- स्वराज्य करुण
यह अलग बात है कि जापान में आयी महाविनाशकारी सुनामी ने हमारे देश और हमारी दुनिया की तमाम दूसरी ज्वलंत समस्याओं को अखबारों के पन्नों और टी.व्ही . के पर्दों से पीछे ढकेल दिया है, लेकिन महसूस करें तो आज हमारे देश में भ्रष्टाचारऔर महंगाई भी किसी सुनामी से कम नहीं है. भ्रष्टाचार से नैतिकता तबाह हो रही है, सामाजिकता तबाह हो रही है और संस्कृति भी नष्ट हो रही है.
महंगाई का एक बहुत बड़ा कारण भ्रष्टाचार भी है. दोनों एक-दूसरे के पूरक हैं. देश में इन दोनों गंभीर समस्याओं ने वास्तव में राष्ट्रीय विपदा का रूप धारण कर लिया है. जहां सरकारी खजाने से सार्वजनिक धन की लूट-मार और धन-पशुओं के काले धन के काले कारोबार से देश आर्थिक रूप से खोखला होने लगा है, वहीं टेलीविजन के फूहड़ कार्यक्रम सांस्कृतिक भ्रष्टाचार के जरिये देश की पहचान और प्रतिष्ठा को धूमिल करते जा रहे है. इन दोनों प्रकार के भ्रष्टाचार में लिप्त देशद्रोहियों से निपटने के लिए हर तरह की ईमानदार कोशिश होती रहनी चाहिए ..जन-जागरण भी चलते रहना चाहिए जैसा कि बाबा रामदेव, अन्ना हजारे और किरण वेदी जैसे लोग कर रहे हैं ,लेकिन कुछ और विकल्प भी हैं ,जिन्हें हम और आप चाहें तो आसानी से अपना कर महंगाई और भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष में अपनी प्रतीकात्मक भूमिका अदा कर सकते हैं. मितव्ययिता इसका एक अच्छा विकल्प हो सकता है. रोटी ,कपड़ा, मकान , इलाज , शिक्षा जैसी ज़रूरतों पर खर्च करना हर व्यक्ति और हर परिवार के लिए अनिवार्य है ,लेकिन अगर आमदनी और खर्च के बीच एक बेहतर प्रबंधन हम सीख लें तो शायद इन ज़रूरी चीजों पर भी हमारा खर्च संतुलित हो सकता है.
वेतनभोगी परिवारों में खर्चीली शादियाँ उन पर आर्थिक -बोझ बन जाती हैं . निम्न-मध्यम-वर्गीय परिवार शादियों में ज़रूरत से ज्यादा चमक-दमक और दान-दहेज के आडम्बर से बचकर महंगाई के प्रकोप से कुछ हद तक सुरक्षित रह सकते हैं. सामूहिक विवाह समारोहों का आयोजन किया जा सकता है . आज-कल अनेक समाजों में ऐसे समारोह होने भी लगे हैं .गायत्री-परिवार आदि कई सामाजिक -संस्थाएं भी इनका आयोजन करते हैं . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमण सिंह की सरकार तो गरीब परिवारों की बेटियों के लिए कन्या-दान योजना के तहत ऐसे सामूहिक विवाह समारोह पिछले पांच वर्षों से शासकीय तौर पर कामयाबी के साथ आयोजित करती चली आ रही है,जिनमे स्थानीय सामाजिक संस्थाएं भी काफी सहयोग करती हैं . रमन सरकार इस योजना में अब तक प्रत्येक कन्या पर पांच हजार रूपए का खर्च दे रही थी , अब अगले वित्तीय वर्ष याने कि अप्रेल से यह राशि दोगुनी कर दी जाएगी , ऐसी घोषणा मुख्यमंत्री ने की है. छत्तीसगढ़ में इस योजना के तहत सामूहिक शादी समारोहों में सभी धर्मों और समाजों के वैवाहिक अनुष्ठान अपने-अपने धार्मिक -सामाजिक रीति-रिवाजों के अनुसार राजी-खुशी होते आ रहे है. अब तक कम से कम बीस हजार गरीब कन्याओं के हाथ पीले हो चुके हैं .मुख्यमंत्री ऐसे कई समारोहों में स्वयं जा कर बेटियों को और वरों को अपना आशीर्वाद प्रदान करते हैं . डॉ. सिंह कई अवसरों पर कह चुके हैं कि सामूहिक-विवाह समारोह आज महंगाई के इस दौर में खर्चीली शादियों का बेहतर विकल्प हो सकते हैं. उनकी बात में निश्चित रूप से काफी दम है. गायत्री परिवार वालों ने बीच में एक नारा दिया था और वे इसे सुंदर अक्षरों में दीवारों पर गेरू से लिखते भी थे- 'अगर रोकनी है बर्बादी ,बंद करो खर्चीली शादी .
