(आलेख -स्वराज करुण)
ये उन दिनों की बात है जब कविगण आपस में मिलकर अपनी -अपनी कविताओं का एक मिलाजुला काव्य संग्रह छपवाया करते थे। छत्तीसगढ़ के साहित्यिक इतिहास के पन्ने पलटने पर ऐसे कई संयुक्त कविता संकलनों की जानकारी मिलती है । संभवतः इसकी शुरुआत श्री हरि ठाकुर और उनके मित्रों द्वारा गठित 'लेखक सहयोगी प्रकाशन' नामक संस्था से हुई थी। वर्ष 1956 में रायपुर में गठित इस संस्था ने 'नये स्वर ' शीर्षक से सहयोगी कविता संग्रहों का सिलसिला शुरू किया था। आलेख में इसकी चर्चा आगे की गई है।
अपने छोटे -से निजी पुस्तकालय को खंगालते हुए आज मुझे वर्ष 1978 में प्रकाशित पुस्तक 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' की प्रति मिल गयी , तो उस दौर के अनेक नये -पुराने कवियों की याद आने लगी। इनमें से कई प्रकाशवान सितारे उदित होकर अदृश्य हो गए ,जबकि कुछ सितारे आज भी अपनी रचनाओं से समाज को आलोकित कर रहे हैं। छत्तीसगढ़ के 73 कवियों का यह संयुक्त कविता -संग्रह श्री उत्तम गोसाईं के सम्पादन में प्रयास प्रकाशन बिलासपुर द्वारा प्रकाशित किया गया था , हालांकि इसका शीर्षक 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' रखा गया था ,लेकिन इसमें छायावाद के प्रवर्तक पंडित मुकुटधर पाण्डेय सहित कई वरिष्ठ हस्ताक्षर भी शामिल थे। मेरा सौभाग्य था कि एक नये हस्ताक्षर के रूप में इस संग्रह में मुझे भी जगह मिली थी। पुस्तक में प्रत्येक कवि की एक-एक रचना शामिल है। इसमें भूमिका डॉ. विनय कुमार पाठक की है और सम्पादकीय वक्तव्य श्री उत्तम गोसाईं का है। डॉ.पाठक ने अपनी भूमिका में छत्तीसगढ़ की साहित्यिक परम्पराओं की चर्चा करते हुए लिखा है --" छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' -- 'नये स्वर' और ' मैं भारत हूँ 'की परम्परा का विकसित स्वरूप प्रस्तुत करता है।'नये स्वर ' के तीन पुष्प प्रकाशित हुए ,जो कवियों के सहकारी प्रयास के प्रतिफलन हैं।नयेस्वर -1 (1956) ऐतिहासिक काव्य संग्रह है ,जिसमें हरि ठाकुर ,गुरुदेव काश्यप, सतीश चंद्र चौबे ,नारायण लाल परमार,ललित मोहन श्रीवास्तव और देवी प्रसाद वर्मा संग्रहित ,संकलित हैं। डॉ. पाठक ने 'नये स्वर ' श्रृंखला की अगली दो कड़ियों का भी उल्लेख किया है ,जो क्रमशः वर्ष 1957 और वर्ष 1969 में प्रकाशित हुए थे। वह लिखते हैं - 'नये स्वर -2' संग्रह से अधिक पत्रिका के रूप में दृष्टिगत होता है । इसमें प्रमोद वर्मा , रमाशंकर तिवारी ,शशि पाण्डेय ,के.इकबाल अब्बन , ज्ञानसिंह ठाकुर ,विश्वेन्द्र ठाकुर और मनहरण दुबे की कविताएं संचयित हैं। "डॉ. पाठक के अनुसार - "नये स्वर -3 की काफी आलोचनाएं हुईं ,जिसका एक मात्र कारण कवियों के चुनाव में सहयोग राशि को प्रमुखता देना था। चौंकाने वाले तथ्य और उनको उजागर करने वाली कविताएं इस संग्रह में प्रतिष्ठित हैं। 'नये स्वर' को इस अंचल का 'तार -सप्तक ' भी कहा जा सकता है। " डॉ. पाठक ने भूमिका में 'मैं भारत हूँ ' कि बारे में बताया है कि अंचल के 60 कवियों का यह सहयोगी संकलन वर्ष 1969 में प्रकाशित हुआ था।
