स्वराज्य करुण
गरीबों की बस्तियों में खूब चलता है बुलडोज़र ,
सीने पे झुग्गियों के मूंग दलता है बुलडोज़र !
दिखती नहीं कभी उसे आलीशान कोठियां
दौलत की चमक वालों से दहलता है बुलडोज़र !
बेरहम को पता नहीं ये हरेली है क्या बला ,
तभी तो हरे पेड़ों को कुचलता है बुलडोज़र !
विनाश के तूफ़ान को कहता है वह विकास ,
मानव को मायाजाल में छलता है बुलडोज़र !
चूल्हे की आंच से नहीं कुछ लेना-देना उसको ,
मेहनतकशों के सपनों को निगलता है बुलडोज़र !
सफेदपोश हाथों का वह बन गया है खिलौना ,
उनकी ही मेहरबानी से यहाँ पलता है बुलडोज़र !
स्वराज्य करुण
सफेदपोश हाथों का बन गया है खिलौना ,
ReplyDeleteउनकी ही मेहरबानी से यहाँ पलता है बुलडोज़र
एकदम सटीक ..अर्थपूर्ण व्यंगात्मक पंक्तियाँ.... बहुत बढ़िया
सुन्दर प्रयोग. इस बुलडोजर से आम-जन आहत है, सेज-फेज इसी का नाम है.
ReplyDeleteआपकी कविताएं भी तो इसी तरह रौंदती चलती हैं.
ReplyDeleteगुलामी के चिन्हों को अभी तक ढो रहे हैं।
ReplyDeleteअच्छा है. बधाई
ReplyDeleteसमय हो तो मेरा ब्लॉग भी देखें
महिलाओं के बारे में कुछ और ‘महान’ कथन
बहुत सच्ची और सार्थक रचना प्रस्तुत की है आपने ..हर एक शेर वास्तविकता बयान कर रहा है
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