- स्वराज्य करुण
इस सफर की कोई भी दिशा नहीं ,
कौन किसी के दर्द को महसूस करे ,
समय नदी के जल-प्रवाह में तैर रहा ,
गाँवों में अब घूम रहे हैं भू-माफिया ,
यह देश हुआ परदेश ,करें तो क्या करें , कौन आएगा यहाँ किसी की कराहों में ! - स्वराज्य करुण
सपने जब दिग्भ्रांत खड़े चौराहों में ,
दिन कैसे बीतें कहो रात की बाहों में !
इस सफर की कोई भी दिशा नहीं ,
धुंधली सी इक मंजिल है निगाहों में !
कौन किसी के दर्द को महसूस करे ,
पत्थर के दिल कैसे पिघलें आहों में !
समय नदी के जल-प्रवाह में तैर रहा ,
उसे क्या पता पर्वत हैं कई राहों में !
गाँवों में अब घूम रहे हैं भू-माफिया ,
, खेत हुए नीलाम उनकी सलाहों में !
यह देश हुआ परदेश ,करें तो क्या करें ,
SUNDER GAZAL
ReplyDeleteAAP SABHI KO MAHASHIVRATRI KI SUBHKAMNAYE..
कौन किसी के दर्द को महसूस करे ,
ReplyDeleteपत्थर के दिल कैसे पिघलें आहों में !
सच कहा आज इन्सान पत्थर हो गया है। सुन्दर गज़ल के लिये बधाई।
आपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
ReplyDeleteप्रस्तुति भी कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (2-3-2011) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा और हमारा हौसला बढाइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com/
सुन्दर गज़ल के लिये बधाई।
ReplyDeleteआप को महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ|
कैसी करुण व्यथा है.
ReplyDeleteकौन किसी के दर्द को महसूस करे ,
ReplyDeleteपत्थर के दिल कैसे पिघलें आहों में !
बहुत सुन्दर ग़ज़ल ...
महाशिवरात्री की हार्दिक शुभकामनाएँ !!
पत्थर भी पिघल जाएगा जनाब, कोशिश जारी रखिए,, बहुत खूब।
ReplyDeleteइस सफर की कोई भी दिशा नही, धुंधली सी इक मंजिल है निगाहों में !bahut achchhi kavita hai dil ko chhu lene wali
ReplyDeleteधुंधली सी इक मंजिल है निगाहों में !bahut sundar kavita hai ,dil ko chhu lene wali .
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