शकील साहब के जन्म दिन 3 अगस्त पर विशेष
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(आलेख : स्वराज करुण)
फ़िल्मी गीतों को साहित्यिक रंगों से रंगकर उन्हें लाखों -करोड़ों होठों की गुनगुनाहट बना देने वाले लोकप्रिय गीतकार शकील बदायूंनी का आज जन्म दिन है । वह आज अगर हमारे बीच होते तो 106 साल के हो चुके होते। उनके लिखे गीत सत्तर -पचहत्तर साल गुज़र जाने के बावज़ूद आज भी मधुर भावनाओं के साथ अपनी ताज़गी बनाए हुए हैं।
"अफ़साना लिख रही हूँ ,दिले बेकरार का '" जैसा गीत हो या
1952 की फ़िल्म 'बैजू बावरा ' का भजन
"मन तड़पत हरि दर्शन को आज "
या फिर वर्ष 1962 में आई 'सन ऑफ इंडिया' में
" नन्हा मुन्ना राही हूँ -देश का सिपाही हूँ
बोलो मेरे संग ,जय हिन्द ...जय हिन्द "
जैसा राष्ट्रभक्ति पूर्ण बाल गीत , शकील साहब की शायरी में इंसानी ज़िन्दगी के कई के रंग देखे जा सकते हैं। जैसे वर्ष 1951 में आई 'दीदार' फ़िल्म के लिए लिखा उनका गीत -
"बचपन के दिन भुला न देना ,
आज हँसे ,कल रुला न देना "
और
वर्ष 1955 की फ़िल्म 'उड़न खटोला' का गाना -'
"ओ दूर के मुसाफ़िर ,हमको भी साथ ले ले ,
हम रह गए अकेले "
इन गीतों को गुनगुनाते हुए हर किसी का मन आज भी भावुक हो जाता है। उन्होंने 'मदर इंडिया ' ,मुगल -ए -आज़म ' और चौदहवीं का चांद 'सहित कई फिल्मों के लिए गाने लिखे। उनके अधिकांश गीतों को जहाँ नौशाद जैसे महान संगीतकार ने अपनी मधुर धुनों से सजाया ,वहीं मोहम्मद रफ़ी और मन्ना डे सहित अनेक नामचीन पार्श्व गायक -गायिकाओं ने अपनी आवाज़ से उनमें सम्मोहन की मिठास घोलकर जन -जन तक पहुँचाया ।
शकील साहब का जन्म 3 अगस्त 1916 को उत्तरप्रदेश के बदायूं में हुआ था। शिक्षा लखनऊ में हुई। वहाँ मशहूर शायर जिया उल कादरी से शायरी की बारीकियां समझीं ।फिर नौकरी के लिए 1942 में दिल्ली आ गए। शकील साहब को आपूर्ति अधिकारी के पद पर नियुक्ति मिली ।नौकरी के साथ -साथ शायरी भी चलती रही। फिल्मों में किस्मत आजमाने वर्ष 1946 में नौकरी छोड़कर मुम्बई आ गए।बॉलीवुड में उनके गीतों को हाथों -हाथ लिया गया । वह तीन बार फ़िल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित हुए। उनका निधन 20 अप्रैल 1970 को मुम्बई में हुआ। भारत सरकार ने उनके सम्मान में वर्ष 2013 में डाकटिकट जारी किया। वह भारतीय सिनेमा का शताब्दी वर्ष था।
शकील साहब आज अगर हमारे बीच होते तो 104 बरस के हो चुके होते । भले ही आज वो हमारे बीच नहीं हैं ,लेकिन अपने लिखे गीतों और गज़लों में वह इस दुनिया को सैकड़ों वर्षों तक अपने होने का एहसास दिलाते रहेंगे। विनम्र श्रद्धांजलि।
आलेख : स्वराज करुण
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