जन्म से ही जी रहे दर्द के सैलाब में ,
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
बचपन से भूख-प्यास झेलते रहे,
खुद को हम इसी तरह ठेलते रहे !
वही एक कहानी है पूरी किताब में ,
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
दिन हो या रात ये समय गतिमान है ,
जिंदगी तो हर पल एक इम्तहान है!
सुलगते सवालों के चहकते ज़वाब में ,
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
फिर न कोई यहाँ ग़मगीन बने,
हर मौसम हमेशा रंगीन बने !
खिलते गुलमोहर ,पलाश और गुलाब में
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
- स्वराज्य करुण
... बगरो बसंत है.
ReplyDeleteबसंत ही बसंत मित्र आयो बसंत है।
ReplyDeleteबसंत ही बसंत मित्र गायो बसंत है॥
डफ़ नगाड़े फ़ाग की महफ़िल सजाओ।
भंगियाओ झूमो मित्र आयो बसंत है॥
खिलते गुलमोहर ,पलाश और गुलाब में
ReplyDeleteचलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में
wah.ekdam man ki baat kah di ....
bahut hi umadaa . dil ko chhune wali.
ReplyDeleteदिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteआप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
सादर,
डोरोथी.