-- स्वराज्य करुण
कहते हैं - मेहनत करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता ? धरती माता हमें हरियाली के रूप में हर तरह की सौगात देने हमेशा तैयार रहती है . सिर्फ उसके आंचल में हमारी ओर से पसीने की महानदी बहाने की ज़रूरत है. पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री ने कभी 'जय जवान-जय किसान ' का प्रेरणादायक नारा देकर वीर जवानों के साथ-साथ मेहनतकश किसानों का भी हौसला और गौरव बढ़ाया था , लेकिन आज हमारे कृषि -प्रधान देश में ऐसा लगता है कि खेती को सर्वोत्तम व्यवसाय मानने की अवधारणा भौतिकता की चकाचौंध में कहीं विलुप्त होती जा रही है. पढ़-लिख कर और कॉलेज की डिग्री लेकर हमारे कृषक-पुत्र भी खेती से विमुख होते जा रहे हैं. फिर भी इंसान के ज़िंदा रहने के लिए अनाज की और अनाज के लिए खेती की अनिवार्यता कभी खत्म नहीं होगी . युगों -युगों से खेती होती आयी है और होती रहेगी .यह अलग बात है कि बढ़ती आबादी और घटती कृषि ज़मीन के बीच भविष्य में खेती का स्वरुप क्या होगा ?
खाली पड़े खेतों को पसीने का इंतज़ार
लेकिन क्या वास्तव में कृषि-भूमि घट रही है ? भारत में अधिकाँश खेती वर्षा -आधारित है,जहां मानसून की बिदाई और फसल की कटाई के बाद देश के अनेक राज्यों में, खास तौर पर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा जैसे चावल उत्पादक राज्यों में हमारे अधिकाँश किसान भाई अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं,जिन्हें देख कर कौन यह मानने को तैयार होगा कि भारत में खेती का रकबा घट रहा है ? आप रेलगाड़ी में जा रहे हों ,या बस में ,या फिर किसी और वाहन में, कई इलाकों में वर्षा-ऋतु के बाद खाली पड़े खेतों को देखकर आपको भी ज़रूर दुःख होता होगा !वहीं इन सूखे खेतों के आजू-बाजू की ज़मीन पर कहीं-कहीं हरियाली नज़र आने पर आश्चर्य भी ! उस दिन एक सड़क से गुजर रहा था,.किनारे कुछ खेतों में पानी भरा हुआ था और अगल-बगल के खेत सूखे और वीरान ! देख कर ठहर गया . पानी भरे खेतों में कुछ किसानों को सपरिवार काम करते देख उनसे बातें की ,तो मालूम हुआ कि एक सिंचाई बाँध से गर्मी की फसल के लिए नहर में पानी छोड़ा गया है. वे भी इसका फायदा उठा कर रबी फसलों की तैयारी कर रहे हैं. बेहतर सिंचाई-सुविधा होने पर भी बाजू वाले के खेत खाली क्यों पड़े हैं, पूछने पर उनका कहना था कि यह तो खेत वाला ही बेहतर बता सकता है. अपनी-अपनी जरूरत और अपनी -अपनी समझ है.
दरअसल किसी फैक्ट्री की तरह ये खेत भी किसानों के लिए किसी उद्योग से कम नहीं हैं,जिनमे इंसान के ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी सबसे मूल्यवान सामान याने कि अनाज पैदा होता है. बशर्ते खेतों को खाली छोड़ देने वाले किसान इसके महत्व को समझें. ! दो फसली खेती के मामले में पंजाब -हरियाणा हमारे रोल-मॉडल हो सकते हैं , पर विडम्बना यह कि हमारे यहाँ खरीफ के धान की कटाई के बाद रबी मौसम की फसल उगाने में अधिकतर किसानों को खास दिलचस्पी नहीं रहती और वे अक्सर आर्थिक परेशानियों का रोना रोते रहते हैं ,जबकि आज केन्द्र और राज्य सरकारों की अनेक ऐसी योजनाएं हैं , जिनका फायदा लेकर वे अपने खेतों में सिंचाई के साधन भी विकसित कर सकते हैं,और हर मौसम में खेती. लेकिन शायद जानकारी का अभाव है या आलस्य-जनित अरुचि ,जिसकी वज़ह से अधिकतर किसानों को यथा-स्थिति में जीने की आदत हो गयी है.साल भर में बरसात के चार महीने जमकर खेती की और बाकी के आठ माह ?
