हमसफ़र के हाथों में हमसफ़र का हाथ नहीं है ,
दिन भी वैसे नहीं रहे , वैसी कोई रात नहीं है !
आपा-धापी की दुनिया में सबको कितनी जल्दी है ,
एक राह के सभी मुसाफिर, कोई किसी के साथ नहीं है !
इक-दूजे का दर्द न समझे, इक-दूजे की धड़कन भी ,
दौलत का ही सपना दिल में , इंसानी ज़ज्बात नहीं है !
रंग-बिरंगी दुनिया बिखरी मौसम की बेरहमी से ,
इस चमन के बादलों से फूलों की बरसात नही है !
हम भी जी-भर जी लेते जिनगानी लेकिन मुश्किल है ,
अपनी किस्मत में सुबह के सूरज की सौगात नही है !
चार दिनों के मेले में यारो कैसे-कैसे झमेले हैं ,
मिलना-जुलना सब कुछ है ,पहले जैसी बात नही है !
- स्वराज्य करुण
दौलत का ही सपना दिल में , इंसानी ज़ज्बात नहीं है ! thik kaha aapne. par ye bhi sahi hai ki चार दिनों के मेले में यारों कैसे-कैसे झमेले हैं ,lagta hai kuch logo ke type ab mujhe bhi hona padega door raho aur maje lo .bahut badiya gajal hai
ReplyDeleteएक राह के सभी मुसाफिर, कोई किसी के साथ नहीं है !
ReplyDeleteकितना बड़ा सच है ये और विडम्बना भी...
बहुत सुन्दर गज़ल कही है , सत्य से रूबरू कराती हुई!!!
सादर!
बड़ी सकारात्मक सोच है आपकी ! अच्छी रचना !
ReplyDeleteबात पहले जैसी न हो, लेकिन कुछ तो बात है.
ReplyDeleteइक-दूजे का दर्द न समझे, इक-दूजे की धड़कन भी ,
ReplyDeleteदौलत का ही सपना दिल में , इंसानी ज़ज्बात नहीं है !
सच्चाई से लबरेज़, सुन्दर शेर
सटीक बात कहती अच्छी गज़ल
ReplyDeleteइक-दूजे का दर्द न समझे, इक-दूजे की धड़कन भी ,
ReplyDeleteदौलत का ही सपना दिल में , इंसानी ज़ज्बात नहीं है !
बहुत सुन्दर, बेहतरीन रचना !
सभी शेर दिल को बाँधने वाले...
ReplyDeleteलाजवाब ग़ज़ल ...वाह !!!!
sach me na jane aisa kyu hota hai kuchh din me hi sab badal jata hai.
ReplyDeletesunder gazal.
badhiyaa baat hai,aur sochein to sach bhee.
ReplyDeletejaam rahe par ham-pyaale wo nahee rahe,
shaam tumhaaree khoob rahee merey bhaee.