अब कुछ चर्चा 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' के सम्पादक उत्तम गोसाईं के बारे में । आध्यात्मिक अभिरुचि के कवि उत्तम गोसाईं रायगढ़ जिले में महानदी के तटवर्ती ग्राम सरिया के निवासी थे और रेल्वे की नौकरी करते हुए झाँसी में रहते थे। उन्होंने छत्तीसगढ़ से इतनी दूर रहकर इस काव्य संग्रह का सम्पादन किया और नौकरी से समय निकालकर ,दीवानगी की हद तक दौड़धूप करके नई दिल्ली के एक प्रिंटिंग प्रेस से इसे छपवाया भी। संग्रह के सम्पादकीय में गोसाईं जी ने लिखा है --"मैं अनेक वर्षों से छत्तीसगढ़ के उदीयमान तरुण कवि बंधुओं को एक साहित्यिक तम्बू के अधीन संपृक्त करने हेतु विचार करता रहा हूँ। इसी के परिणामस्वरूप प्रस्तुत काव्य संग्रह 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' का उन्नयन हो सका है। अनेकानेक प्रयास और आग्रह के उपरांत भी अनेक कवि बंधुओं की रचनाओं से हम लाभान्वित नहीं हो सके । एतदर्थ अनावश्यक विलम्ब भी हुआ ,जिसका हमें हार्दिक दुःख है।हम इसके लिए फिर कभी यथावत प्रतीक्षा करेंगे। "
संग्रह के सह -सम्पादक श्री ईश्वर रात्रे और श्री त्रिलोचन पटेल थे। श्री उत्तम गोसाईं और श्री त्रिलोचन पटेल कई वर्षों तक छत्तीसगढ़ लेखक संघ का भी संयोजन और संचालन करते रहे। सहयोगी काव्य संग्रह 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' के बाद वर्ष 1981 में उन्होंने 'छत्तीसगढ़ के हस्ताक्षर'का भी सम्पादन और प्रकाशन किया। । यह संग्रह छत्तीसगढ़ लेखक संघ के बैनर पर प्रकाशित हुआ। इसमें लगभग 110 कवियों की रचनाएँ शामिल हैं। मेरी भी एक कविता को इसमें जगह मिली है। यह भी महत्वपूर्ण है कि दोनों संग्रहों में शामिल कवियों से कोई सहयोग शुल्क नहीं लिया गया था। शायद वह वर्ष 1981 की बरसात के मौसम का कोई एक भीगा हुआ -सा दिन था ,जब रायगढ़ में पंडित मुकुटधर पाण्डेय के हाथों 'छत्तीसगढ़ के हस्ताक्षर ' का विमोचन हुआ था। मुझे भी इस ऐतिहासिक आयोजन में शामिल होने का सौभाग्य मिला था इधर कई दशकों से उत्तम गोसाईं से मेरा कोई सम्पर्क नहीं है। लेकिन छत्तीसगढ़ के कवियों को संयुक्त काव्य संग्रहों के माध्यम से परस्पर जोड़ने का उनका यह उद्यम मुझे आज भी याद आता है। उनका स्वयं का कविता संग्रह 'अनंत के यात्री ' शीर्षक से प्रकाशित हुआ था। एक मित्र बता रहे थे कि आध्यात्मिक रूझान के श्री उत्तम गोसाईं अब स्वामी उत्तमानन्द गिरि बन गए हैं और' महाराज' आजकल कनाडा में रहते हैं। लेकिन यह मित्र मंडली की यह अपुष्ट जानकारी है। बहरहाल ,वो जहाँ भी रहें ,स्वस्थ और सानन्द रहकर सृजनात्मक कार्यो में व्यस्त और मस्त रहें ,यही कामना है।