मेहनत से आयी हरियाली
दूसरी ओर अपवाद स्वरुप चमार सिंह पटेल जैसे मेहनती किसान भी हैं , जो कम पढ़े -लिखे होने के बावजूद अपने परम्परागत ज्ञान और अनुभवों से उन्हीं खेतों को बारहों महीना हरा-भरा बनाए रख कर किसानों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन जाते हैं.श्री पटेल छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में तहसील मुख्यालय बसना के निवासी हैं . उन्होंने बसना के नज़दीक मुख्य सड़क के किनारे ग्राम भूकेल के पास मात्र सात एकड़ ज़मीन पर बारहमासी खेती का एक ऐसा मॉडल खड़ा कर दिया है , जो मुबई से कोलकाता की तरफ जाने वाले राष्ट्रीय राज-मार्ग क्रमांक-५३ पर मुसाफिरों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है. अपने इस कृषि-प्रक्षेत्र में श्री पटेल ने मात्र छह महीने में सागौन का एक ऐसा जंगल भी खड़ा कर दिया है, जिसके पौधे अब पन्द्रह फीट की ऊंचाई को पार करने लगे हैं. आम तौर पर इमारती लकड़ी सागौन के बारे में कहा जाता है कि उसके पौधों को पेड़ बनने में कई-कई साल लग जाते हैं , लेकिन श्री पटेल ने सागौन की कलमों से पौधे तैयार कर अपने सात एकड़ के इस रकबे के एक हिस्से में छह महीने में ही उनका अच्छा-खासा लहलहाता जंगल बना दिया है , हालांकि वे मानते हैं कि ये पेड़ अभी अगले छह महीने तक और बढ़ेंगे ,लेकिन इसके बाद इनकी ग्रोथ रुक जाएगी और मोटाई बढ़ेगी . सागौन की ऊंचाई सिर्फ छह माह में पन्द्रह फीट हो जाने का अपने आप में यह एक अनोखा कीर्तिमान है. सबको मालूम है कि इमारती लकड़ी होने के नाते कीमत के नज़रिए से बाज़ार में सागौन की हैसियत क्या है ? श्री पटेल के लिए यह अभी फिक्स्ड डिपोजिट की तरह है.
छह माह के सागौन का जंगल और बीच में लगे पपीते
प्रयोग धर्मी किसान चमार सिंह पटेल और उनके बेटे
वन और कृषि विभाग के अधिकारी भी श्री पटेल के इस देशी प्रयोग की कामयाबी से भौचक रह गए हैं .पिछले हफ्ते जब मैंने उनके बारहमासी खेतों में जाकर इस प्रयोग को देखा और अखबारों में फोटो सहित समाचार दिए , तो बकौल श्री पटेल खबर पढ़कर उनके पास इन दोनों विभागों के वरिष्ठ अफसरों के और कई किसानों के भी फोन आने लगे .इंदिरा गांधी कृषि विश्व-विद्यालय रायपुर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने भी उन्हें फोन कर अपनी दिलचस्पी दिखायी. ये वही चमार सिंह पटेल हैं , जिन्होंने वर्ष २००६ से २००८ के बीच उन किसानों से, जो अपनी ज़मीन होने बावजूद खेती नहीं कर रहे थे, उनकी भूमि किराए पर लेकर उन्हीं के सामने बायो-डीजल के लिए उपयोगी रतन जोत के लगभग चार करोड़ पौधे तैयार कर सबको हैरत में डाल दिया था .छत्तीसगढ़ सरकार की एजेंसी 'क्रेडा ' के सहयोग से इन पौधों को उन्होंने महाराष्ट्र , बंगाल और ओड़िशा में तीन बड़ी निजी कंपनियों को बेचा ,जिससे लगभग तीन करोड़ रूपए की आमदनी हुई. वे छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक सफल रतनजोत कृषक हैं. हमारे तत्कालीन वैज्ञानिक राष्ट्रपति डॉ. ए.पी. जे. अब्दुल कलाम भी उनसे मिलकर और रतन जोत की खेती में उनकी कामयाबी के बारे में हैदराबाद की एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके अनुभवों को सुनकर काफी प्रभावित हुए थे . रायपुर प्रवास के दौरान उन्होंने श्री पटेल को व्यक्तिगत रूप से याद किया और राज-भवन में आमंत्रित कर उनसे मुलाक़ात की. मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह भी श्री पटेल को एक आदर्श कृषक मानते हैं और उनके प्रशंसक हैं.,जबकि श्री पटेल के अनुसार उन्हें रतनजोत की खेती के रास्ते कामयाबी का यह मुकाम डॉ. रमन सिंह की प्रेरणा से ही हासिल हुआ है . श्री पटेल रतनजोत से मिली आर्थिक सफलता में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को नहीं भूल पाए . मानव-कल्याण की भावना से उन्होंने बसना के सरकारी अस्पताल को मरीजों की सेवा के लिए दान स्वरुप एक एम्बुलेंस प्रदान किया