बहरहाल ,मेरे ख़याल से इसके अलावा महंगाई डायन से बचने के और भी कई उपाय किए जा सकते हैं . शराब , सिगरेट और टायलेट-क्लीनर याने कि कोल्ड-ड्रिंक को दूर से ही सलाम कर महंगाई को पास आने से रोका जा सकता है. आज शराब की एक बोतल सौ-दो सौ रूपए से कम में नहीं मिलती . सिगरेट का पैकेट भी पन्द्रह-बीस रूपए से कम का नहीं होता, कोल्ड - ड्रिंक्स के एक बड़ी बोतल भी पचास रूपए से कम कीमत की नहीं होती , जबकि शराब और सिगरेट के बदले दूध और कोल्ड-ड्रिंक्स के बदले अगर नीबू की शरबत पी जाए, तो काफी रूपयों की बचत की जा सकती है. हमारे-आपके अधिकाँश घरों में मोटर-बाईक की संख्या बढ़ती जा रही है.यह जान कर भी कि मोटर-बाईक की मनमानी रफ़्तार भयानक हादसों का कारण बनती है , कहीं शौक से , तो कहीं बढते बच्चों की जिद्द के कारण कई परिवारों में एक से ज्यादा मोटर-बाईक होना शान की बात मानी जा रही है , जबकि डीजल-पेट्रोल के दाम आसमान छू रहे हैं . ऐसे में अगर हम बाज़ार-दूकान के छोटे-छोटे कार्यों के लिए सायकल का इस्तेमाल करें, बच्चों को स्कूल-कॉलेज सायकल से आने-जाने के लिए प्रोत्साहित करें , तो डीजल-पेट्रोल पर होने वाला खर्च बचा कर भी हम महंगाई से काफी हद तक बच सकते हैं. सायकल एक पर्यावरण -हितैषी वाहन है. इसका इस्तेमाल करके हम पर्यावरण संरक्षण में सहभागी बन सकते हैं.
नशे की लत और फिजूलखर्ची की बुरी आदत भी गरीब और मध्यम-वर्गीय परिवारों को महंगाई के जाल में फांस लेती हैं ,फिर ऐसे लोग अपने व्यर्थ के खर्चों को पूरा करने के लिए गलत रास्ते पर चल पड़ते हैं और किसी न किसी रूप में भ्रष्टाचारियों के भी गुलाम बन जाते हैं. हर कोई जानता है कि होटलों में मिलावटी मिठाइयां बिकती हैं वह भी ऊंचे दामों में , लेकिन होली - दीवाली जैसे त्योहारों में हम अपने घरेलू बजट का एक हिस्सा इन घटिया मिठाइयों पर खर्च कर देते हैं और घर आने वाले मेहमानों को भी उनका सेवन कराते हैं . अगर हम चाहें तो दूकान से बेसन ,शक्कर आदि कच्चा माल घर लाकर काफी कम लागत में सादगी और शुद्धता से मिठाई बना सकते हैं . इससे हमारी आर्थिक बचत होगी और हम महंगाई की मार से कुछ तो बचे रहेंगे .वास्तव में किसी भी सामान की आनन -फानन खरीदी करने से पहले हमें ठन्डे दिमाग से यह भी विचार कर लेना चाहिए कि इस वक्त उस सामान का होना क्या हमारे लिए वाकई बहुत ज़रूरी है ? उस वस्तु-विशेष के बिना भी अगर जिंदगी चल सकती है, तो उस पर खर्च करने की ज़रूरत ही क्या है ?
