स्वराज्य करुण
एक उम्र बहुत है संभलने के लिए ,
एक पल बहुत है बदलने के लिए !
लोग हैं कि हज़ारों बदलते हैं चेहरे ,
अपनों को हमेशा छलने के लिए !
रास्ते घुमावदार ,घाटियाँ हैं बहुत
भूल-भुलैय्या है चलने के लिए !
तुम्हें जीना है चाँद की ठंडी छाँव में
हमें ज़िंदा रहना है जलने के लिए !
फूलों के बाग में कांटे ही कांटे हैं ,
मजबूर हम उनमें टहलने के लिए !
प्यार के नाम पर प्रहार ही प्रहार ,
दिल तो फिर दिल है दहलने के लिए !
दिल तो फिर दिल है दहलने के लिए !
परछाई को मसीहा मान लिया है
नकली दिलासे में बहलने के लिए !
- स्वराज्य करुण
बेहतरीन गजल। बधाई।
ReplyDeleteGood one. I enjoyed it. Life is, in fact, a paradox of many things. We have live it without any option.
ReplyDeleteरास्ते घुमावदार ,घाटियाँ हैं बहुत
ReplyDeleteभूल-भुलैय्या है चलने के लिए !
क्या शेर कहे हैं आपने,
बहुत खूब !......
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (14-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
बहुत खूब !
ReplyDeleteकाम काज की वज़ह से कई दिनों तक नेट पर आना नहीं हो पाया अब धीरे धीरे आपकी पिछली रचनाएं भी पढेंगे !
फूलों के बाग़ में कांटे ही कांटे हैं ...
ReplyDeleteमजबूर हैं उनमे चलने के लिए ...
जिंदगी भी तो फूलों का बागीचा ही है !
अच्छी ग़ज़ल !
बहुत बेहतरीन गजल| धन्यवाद|
ReplyDeleteबहुत खूब ,उम्दा लगी
ReplyDeleteफूलों के बाग में कांटे ही कांटे हैं ,
ReplyDeleteमजबूर हम उनमें टहलने के लिए !
प्यार के नाम पर प्रहार ही प्रहार ,
दिल तो फिर दिल है दहलने के लिए !
खूबसूरत गज़ल
प्यार के नाम पर प्रहार ही प्रहार,
ReplyDeleteदिल तो फिर दिल है दहलने के लिए!
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खूबसूरत अशआरों से सजी उम्दा गजल!
लोग हैं कि हज़ारों बदलते हैं चेहरे ,
ReplyDeleteअपनों को हमेशा छलने के लिए !
रास्ते घुमावदार ,घाटियाँ हैं बहुत
भूल-भुलैय्या है चलने के लिए !.....
बेहद शानदार अशआर.....बहुत खूब ...
बहुत खूब.क्या शेर कहे हैं.
ReplyDeletebahut khoobsoorat ...
ReplyDeleteनकली दिलासा में बहलने के लिए ! को
नकली दिलासे में बहलने के लिए
कर लीजिये ...
शानदार ग़ज़ल के लिए बधाई!
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