स्वराज्य करुण
नफरत की इस तेज धूप से चलो प्यार की छाँव में
आओ मेरे हमसफर ,चलें हम मानवता के गाँव में !
इक-दूजे से कटते -मरते
जहां लोग न हों ,
खुदगर्जी और बेईमानी का
कोई रोग न हो !
जहां न कोलाहल कठोर हो , भूख-प्यास अभाव में
आओ मेरे हमसफर, चलें हम मानवता के गाँव में !
शोषण के नागों की
जहां न हथकड़ियाँ हों,
हँसी-खुशी से जहां
जिंदगी की घड़ियाँ हों !
गतिशीलता पाँव जमा ले जन-जन के हर पाँव में ,
आओ मेरे हमसफ़र , चलें हम मानवता के गाँव में !
ख्वाब किसी का लुट जाए,
ऐसी कोई बात न हो ,
उमंगों की बौछार हो सदा ,
दर्दों की बरसात न हो !
शान देश की बढ़ती जाए , लगे कभी न दांव में ,
आओ मेरे हमसफ़र , चलें हम मानवता के गाँव में !
- स्वराज्य करुण
gaawe charo or parkati ki chave
ReplyDeleteati sunder
सुन्दर भाव,बेहतर रचना ; अच्छी तुकबंदी .बधाई .
ReplyDeleteअति सुन्दर !
ReplyDeleteबहुत सुन्दर भाव..हरेक को तलाश है ऐसे गाँव की...सुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteख्वाब किसी का लुट जाए,
ReplyDeleteऐसी कोई बात न हो ,
उमंगों की बौछार हो सदा ,
दर्दों की बरसात न हो !
एक अच्छे समाज की कल्पना मे सार्थक अभिव्यक्ति। शुभकामनायें।
सुन्दर ! बदलते परिवेश में सकून की चहत को बखूबी दर्शाया है ! !
ReplyDeleteकविता को फीकी करती तस्वीर.
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