उनके द्वारा सम्पादित 'छत्तीसगढ़ के नये हस्ताक्षर' में शामिल कवियों के नाम हैं -- पंडित मुकुटधर पाण्डेय , डॉ. शत्रुघ्न पाण्डेय ,पवन दीवान , कृष्णा रंजन , विश्वेन्द्र ठाकुर , जीवन यदु 'राही', मनहरण सोनी 'जलद' , डॉ. विनय कुमार पाठक ,डॉ. महेन्द्र कश्यप 'राही", पन्नालाल 'रत्नेश', विश्वनाथ योगी ,देवधर दास महंत 'मलयज ', बुधराम यादव ,परस राम साहू ,राजनाला रामेश्वर राव ,प्रभा 'सरस', मदनलाल प्रजापति, कुंवर पाल सिंह छोंकर'निर्द्वन्द', गनी आमीपुरी ,देवदत्त तिवारी ,बलदेव सिंह भारती रूपनारायण वर्मा 'वेणु ', गोवर्धन देवांगन ,रजनी पाठक ,जगदीश श्रीवास्तव ,ईश्वर रात्रे ,स्वराज्य करुण ,भरत लाल तिवारी ,गेंद राम 'सागर', अज़ीज़ रफ़ीक, भगत सिंह सोनी ,बनवारी लाल साहू ,लोक बाबू ,संतराम देशमुख ,बृजलाल प्रसाद शुक्ल, कृष्ण कुमार शर्मा ,प्रदीप चौबे ,गणेश सोनी 'प्रतीक ', शैल 'अंचल', प्रभात मिश्र 'आलोक ', सुरेश वर्मा 'शैल ', उत्तम गोसाईं ,सूरज प्रसाद देवांगन ,सतीश कुमार प्रजापति ,रामदयाल यादव ,प्रभाकर ,शिवमंगल पाण्डेय ,किरण चन्द्र 'किरण ', राम आधार तिवारी ,हीरा चक्रवर्ती ,शिवकुमार सोनी ,प्रकाश टण्डन' प्रकाश ', बी.आर .टांडे ,मदन गुप्ता ,मनोराम भलावी ,पुरुषोत्तम विश्वकर्मा, न्याज़ अली अंजुम ,अरविन्द फिलिप्स ,कमल कुमार बोहिदार ,महेशदत्त गुप्ता 'दीवाना ', बसंत कुमार पाण्डेय, सलाम हुसैन ,अशोक कुमार वाजपेयी, गयाराम साहू ,रामेश्वर प्रसाद ठेठवार, युधिष्ठिर पटेल ,प्रदीप तिवारी ,लखन लाल गुप्त ,बिहारी दुबे ,विद्याभूषण मिश्र ,डॉ. बिहारी लाल साहू ,त्रिलोचन पटेल ,रघुनाथ प्रधान और रवि श्रीवास्तव। संग्रह 104 पृष्ठों का है। अंतिम 12 पृष्ठों में सभी 73 कवियों का संक्षिप्त परिचय भी दिया गया है।
प्रिंटिंग टेक्नोलॉजी के विकास के इस युग में अत्याधुनिक कम्प्यूटर आधारित उन्नत मशीनों के आने से पुस्तकों की छपाई बहुत आसान हो गयी है ,इसके बावज़ूद नये रचनाकारों के सामने प्रकाशन का संकट हमेशा बना रहता है । ऐसे में इस प्रकार के सहयोगी कविता संग्रहों में वरिष्ठ कवियों के साथ छपने पर नवोदित कवियों को जहाँ गर्व का अनुभव होता है ,वहीं उनका आत्मविश्वास भी बढ़ता है । संत कवि पवन दीवान ने एक बार मुझसे कहा था कि जब कभी अवसर मिले ,साहित्यिक आयोजनों में हम सबको आते -जाते रहना चाहिए ,क्योंकि इनमें जाकर जहाँ रचनाकारों को आपस में मिलने जुलने और भावनात्मक रूप से परस्पर जुड़ने का मौका मिलता है ,वहीं उन्हें पता चलता है कि हमारी अपनी साहित्यिक बिरादरी कितनी विशाल है।
- स्वराज करुण
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