Tuesday, February 8, 2011

(गीत) कुछ वासन्ती ख्वाब में !

                                       

                                     -  स्वराज्य करुण

 जन्म से ही  जी रहे दर्द के सैलाब में ,
चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में !
   
     बचपन  से भूख-प्यास झेलते रहे,
     खुद को  हम  इसी तरह ठेलते रहे !

  वही   एक कहानी है  पूरी किताब में ,
चलो जियें आज  कुछ वासन्ती ख्वाब में  !
     
    दिन हो या रात ये समय गतिमान है ,
    जिंदगी तो हर पल  एक इम्तहान है!

सुलगते सवालों के चहकते ज़वाब में ,
चलो  जियें आज  कुछ वासन्ती ख्वाब में !
  
       फिर न  कोई यहाँ   ग़मगीन बने,
        हर मौसम हमेशा  रंगीन बने !


 खिलते गुलमोहर ,पलाश और गुलाब में
चलो जियें आज कुछ  वासन्ती ख्वाब में !

                                                                                                      -  स्वराज्य करुण

5 comments:

  1. ... बगरो बसंत है.

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  2. बसंत ही बसंत मित्र आयो बसंत है।
    बसंत ही बसंत मित्र गायो बसंत है॥
    डफ़ नगाड़े फ़ाग की महफ़िल सजाओ।
    भंगियाओ झूमो मित्र आयो बसंत है॥

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  3. खिलते गुलमोहर ,पलाश और गुलाब में
    चलो जियें आज कुछ वासन्ती ख्वाब में
    wah.ekdam man ki baat kah di ....

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  4. bahut hi umadaa . dil ko chhune wali.

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  5. दिल की गहराईयों को छूने वाली एक खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
    आप को वसंत पंचमी की ढेरों शुभकामनाएं!
    सादर,
    डोरोथी.

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