-स्वराज करुण
सुबह और शाम ,
रात और दिन ,
बेहद बेचैन होकर
जड़ें तलाश रही अपनी ज़मीन !
धीरे -धीरे कटकर
जड़ों से दूर होती
जा रही अपनी माटी !
आखिर कौन चीर रहा
हरे -भरे पहाड़ों की छाती ?
खबर आयी है कि
जल्द आने वाला है
तरक्की का कोई
तेज रफ़्तार तूफ़ान ,
जिसके खौफ़नाक झोंके से
उजड़ कर एक दिन
उड़ जाएंगे परिन्दे
मिट जाएंगे पर्वत ,
सूख जाएगी
संवेदनाओं की नदी ,
सूख जाएंगे सुनहरे ख्वाब
सूख जाएंगे भावनाओं के तालाब ,
रह जाएंगे सिर्फ
जड़ों से कटे हुए पेड़ ,
जड़ों से कटे हुए इन्सान !
जड़ विहीन धरती से क्या
कहीं नज़र भी आएगा
कोई नीला आसमान ?
-- स्वराज करुण
जी नमस्ते,
ReplyDeleteआपकी लिखी रचना शुक्रवार ४ अक्टूबर २०१९ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं...धन्यवाद।