अधिकाँश भारतीय समाजों में मृत्यु -भोज की परिपाटी महंगाई के इस जमाने में मृतक के शोक-संतप्त परिवार पर आर्थिक दबाव डालती नज़र आती है. पहले कभी इस परिपाटी का उद्देश्य यह रहा होगा कि स्थानीय समाज के लोग सामूहिक रूप से एक निश्चित दिन मृतक के घर जा कर उसके परिवार के दुःख में सहभागी बनें, संवेदना व्यक्त करें और उसका हौसला बढ़ा कर उसे यह भरोसा दिलाएं कि शोक और संकट की इस घड़ी में हम सब तुम्हारे साथ हैं. तब मृतक का परिवार अपने घर आने वाले मेहमानों के लिए शिष्टाचार वश जल-पान और भोजन की व्यवस्था करता रहा होगा .आगे चलकर यह सामाजिक शिष्टाचार मृत्यु-भोज की परम्परा में बदल गया .पर आज गरीब परिवारों में तो यह परम्परा दोहरे संकट का कारण बन जाती है. एक तो परिवार के किसी सदस्य की मौत का दुःख और ऊपर से मृत्यु-भोज का आर्थिक बोझ . ऐसे में छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव जिले में बौद्ध समाज ने इस परिपाटी को खत्म करने का निर्णय ले कर दूसरों को भी एक नया रास्ता दिखाया है. बौद्ध समाज का यह एक साहसिक फैसला है. मुझे यह खबर दैनिक नयी दुनिया में पढ़ने को मिली . इस खबर में एक ऐसा सन्देश निहित है ,जो दूसरों को भी कुछ सोचने-विचारने के लिए जाग्रत कर सकता है .
भ्रष्टाचारियों के लिए तो फिजूलखर्ची कोई मायने नहीं रखती. इस देश में शादी की साल-गिरह पर अपनी पत्नी को करोड़ों-अरबों रूपयों के हवाई-जहाज और सत्ताईस-मंजिला आलीशान इमारत उपहार में दे कर गरीबों का उपहास करने वाले सफेदपोश डकैत भी हैं , उनका -हमारा मुकाबला नहीं हो सकता और उन डाकुओं से हम अपनी तुलना करके स्वयं को अपमानित भी नहीं करना चाहते और कर भी नहीं सकते ,लेकिन हम अपने दायरे में , अपनी आर्थिक हैसियत के अनुसार अपने खर्चों में कटौती के कुछ सहज-सरल उपाय कर महंगाई के घातक प्रभाव से कुछ हद तक बच तो सकते हैं . स्वराज्य करुण
फिजूलखर्ची, बचत और मंहगाई दिखते आसपास हैं, लेकिन इतने करीबी भी नहीं कि सीधे एक-दूसरे पर असर डालें.
ReplyDeleteमहसूस करें तो आज हमारे देश में भ्रष्टाचारऔर महंगाई भी किसी सुनामी से कम नहीं है. भ्रष्टाचार से नैतिकता तबाह हो रही है, सामाजिकता तबाह हो रही है और संस्कृति भी नष्ट हो रही है....सोलह आने सच्ची बात .
ReplyDeleteसार्थक चिंतन !!
सुझाव तो अमल करने योग्य हैं।
ReplyDeleteधन बचाना भी कमाने जैसा ही है।
आभार
Fijul khrch par rok lgaae to baat bane ...
ReplyDeleteसभी उपाये कारगर हो सकते हैं मगर अमल कौन करेगा। सब अपनी मस्ती मे चले जा रहे हैं। शुभकामनायें।
ReplyDeleteउपाय सब बता सकते है अमल कोई नही करता………विचारणीय आलेख्।
ReplyDeleteबहुत सुन्दर ....स्वागत आपका ब्लॉग की दुनिया में....लिखते रहिये.
ReplyDeleteपंकज झा.
सार्थक आलेख !
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