v>
बेच रहे देश को आसान किश्तों में ,
ग्राहकों की कमी नहीं इस कारोबार में !
बिक जाएगा वतन देखते ही देखते ,
ध्यान अगर गया नहीं वतन की पुकार में red;"> - स्वराज्य करुण
Monday, December 27, 2010
(कविता ) जनता भुगते ब्याज !
तीन माह में कम हो जाएगी ,
नहीं हुई,
छह महीने और इंतज़ार कीजिए ,
कर लिया ,
कुछ भी नहीं हुआ ,
साल भर में कम हो जाएगी .
चलो मान लेते हैं.
झेल लेते हैं एक साल की तो बात है !
देखते ही देखते निकल गए पांच साल ,
बीमारी कम नहीं हुई ,
अखबारों के रंगीन पन्नों पर
छोटे परदे की रंगीन दुनिया में ,
सज - धज कर
बयान देते मुस्कुराते
चेहरों की आँखें
ज़रा भी नम नहीं हुई !
आज भी कहते देखे और
सुने जाते हैं- नहीं है कोई
जादू की छड़ी हमारे पास,
कीजिए हम पर विश्वास ,
हम तेजी से बढ़ती अर्थ-व्यवस्था
वाले राष्ट्र हैं !
दुनिया भर में है
महंगाई का मर्ज़ !
जनता को याद रखना चाहिए
अपना फ़र्ज़ !
अभी तो कॉमन -वेल्थ और
स्पेक्ट्रम के नाम चढ़ा हुआ है
देश पर अरबों-खरबों का क़र्ज़ !
इसे चुकाना है तो
जनता को ही
उठाना होगा इसका भारी बोझ ,
तब तक बढ़ती रहेगी महंगाई
इसी तरह हर साल , हर रोज !
सत्तर रूपए किलो दाल
और अस्सी रूपए किलो प्याज ,
देश की गाड़ी हांक रहे
अर्थ-शास्त्री भी ढूंढ नही पाए
क्या है इसका राज़ ,
मूल-धन का
घोटाला करे कोई और
जनता भुगते उसका ब्याज !
स्वराज्य करुण
Sunday, December 26, 2010
(गज़ल ) बच्चों की मुस्कान में !
खुशनुमा सुबह, हसीन शाम बच्चों की मुस्कान में,
अमन का, प्यार का पैगाम बच्चों की मुस्कान में !
मंदिर-मस्जिद कहाँ -कहाँ खोजोगे भगवान को ,
घर में सारे तीरथ धाम बच्चों की मुस्कान में !
नदी के निर्मल पानी जैसी बहती कल-कल धाराएं
कभी नमस्ते ,कभी सलाम बच्चों की मुस्कान में !
चाँद दूज का आकर जब नील-गगन में मुस्काए,
तब दिखें कृष्ण - बलराम बच्चों की मुस्कान में !
कभी बरसता रिमझिम सावन भोली आँखों से ,
कभी जाड़ में गुनगुन घाम बच्चों की मुस्कान में !
खुदगर्जों की बस्ती में यारों घूम रहे हैं लाखों बेघर ,
जीवन का है सच संग्राम बच्चों की मुस्कान में !
छल-कपट के खौफनाक अंधियारे में डूबी दुनिया में
नादान नन्हीं किरण का नाम बच्चों की मुस्कान में !
- स्वराज्य करुण
Friday, December 24, 2010
(गीत) लहरों वाले झील-देश में !
नयनों में मुस्कान देख कर
कहने लगा मुझसे मन मेरा
लहरों वाले झील-देश में
आज हुआ है नया सवेरा !
दिल ही दिल उसने न जाने
उस दिन क्या कहना चाहा ,
मैंने अपने सपनों को तब
बार-बार सौ बार सराहा !
होठ हिले और फूल खिल गए ,
भौंरों ने भी चमन को घेरा ,
लहरों वाले झील -देश में
आज हुआ है नया सवेरा !
मैंने कहा था जाकर कह दो
उस पार नदी की लहरों से ,
हमें तो कदम-कदम पर साथी
लड़ना है पर्वत-पहरों से !
हम जीतेंगे संघर्षों में
मन में उम्मीदों का बसेरा ,
लहरों वाले झील-देश में
आज हुआ है नया सवेरा !
स्वराज्य करुण
Wednesday, December 22, 2010
दिन भी वैसे नहीं रहे !
- स्वराज्य करुण
हमसफ़र के हाथों में हमसफ़र का हाथ नहीं है ,
हमसफ़र के हाथों में हमसफ़र का हाथ नहीं है ,
दिन भी वैसे नहीं रहे , वैसी कोई रात नहीं है !