. पटेल : सागौन और पपीते की अपनी मिश्रित खेती के बीच
बेहद विनम्र स्वभाव के प्रयोग-धर्मी किसान श्री पटेल इन दिनों सागौन के ज़ल्द बढ़ने वाले पौधों से एक हरा -भरा जंगल बना कर उसके बीच-बीच में पपीता , मिर्च , बैंगन इत्यादि सब्जियों की भी खेती कर रहे हैं . उनके बी.ए. पास पुत्र वसंत उनके सहयोगी हैं. अपने कृषि-प्रक्षेत्र के एक हिस्से में रबी मौसम का बेहतर उपयोग करते हुए चमार सिंह पटेल ने गेंहूँ भी बोया है और उसी में सरसों भी बो दिए हैं. गेंहूँ की बालियों में दाने आ रहे हैं और उनके बीच सरसों के पीले फूलों की आभा देखते ही बनती है. स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई उपकरणों के ज़रिए वे अपनी खेती में आधुनिक तकनीक का भी अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं. कहने का आशय यह कि कोई किसान अगर ठान ले ,तो उसके खेत कभी वीरान नहीं रह सकते . उनमे हर मौसम में हरियाली होगी .कृषि-उत्पादन बढ़ेगा तो भूख और गरीबी की समस्या खत्म होगी . हरियाली से ही किसानों के घरों में खुशहाली आएगी . और जब किसान खुशहाल होगा , तो देश भी खुशहाल होगा . चमार सिंह पटेल अपनी बारहमासी खेती से देश के किसानों को यह सन्देश भी दे रहे हैं कि खेत उनके मंदिर हैं और मेहनत उनकी पूजा ! - स्वराज्य करुण
कहते हैं - मेहनत करे इंसान तो क्या हो नहीं सकता ? धरती माता हमें हरियाली के रूप में हर तरह की सौगात देने हमेशा तैयार रहती है . सिर्फ उसके आंचल में हमारी ओर से पसीने की महानदी बहाने की ज़रूरत है. पूर्व प्रधान मंत्री स्वर्गीय लालबहादुर शास्त्री ने कभी 'जय जवान-जय किसान ' का प्रेरणादायक नारा देकर वीर जवानों के साथ-साथ मेहनतकश किसानों का भी हौसला और गौरव बढ़ाया था , लेकिन आज हमारे कृषि -प्रधान देश में ऐसा लगता है कि खेती को सर्वोत्तम व्यवसाय मानने की अवधारणा भौतिकता की चकाचौंध में कहीं विलुप्त होती जा रही है. पढ़-लिख कर और कॉलेज की डिग्री लेकर हमारे कृषक-पुत्र भी खेती से विमुख होते जा रहे हैं. फिर भी इंसान के ज़िंदा रहने के लिए अनाज की और अनाज के लिए खेती की अनिवार्यता कभी खत्म नहीं होगी . युगों -युगों से खेती होती आयी है और होती रहेगी .यह अलग बात है कि बढ़ती आबादी और घटती कृषि ज़मीन के बीच भविष्य में खेती का स्वरुप क्या होगा ?
खाली पड़े खेतों को पसीने का इंतज़ार
लेकिन क्या वास्तव में कृषि-भूमि घट रही है ? भारत में अधिकाँश खेती वर्षा -आधारित है,जहां मानसून की बिदाई और फसल की कटाई के बाद देश के अनेक राज्यों में, खास तौर पर छत्तीसगढ़ और ओड़िशा जैसे चावल उत्पादक राज्यों में हमारे अधिकाँश किसान भाई अपने खेतों को खाली छोड़ देते हैं,जिन्हें देख कर कौन यह मानने को तैयार होगा कि भारत में खेती का रकबा घट रहा है ? आप रेलगाड़ी में जा रहे हों ,या बस में ,या फिर किसी और वाहन में, कई इलाकों में वर्षा-ऋतु के बाद खाली पड़े खेतों को देखकर आपको भी ज़रूर दुःख होता होगा !वहीं इन सूखे खेतों के आजू-बाजू की ज़मीन पर कहीं-कहीं हरियाली नज़र आने पर आश्चर्य भी ! उस दिन एक सड़क से गुजर रहा था,.किनारे कुछ खेतों में पानी भरा हुआ था और अगल-बगल के खेत सूखे और वीरान ! देख कर ठहर गया . पानी भरे खेतों में कुछ किसानों को सपरिवार काम करते देख उनसे बातें की ,तो मालूम हुआ कि एक सिंचाई बाँध से गर्मी की फसल के लिए नहर में पानी छोड़ा गया है. वे भी इसका फायदा उठा कर रबी फसलों की तैयारी कर रहे हैं. बेहतर सिंचाई-सुविधा होने पर भी बाजू वाले के खेत खाली क्यों पड़े हैं, पूछने पर उनका कहना था कि यह तो खेत वाला ही बेहतर बता सकता है. अपनी-अपनी जरूरत और अपनी -अपनी समझ है.
