- स्वराज्य करुण
आंगन की दीवार पर काला कौआ,
दे गया मीत ,मेरे मन को बुलौआ !
जंगल में सपनों के हिरणों की आज
निकलेगी खूब धूम-धाम से बारात !
खेतों के आंगन से वन-उपवनों तक ,
पर्वतों के शिखरों से झूमते झरनों तक ,
लोक-गीतों की मधुर तान की तरह ,
छा गया दिल में आज नया प्रभात !
पेड़ों में खिलने लगे हरे-भरे पत्ते ,
खुशियों से हिलने लगे भंवरों के छत्ते !
फागुन के पांवों की आने लगी आहट,
माघ ने भी हिलाए बिदाई के हाथ !
पंछियों की आँखों में एक नयी चमक है ,
प्यार की रोटी में चुटकी भर नमक है !
सोनमुखी किरणों की धरती पर मानो ,
वन-फूलों से सजी हवाओं की गाड़ी ,
चल पड़ी देखो अब उनकी सवारी !
कुदरत की दुल्हन से जल्द होने को है,
मौसम के दूल्हे की आज मुलाक़ात !
- स्वराज्य करुण
fagun ki aahat bahut sundar hai
ReplyDeleteबहुत मनभावन है यह आहट
ReplyDeleteबहुत सुन्दर है फागुन की आहट| धन्यवाद|
ReplyDeleteबड़ी प्यारी मीठी सी है ये फागुन की आहट.सारी पंक्तियाँ भी फागुन के रंग में नहा गई है.
ReplyDeleteपेड़ों में खिलने लगे हरे-भरे पत्ते ,
ReplyDeleteखुशियों से हिलने लगे भंवरों के छत्ते !
फागुन के पांवों की आने लगी आहट,
माघ ने भी हिलाए बिदाई के हाथ !
जी हाँ, फागुन की आहट सुनाई दे रही है आपके इस सुन्दर से गीत में..
सचमुच फागुन की दस्तक है यह.
ReplyDeleteबने फ़गुनाए हस भैया
ReplyDeleteराम राम
पंछियों की आँखों में एक नयी चमक है ,
ReplyDeleteप्यार की रोटी में चुटकी भर नमक है !
फागुन के आगमन के सन्देश का बहुत मनोहारी शब्द चित्र...सच में मन को हर्षा दिया आपकी रचना ने...
फागुन के स्वागत के लिए तत्पर यह गीत प्रकृति का रंगीन चित्र भी उतार रहा है।
ReplyDeletesuswagtam
ReplyDeleteआंगन की दीवार पर काला कौआ,
ReplyDeleteदे गया मीत ,मेरे मन को बुलौआ !
फागुनी आहट ..!
सुंदर रचना .!
त्योहारों की आहट मन मस्तिष्क कों प्रसन्न कर देती है । बहुत सुन्दर रचना ।
ReplyDeleteबधाई ।
फागुन को निमंत्रण देती आपकी ये बेहतरीन गीत....
ReplyDelete*गद्य-सर्जना*:-“तुम्हारे वो गीत याद है मुझे”
वाह...बहुत ही सुन्दर ...मनमोहक गीत...
ReplyDeleteशब्दों के माध्यम से सुन्दर छटा बिखेरी आपने...मन हरा हो गया...
फागुन की आहट अच्छी लगी !
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