स्वराज्य करुण
- स्वराज्य करुण
तरन्नुम के तराने क्यों बेजान हो गये
जान कर भी जान-ए-मन नादान हो गये !
बातें तो बहुत करते हैं ईमान -धरम की
फिर भी न जाने क्यों वो बेईमान हो गये !
समझ नहीं आयी आज तक ये पहेली ,
इंसान बनते -बनते क्यों हैवान हो गये !
यहाँ भीड़ मुखौटों की , हर कोई अकेला
सैलाब में शहर के, सब अनजान हो गये !
खो गयी हर दिशा , दिशाओं की भीड़ में ,
लक्ष्य बहुत दूर आसमान हो गये !
कल तक जो यार थे, करते हमें प्यार थे ,
भूली -बिसरी यादों की पहचान हो गये !
अपनों को अपनेपन से भी नहीं मतलब ,
सबके सब रूपयों के भगवान हो गये ! हवेली में है मंदिर ,यहाँ झोपड़ी में पुजारी
क्या कहें दो लफ्ज़ भी वीरान हो गये !
- स्वराज्य करुण
@हवेली में है मंदिर ,यहाँ झोपड़ी में पुजारी
ReplyDeleteक्या कहें दो लफ्ज़ भी वीरान हो गये !
बहुत सुंदर गजल है, हरेक शेर वजनदार है।
आभार
बहुत सुंदर गजल है, हरेक शेर वजनदार है। धन्यवाद|
ReplyDeleteकल तक जो यार थे, करते हमें प्यार थे ,
ReplyDeleteभूली-बिसरी यादों की पहचान हो गये !
प्यार, इंसानियत जैसी बातें अब सचमुच बिसरती जा रही हैं।
आज की परिस्थिति का अच्छा चित्रण है इस ग़ज़ल में।
यहाँ भीड़ मुखौटों की , हर कोई अकेला
ReplyDeleteसैलाब में शहर के, सब अनजान हो गये !
कितना सटीक कहा है……………आज के हालात का सटीक चित्रण किया है।
सबके सब रूपयों के भगवान हो गये !---सच ही कलयुग है, करुण जी....शानदार गज़ल...
ReplyDeleteमन मंदिर में विराजे राम.
ReplyDeleteअपनों को अपनेपन से भी नहीं मतलब ,
ReplyDeleteसबके सब रूपयों के भगवान हो गये !
हवेली में है मंदिर ,यहाँ झोपड़ी में पुजारी
क्या कहें दो लफ्ज़ भी वीरान हो गये !.....
यथार्थपरक बेहतरीन ग़ज़ल...हार्दिक बधाई.
यहाँ भीड़ मुखौटों की , हर कोई अकेला
ReplyDeleteसैलाब में शहर के, सब अनजान हो गये !
...
बहुत ख़ूबसूरत गज़ल..हरेक शेर बहुत उम्दा..
हवेली में है मंदिर ,यहाँ झोपड़ी में पुजारी
ReplyDeleteक्या कहें दो लफ्ज़ भी वीरान हो गये !
बहुत खूब कहा है आपने ...।