आपा-धापी की दुनिया में सबको कितनी जल्दी है ,
एक राह के सभी मुसाफिर, कोई किसी के साथ नहीं है !
इक-दूजे का दर्द न समझे, इक-दूजे की धड़कन भी ,
दौलत का ही सपना दिल में , इंसानी ज़ज्बात नहीं है !
रंग-बिरंगी दुनिया बिखरी मौसम की बेरहमी से ,
इस चमन के बादलों से फूलों की बरसात नही है !
हम भी जी-भर जी लेते जिनगानी लेकिन मुश्किल है ,
अपनी किस्मत में सुबह के सूरज की सौगात नही है !
चार दिनों के मेले में यारो कैसे-कैसे झमेले हैं ,
मिलना-जुलना सब कुछ है ,पहले जैसी बात नही है !
- स्वराज्य करुण Tuesday, December 21, 2010
कौन है असली 'भारत -रत्न ' ?
अखबारों में खबर है कि क्रिकेटर सचिन तेंदुलकर को देश का सर्वोच्च सम्मान 'भारत-रत्न' देने की मांग फिर उठने लगी है . यह हमारी भारत-माता का दुर्भाग्य नहीं तो और क्या है कि उसकी वर्तमान संतानें अपने उन महानं पूर्वजों को भूल गयी है , जिन्होंने उसे अंग्रेजों की गुलामी से आज़ाद कराने की लम्बी लड़ाई में अपने प्राणों का भी बलिदान कर दिया था . क्या झांसी की रानी लक्ष्मी बाई , अमर शहीद वीर नारायण सिंह , वीर सावरकर , लोक मान्य बाल गंगाधर तिलक, अमर शहीद भगत सिंह , चन्द्र शेखर आज़ाद , और नेता जी सुभाष चन्द्र बोस जैसे इस धरती के महान सपूत आज अपने ही देश के सबसे बड़े सरकारी सम्मान 'भारत-रत्न' के लायक नहीं हैं ?
सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेटर ने क्या देश के लिए कोई इतना बड़ा त्याग किया है, जिसकी तुलना इन महान स्वतंत्रता संग्रामियों और अमर शहीदों के बलिदानों से की जा सके ? मेरे विचार से एक क्रिकेटर के रूप में सचिन की जो भी उपलब्धियां हैं , वह उसके व्यक्तिगत खाते की हैं. . क्रिकेट में उसने करोड़ों -अरबों रूपए कमाए हैं. क्रिकेट उसके लिए और उस जैसे अनेक नामी-गिरामी क्रिकेटरों के लिए सिर्फ एक व्यवसाय है. , समाज-सेवा का माध्यम नहीं . वह देश को लूट रही बड़ी -बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापनों से भी करोड़ों कमा रहा है . राष्ट्र के निर्माण और विकास में आखिर उसका क्या योगदान है ? ऐसे व्यक्ति को अगर 'भारत-रत्न' दिया जाएगा तो मेरे ख्याल से यह भारत-माता का अपमान होगा . क्रिकेट अंग्रेजों का खेल है. उन अंग्रेजों का , जिन्होंने भारत को लम्बे समय तक गुलाम बना कर रखा था , जिन अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग में हमारे हजारों मासूम बच्चों , माताओं और आम नागरिकों को बंदूकों से छलनी कर दिया था .
यह उन अंग्रेजों का खेल है , जिन्होंने इस देश को कम से कम एक सौ वर्षों तक लूटने-खसोटने का खेल खेला और आज भी किसी न किसी रूप में उनका यह निर्मम खेल चल ही रहा है . ऐसे किसी अंगरेजी खेल के खिलाड़ी को आज़ाद मुल्क में 'भारत-रत्न ' से नवाजने का कोई भी प्रयास आज़ादी की लड़ाई के उन लाखों शहीदों का भी अपमान होगा ,जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के महान संघर्षों में जेल की यातनाएं झेलीं , और अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे और जिनकी महान शहादत की बदौलत आज हम लोकतंत्र की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं .
