Thursday, October 3, 2019

(कविता ) जड़ें तलाश रहीं अपनी ज़मीन !

         
                       

    -स्वराज करुण 
सुबह और शाम ,
रात और दिन ,
बेहद बेचैन होकर
जड़ें तलाश रही अपनी ज़मीन   !
धीरे -धीरे कटकर
जड़ों से दूर होती
जा रही अपनी माटी !
आखिर कौन चीर रहा
हरे -भरे पहाड़ों  की छाती ?
खबर आयी है कि
जल्द आने वाला है
तरक्की का कोई
तेज रफ़्तार तूफ़ान ,
जिसके खौफ़नाक  झोंके से
उजड़ कर एक दिन
उड़ जाएंगे परिन्दे
मिट जाएंगे पर्वत ,
सूख जाएगी
संवेदनाओं की नदी ,
सूख जाएंगे सुनहरे ख्वाब
सूख जाएंगे भावनाओं के तालाब ,
रह जाएंगे सिर्फ
जड़ों से  कटे हुए पेड़ ,
जड़ों से कटे हुए इन्सान !
जड़ विहीन धरती से क्या
कहीं नज़र भी आएगा
कोई नीला आसमान ?
        -- स्वराज करुण

1 comment:

  1. जी नमस्ते,
    आपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
    पांच लिंकों का आनंद पर...
    आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।

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