-- स्वराज्य करुण
अभावों की छाया में जीवन यह बीत रहा
खामोशी फ़ैल रही , हर्ष-कलश रीत रहा !
मन बहलाने को नागफनी उद्यान है ,
प्यास बहलाने को मृग-जल मैदान है !
हर तरफ मतलब के पंछियों की भीड़ ,
शोर-गुल में सुने कौन किसकी पीर !
आदर्शों को जिसने भी कच्चा ही चबा लिया
पेट की लड़ाई में सिर्फ वही जीत रहा !
कहो अब किसे यहाँ देश की चिन्ता है,
मिलते ही मौक़ा वह नोट नए गिनता है !
डाकुओं की तरह लूट कर आम जनता को,
संसद में जाते ही महापुरुष बनता है !
वर्तमान यह जबकि भंवर में था फँसने लगा ,
दूर खड़ा तमाशा तब देखता अतीत रहा !
जाने कब कैसे ये गीत पुराने हुए ,
समय काटने के कुछ नए बहाने हुए !
धरती के आंचल को चीरने लगे ,
सब के सब दौलत के दीवाने हुए !
देश-प्रेम की मधुर आवाज़ मंद पड़ गयी ,
अब न किसी ह्रदय में स्नेह -संगीत रहा !
- स्वराज्य करुण
अभावों की छाया में जीवन यह बीत रहा
खामोशी फ़ैल रही , हर्ष-कलश रीत रहा !
मन बहलाने को नागफनी उद्यान है ,
प्यास बहलाने को मृग-जल मैदान है !
हर तरफ मतलब के पंछियों की भीड़ ,
शोर-गुल में सुने कौन किसकी पीर !
आदर्शों को जिसने भी कच्चा ही चबा लिया
पेट की लड़ाई में सिर्फ वही जीत रहा !
कहो अब किसे यहाँ देश की चिन्ता है,
मिलते ही मौक़ा वह नोट नए गिनता है !
डाकुओं की तरह लूट कर आम जनता को,
संसद में जाते ही महापुरुष बनता है !
वर्तमान यह जबकि भंवर में था फँसने लगा ,
दूर खड़ा तमाशा तब देखता अतीत रहा !
जाने कब कैसे ये गीत पुराने हुए ,
समय काटने के कुछ नए बहाने हुए !
धरती के आंचल को चीरने लगे ,
सब के सब दौलत के दीवाने हुए !
देश-प्रेम की मधुर आवाज़ मंद पड़ गयी ,
अब न किसी ह्रदय में स्नेह -संगीत रहा !
- स्वराज्य करुण
आदर्शों को जिसने भी कच्चा ही चबा लिया
ReplyDeleteपेट की लड़ाई में सिर्फ वही जीत रहा !
sir ji bahut hi sunder
aabhar.........
वर्तमान यह जबकि भंवर में था फँसने लगा ,
ReplyDeleteदूर खड़ा तमाशा तब देखता अतीत रहा !
बढिया सामयिक रचना है।
देश-प्रेम की मधुर आवाज़ मंद पड़ गयी ,
ReplyDeleteअब न किसी ह्रदय में स्नेह -संगीत रहा !
बिलकुल सही कहा अब तो स्कूल के फंक्शन्स पर भी देश प्रेम के गीत नजर नही आते बस घटिया उछलकूद ही रह गयी । जब हमारे नेता ही नीच मानसिकता वाले हो गये तो बच्चे कहाँ से प्रेरणा लेंगे। अच्छे गीत के लिये बधाई।
देश-प्रेम की मधुर आवाज़ मंद पड़ गयी ,
ReplyDeleteअब न किसी ह्रदय में स्नेह -संगीत रहा
अब लोग देश की कहाँ केवल अपनी बात सोचते हैं ..अच्छी अभिव्यक्ति
ऐसे ही झंकृत होंगे तार.
ReplyDeleteहमेशा की तरह सुन्दर रचना !
ReplyDeleteकहो अब किसे यहाँ देश की चिन्ता है,
ReplyDeleteमिलते ही मौक़ा वह नोट नए गिनता है !
डाकुओं की तरह लूट कर आम जनता को,
संसद में जाते ही महापुरुष बनता है !
Beautiful creation !
.
samay saapeksh kawita
ReplyDeletesach ke behad kareeb
कहो अब किसे यहाँ देश की चिन्ता है,
ReplyDeleteमिलते ही मौक़ा वह नोट नए गिनता है !
डाकुओं की तरह लूट कर आम जनता को,
संसद में जाते ही महापुरुष बनता है !
आज की व्यवस्था पर बहुत सटीक टिप्पणी..जब आज के नेता ही भ्रष्ट हों तो उनसे क्या उम्मीद की जा सकती है..बहुत सार्थक और सुन्दर प्रस्तुति..
करारा प्रहार।
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