आलेख : स्वराज करुण
*********************
घर -घर तिरंगा फहराने के जोश और जुनून में कहीं हम उस कवि को भूल न जाएँ ,जिन्होंने स्वतंत्रता संग्राम के दौरान ,आज से लगभग सौ साल पहले हमारे तिरंगे की शान में एक ऐसा गीत लिखा था ,जो देखते ही देखते आज़ादी के लाखों -करोड़ों दीवानों का प्रेरणास्त्रोत बन गया। इस गीत में भारत के परचम को सदैव ऊँचा उठाए रखने का संकल्प प्रकट होता है , जिसकी भावनाओं में हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान की अनुगूंज स्पष्ट सुनी जा सकती है , जिसके ओजस्वी शब्दों से हमारे राष्ट्रीय मुक्ति आंदोलन में देशभक्ति का सैलाब उमड़ने लगा था , आज 10 अगस्त को आम जनता के उसी कालजयी गीत के रचनाकार श्यामलाल गुप्त 'पार्षद ' की पुण्यतिथि है। उन्हें विनम्र श्रद्धांजलि ।
हम याद कर रहे हैं उनकी लोकप्रिय रचना 'विजयी विश्व तिरंगा प्यारा -झण्डा ऊँचा रहे हमारा ' की उस प्रतिध्वनि को जो हर साल 15अगस्त को स्वतंत्रता दिवस पर और 26 जनवरी को गणतंत्र दिवस पर देश के कोने -कोने में समवेत स्वरों में गूंज उठती है । कहना गलत नहीं होगा कि 'पार्षद' जी वास्तव में हमारे राष्ट्रीय स्वाभिमान के गीतकार थे। उनकी यह अमर रचना इस प्रकार है --
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
सदा शक्ति सरसाने वाला, प्रेम सुधा बरसाने वाला,
वीरों को हरषाने वाला, मातृभूमि का तन-मन सारा।।
झंडा ऊँचा रहे हमारा .....।
स्वतंत्रता के भीषण रण में, लखकर बढ़े जोश क्षण-क्षण में,
कांपे शत्रु देखकर मन में, मिट जाए भय संकट सारा।।
झंडा ऊँचा रहे हमारा .....।
इस झंडे के नीचे निर्भय, लें स्वराज्य यह अविचल निश्चय,
बोलें भारत माता की जय, स्वतंत्रता हो ध्येय हमारा।।
झंडा ऊँचा रहे हमारा ....।
आओ ,प्यारे वीरों आओ ,एक साथ सब मिलकर गाओ,
प्यारा भारत देश हमारा।।
झंडा ऊँचा रहे हमारा ....।
इसकी शान न जाने पाए, चाहे जान भले ही जाए,
विश्व-विजय करके दिखलाएं, तब होवे प्रण पूर्ण हमारा।।
विजयी विश्व तिरंगा प्यारा, झंडा ऊंचा रहे हमारा।
श्यामलाल पार्षद जी का जन्म 9 सितम्बर 1896 को कानपुर में हुआ था ।निधन 10अगस्त 1977 को हुआ । भारत सरकार ने उन्हें 1969 में पद्मश्री अलंकरण से सम्मानित किया था । उनके सम्मान में भारतीय डाक विभाग ने 4 मार्च 1997 को प्रथम दिवस विशेष आवरण भी जारी किया था । उनकी याद में डाक टिकट भी जारी किया गया था। पार्षद जी ने अपने सुदीर्घ सार्वजनिक जीवन में अध्यापक ,स्वतंत्रता संग्राम सेनानी ,समाज सेवी और पत्रकार के रूप में भी अपनी सार्थक भूमिकाओं का निर्वहन किया । वह मानस मर्मज्ञ और रामायणी भी थे । उनकी लोकप्रिय रचना -'झण्डा ऊँचा रहे हमारा ' का पहली बार सामूहिक गायन जलियांवाला बाग दिवस पर 13 अप्रैल 1924 को पंडित जवाहरलाल नेहरू के नेतृत्व में फूलबाग ,कानपुर में हुआ था ।
आठ बार में छह साल जेल में रहे
****
महात्मा गांधी के आव्हान पर जब देश भर में ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ असहयोग आंदोलन चल रहा था ,तब पार्षदजी ने उसमें सक्रिय रूप से हिस्सा लिया ।इसके फलस्वरूप उन्हें रानी अशोधर के महल से 21 अगस्त 1921 को गिरफ्तार किया गया। जिला कलेक्टर ने उन्हें दुर्दान्त क्रान्तिकारी घोषित करते हुए केन्द्रीय जेल आगरा भेज दिया । वर्ष 1924 में पार्षदजी ने एक असामाजिक व्यक्ति पर व्यंग्य रचना की । इस वज़ह से उन पर 500 रुपये का जुर्माना हुआ। वर्ष 1930 में नमक आन्दोलन में शामिल होने पर उन्हें फिर गिरफ्तार किया गया और वह कानपुर जेल में रखे गये। पार्षदजी स्वतन्त्रता संग्राम में लगातार सक्रिय भागीदारी निभाते हुए 1932 में तथा 1942 में भूमिगत भी रहे। वर्ष 1944 में फिर एक बार गिरफ्तार हुए । उन्हें जेल भेज दिया गया ।।इस प्रकार आठ बार में वह कुल छह साल तक स्वतंत्रता संग्राम के राजनैतिक बन्दी के रूप में जेल में रहे ।
आज़ादी के बाद देश की हालत को देखकर वह बहुत दुःखी रहते थे । उन्होंने 12 मार्च 1972 को लखनऊ स्थित 'कात्यायनी ' कार्यालय में एक भेंटवार्ता में अपना दर्द कुछ इस तरह व्यक्त किया था -
देख गतिविधि देश की
मैं मौन मन में रो रहा हूँ ।
आज चिन्तित हो रहा हूँ ।।
बोलना जिनको न आता
आज वही अब बोलते हैं ,
रस नहीं बस देश के
उत्थान में विष घोलते हैं ।
सर्वदा गीदड़ रहे अब
सिंह बनकर डोलते हैं
कालिमा अपनी छिपाएं ,
दूसरों की खोलते हैं ।।
देख उनका व्यक्तिक्रम मैं,
आज साहस खो रहा हूँ,
आज चिन्तित हो रहा हूँ ।।
आज़ादी के आंदोलन के दिनों में पार्षदजी , प्रखर पत्रकार और स्वतंत्रता संग्रामी गणेश शंकर विद्यार्थी और प्रताप नारायण मिश्र के अभिन्न सहयोगी थे । उनके सानिध्य में उन्होंने अध्यापन और पुस्तकालय संचालन का काम किया और पत्रकारिता भी की ।
- स्वराज करुण
No comments:
Post a Comment