अब यह विचारणीय है कि हम भारत माता के अमर शहीदों को 'भारत-रत्न' मानते हैं या उन्हें जो किसी खेल को य फिर किसी और विधा को अपने व्यक्तिगत विकास ,व्यक्तिगत शोहरत और व्यक्तिगत दौलत बटोरने का ज़रिया बनाकर ऐश -ओ -आराम की जिंदगी जी रहे हैं ! आज़ाद मुल्क में ऐसे अलंकरण सिर्फ उन लोगों को दिए जाने चाहिए , जिन्होंने वास्तव में निःस्वार्थ भाव से देश और समाज को अपनी सेवाएं दी हैं, जिन्होंने अपनी किसी भी कला या प्रतिभा का इस्तेमाल व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए नहीं किया है. चाहे वे कोई साहित्यकार हों ,कवि हों , कलाकार हों , खिलाड़ी हों या फिर कोई और . मेरे विचार से ऐसे ही लोग सच्चे देश-भक्त और असली भारत -रत्न हैं ,जो अपने किसी भी हुनर को, ज्ञान को या अपनी भावनाओं को निजी लाभ-हानि से परे रख कर केवल देश और समाज के हित में काम करते हैं .व्यावसायिक नज़रिए से काम करके शोहरत और दौलत हासिल करने वालों को 'भारत-रत्न' या अन्य किसी राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित करना देश के साथ-साथ इन अलंकरणों की गरिमा के भी खिलाफ होगा .
स्वराज्य करुण
सचिन तेंदुलकर जैसे क्रिकेटर ने क्या देश के लिए कोई इतना बड़ा त्याग किया है, जिसकी तुलना इन महान स्वतंत्रता संग्रामियों और अमर शहीदों के बलिदानों से की जा सके ? मेरे विचार से एक क्रिकेटर के रूप में सचिन की जो भी उपलब्धियां हैं , वह उसके व्यक्तिगत खाते की हैं. . क्रिकेट में उसने करोड़ों -अरबों रूपए कमाए हैं. क्रिकेट उसके लिए और उस जैसे अनेक नामी-गिरामी क्रिकेटरों के लिए सिर्फ एक व्यवसाय है. , समाज-सेवा का माध्यम नहीं . वह देश को लूट रही बड़ी -बड़ी बहुराष्ट्रीय कंपनियों के विज्ञापनों से भी करोड़ों कमा रहा है . राष्ट्र के निर्माण और विकास में आखिर उसका क्या योगदान है ? ऐसे व्यक्ति को अगर 'भारत-रत्न' दिया जाएगा तो मेरे ख्याल से यह भारत-माता का अपमान होगा . क्रिकेट अंग्रेजों का खेल है. उन अंग्रेजों का , जिन्होंने भारत को लम्बे समय तक गुलाम बना कर रखा था , जिन अंग्रेजों ने जलियांवाला बाग में हमारे हजारों मासूम बच्चों , माताओं और आम नागरिकों को बंदूकों से छलनी कर दिया था .
यह उन अंग्रेजों का खेल है , जिन्होंने इस देश को कम से कम एक सौ वर्षों तक लूटने-खसोटने का खेल खेला और आज भी किसी न किसी रूप में उनका यह निर्मम खेल चल ही रहा है . ऐसे किसी अंगरेजी खेल के खिलाड़ी को आज़ाद मुल्क में 'भारत-रत्न ' से नवाजने का कोई भी प्रयास आज़ादी की लड़ाई के उन लाखों शहीदों का भी अपमान होगा ,जिन्होंने देश को आज़ादी दिलाने के महान संघर्षों में जेल की यातनाएं झेलीं , और अपने प्राणों की आहुति देने से भी पीछे नहीं हटे और जिनकी महान शहादत की बदौलत आज हम लोकतंत्र की खुली हवा में सांस ले पा रहे हैं .
अब यह विचारणीय है कि हम भारत माता के अमर शहीदों को 'भारत-रत्न' मानते हैं या उन्हें जो किसी खेल को य फिर किसी और विधा को अपने व्यक्तिगत विकास ,व्यक्तिगत शोहरत और व्यक्तिगत दौलत बटोरने का ज़रिया बनाकर ऐश -ओ -आराम की जिंदगी जी रहे हैं ! आज़ाद मुल्क में ऐसे अलंकरण सिर्फ उन लोगों को दिए जाने चाहिए , जिन्होंने वास्तव में निःस्वार्थ भाव से देश और समाज को अपनी सेवाएं दी हैं, जिन्होंने अपनी किसी भी कला या प्रतिभा का इस्तेमाल व्यक्तिगत आर्थिक लाभ के लिए नहीं किया है. चाहे वे कोई साहित्यकार हों ,कवि हों , कलाकार हों , खिलाड़ी हों या फिर कोई और . मेरे विचार से ऐसे ही लोग सच्चे देश-भक्त और असली भारत -रत्न हैं ,जो अपने किसी भी हुनर को, ज्ञान को या अपनी भावनाओं को निजी लाभ-हानि से परे रख कर केवल देश और समाज के हित में काम करते हैं .व्यावसायिक नज़रिए से काम करके शोहरत और दौलत हासिल करने वालों को 'भारत-रत्न' या अन्य किसी राष्ट्रीय अलंकरण से सम्मानित करना देश के साथ-साथ इन अलंकरणों की गरिमा के भी खिलाफ होगा .
