कट रहे अमलतास , कट रहे पलाश ,
अब कहाँ गूंजेंगे फागुन के गीत !
नज़र नहीं आते अब काफिले प्यार के ,
दूर तक बिछ गए रस्ते कोलतार के !
अमराइयां बनती जा रही इतिहास ,
अब कहाँ झूमेंगे पाहुन के गीत !
वासन्ती धूप बिन जंगल वीरान हुआ ,
धरती का आँचल भी आज सुनसान हुआ !
किसने कह दिया कि ये है मधुमास
सुनाएगा कौन यहाँ मधुवन के गीत !
कौन यहाँ निर्दोष है और कौन दोषी ,
हवाओं में तैर रही खतरनाक खामोशी !
मौसम पर कैसे हो अब कोई विश्वास ,
कौन यहाँ गाएगा जीवन के गीत !
सहमे सब पंछी हैं, पेड़ हुए घायल ,
कोयल के पांवों से गायब है पायल !
कैसे हो पाएगा संगीत का आभास ,
बजाएगा कौन यहाँ रुनझुन के गीत !
स्वराज्य करुण
इस बेहतरीन गीत के लिए बधाई ।
ReplyDeletesundar aur dardila falguni geet
ReplyDeletebadhai
आपकी उम्दा प्रस्तुति कल शनिवार (05.03.2011) को "चर्चा मंच" पर प्रस्तुत की गयी है।आप आये और आकर अपने विचारों से हमे अवगत कराये......"ॐ साई राम" at http://charchamanch.blogspot.com/
ReplyDeleteचर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)
मन में तो अभी से बजना शुरू हो गया है फागुनी गीत.
ReplyDeleteआदरणीय स्वराज्य करुण जी
ReplyDeleteसादर सस्नेहाभिवादन !
बहुत सुंदर नवगीत है -
वासन्ती धूप बिन जंगल वीरान हुआ
धरती का आंचल भी आज सुनसान हुआ
किसने कह दिया कि ये है मधुमास
सुनाएगा कौन यहां मधुवन के गीत
पर्यावरण के प्रति संवेदना के स्वरों के साथ फागुन की आहट स्पष्ट सुनाई देने लगी है गीत के माध्यम से …
सुंदर शिल्प , श्रेष्ठ भाव के साथ सरस प्रस्तुति के लिए आभार !
♥♥ हार्दिक शुभकामनाएं ! मंगलकामनाएं ! ♥♥
- राजेन्द्र स्वर्णकार
सहमे सब पंछी हैं, पेड़ हुए घायल ,
ReplyDeleteकोयल के पांवों से गायब है पायल !
कैसे हो पाएगा संगीत का आभास ,
बजाएगा कौन यहाँ रुनझुन के गीत !
बहुत ही सुन्दर एवं सार्थक लेखन के साथ पर्यावरण के प्रति विचारणीय प्रश्न भी ..
स्वराज्य करुण जी ,
ReplyDeleteअब कहाँ गूंजेंगे फागुन के गीत!....
बहुत ही सुन्दतर एवं सार्थक लेखन .......
अच्छे और गंभीर विषयों पर ध्यान आकर्षित करने और मनन करने का अवसर देने के लिए आपका आभार।