स्वराज्य करुण
(गीत ) कौन है वह ?
धान सजे आँगन का सलोना
स्वरुप नहीं देखा है किसने ,
पूनम नहाए खेतों का रूपहला
रूप नहीं देखा है किसने ?
किसने नहीं देखा है कह दो
वृक्षों से छनती चांदनी को ,
झीलों में नीले अम्बर का
प्रतिरूप नहीं देखा है किसने ?
जिसके आंचल की छाया में
जीवन सबका पल रहा है ,
जिसके स्नेह की ताजी हवा में
दीपक -सा वह जल रहा है !
कई जन्मों के पुण्य का फल है
गोद में जिसकी हम जन्मे
जिसने प्राण भरे हैं साथी
मेरे-तेरे सबके मन में !
जिसकी ममता में सच मानो
सागर की गहराई है ,
जिसकी लहराती फसलों में
गीतों की तरुणाई है !
वह मेरी-तेरी सबकी प्यारी
माँ धरती है ,
जिसकी आँखों से प्यार की
गंगा-जमुना झरती है !.
स्वराज्य करुण
Sunday, December 19, 2010
(कविता ) फर्क और तर्क !
सूर्योदय से भी पहले
सुबह के धुंधलके में
कडाके की ठंड में .
सायकल पर सरपट भागता
कॉलोनियों के हर मकान तक
पहुंचा रहा है एक लड़का
दुनिया-जहान के दुःख-सुख की
छोटी-बड़ी हर खबर,
अपने दुखों से बेखबर ,
पहुंचा रहा है लोगों के द्वार-द्वार
तरह-तरह के विचार ,
बाँट रहा है वह आज का ताजा अखबार /
मिल जाएंगे कुछ रूपए
माँ -बाप को सहारा देने ,
बहन के इलाज और भाई के स्कूल
की फीस के लिए ,
शायद हो जाएगा इंतजाम अपनी
भी परीक्षा-फीस के लिए /
जाड़े की सुबह के धुंधलके में
लिहाफ की गरमाहट में दुबका
एक लड़का
मम्मी-पापा का लाडला बेटा
सोया है अभी मीठी नींद में ,
खोया है सपनों की रंगीन दुनिया में /
मैं सोचता हूँ -
दोनों में क्यों इतना फर्क है ,
सबके अपने-अपने तर्क हैं /
स्वराज्य करुण
Saturday, December 18, 2010
(कविता ) सोचो हर इंसान के बारे में !
दिल की हर धड़कन के साथ
आँखों में नए -नए सपने लिए ,
हर पल सोचते हो अपने लिए /
माना कि समय बहुत कीमती है,
फिर भी कुछ पल तो
निकालो अपने पास-पड़ोस ,
अपने गाँव -शहर ,
देश और दुनिया के लिए /
सोचो तुम्हारे माता-पिता की तरह
हर वक्त तुम्हारे साथ खड़े
उन पहाड़ों के लिए ,
जिनकी बांहों से कोई
लगातार छीन रहा है हरियाली की चादर
सोचो तुम्हारी प्यास बुझाने वाली
उन प्यारी नदियों के लिए,
जिनका लगातार हो रहा है अपहरण /
सोचो इस बहती हवा के बारे में
जिसकी मिठास में कोई लगातार
घोल रहा है ज़हरीली कडुवाहट /
सोचो इन मुरझाते पेड़-पौधों के बारे में,
उन पर बसेरा करते परिंदों के बारे में ,
उन्हें उजाड़ते दरिंदों के बारे में
न सोचे अगर आज
तो फिसल जाएगा वक्त
फिर नहीं आएगी कोई आहट
कोई नहीं देगा तुम्हे आवाज़,
छा जाएगी एक गहरी खामोशी /
इसलिए सोचो ज़रा कुछ पल के लिए आज
अपनी धरती के बारे में ,
अपने आसमान के बारे में,
अगर हो तुम हकीकत में कोई इंसान
तो सोचो हर इंसान के बारे में !
स्वराज्य करुण
Subscribe to:
Posts (Atom)