दरअसल किसी फैक्ट्री की तरह ये खेत भी किसानों के लिए किसी उद्योग से कम नहीं हैं,जिनमे इंसान के ज़िंदा रहने के लिए ज़रूरी सबसे मूल्यवान सामान याने कि अनाज पैदा होता है. बशर्ते खेतों को खाली छोड़ देने वाले किसान इसके महत्व को समझें. ! दो फसली खेती के मामले में पंजाब -हरियाणा हमारे रोल-मॉडल हो सकते हैं , पर विडम्बना यह कि हमारे यहाँ खरीफ के धान की कटाई के बाद रबी मौसम की फसल उगाने में अधिकतर किसानों को खास दिलचस्पी नहीं रहती और वे अक्सर आर्थिक परेशानियों का रोना रोते रहते हैं ,जबकि आज केन्द्र और राज्य सरकारों की अनेक ऐसी योजनाएं हैं , जिनका फायदा लेकर वे अपने खेतों में सिंचाई के साधन भी विकसित कर सकते हैं,और हर मौसम में खेती. लेकिन शायद जानकारी का अभाव है या आलस्य-जनित अरुचि ,जिसकी वज़ह से अधिकतर किसानों को यथा-स्थिति में जीने की आदत हो गयी है.साल भर में बरसात के चार महीने जमकर खेती की और बाकी के आठ माह ?
मेहनत से आयी हरियाली
दूसरी ओर अपवाद स्वरुप चमार सिंह पटेल जैसे मेहनती किसान भी हैं , जो कम पढ़े -लिखे होने के बावजूद अपने परम्परागत ज्ञान और अनुभवों से उन्हीं खेतों को बारहों महीना हरा-भरा बनाए रख कर किसानों के लिए एक प्रेरक उदाहरण बन जाते हैं.श्री पटेल छत्तीसगढ़ के महासमुंद जिले में तहसील मुख्यालय बसना के निवासी हैं . उन्होंने बसना के नज़दीक मुख्य सड़क के किनारे ग्राम भूकेल के पास मात्र सात एकड़ ज़मीन पर बारहमासी खेती का एक ऐसा मॉडल खड़ा कर दिया है , जो मुबई से कोलकाता की तरफ जाने वाले राष्ट्रीय राज-मार्ग क्रमांक-५३ पर मुसाफिरों के लिए आकर्षण का केन्द्र बन गया है. अपने इस कृषि-प्रक्षेत्र में श्री पटेल ने मात्र छह महीने में सागौन का एक ऐसा जंगल भी खड़ा कर दिया है, जिसके पौधे अब पन्द्रह फीट की ऊंचाई को पार करने लगे हैं. आम तौर पर इमारती लकड़ी सागौन के बारे में कहा जाता है कि उसके पौधों को पेड़ बनने में कई-कई साल लग जाते हैं , लेकिन श्री पटेल ने सागौन की कलमों से पौधे तैयार कर अपने सात एकड़ के इस रकबे के एक हिस्से में छह महीने में ही उनका अच्छा-खासा लहलहाता जंगल बना दिया है , हालांकि वे मानते हैं कि ये पेड़ अभी अगले छह महीने तक और बढ़ेंगे ,लेकिन इसके बाद इनकी ग्रोथ रुक जाएगी और मोटाई बढ़ेगी . सागौन की ऊंचाई सिर्फ छह माह में पन्द्रह फीट हो जाने का अपने आप में यह एक अनोखा कीर्तिमान है. सबको मालूम है कि इमारती लकड़ी होने के नाते कीमत के नज़रिए से बाज़ार में सागौन की हैसियत क्या है ? श्री पटेल के लिए यह अभी फिक्स्ड डिपोजिट की तरह है.
प्रयोग धर्मी किसान चमार सिंह पटेल और उनके बेटे
वन और कृषि विभाग के अधिकारी भी श्री पटेल के इस देशी प्रयोग की कामयाबी से भौचक रह गए हैं .पिछले हफ्ते जब मैंने उनके बारहमासी खेतों में जाकर इस प्रयोग को देखा और अखबारों में फोटो सहित समाचार दिए , तो बकौल श्री पटेल खबर पढ़कर उनके पास इन दोनों विभागों के वरिष्ठ अफसरों के और कई किसानों के भी फोन आने लगे .इंदिरा गांधी कृषि विश्व-विद्यालय रायपुर के एक वरिष्ठ वैज्ञानिक ने भी उन्हें फोन कर अपनी दिलचस्पी दिखायी. ये वही चमार सिंह पटेल हैं , जिन्होंने वर्ष २००६ से २००८ के बीच उन किसानों से, जो अपनी ज़मीन होने बावजूद खेती नहीं कर रहे थे, उनकी भूमि किराए पर लेकर उन्हीं के सामने बायो-डीजल के लिए उपयोगी रतन जोत के लगभग चार करोड़ पौधे तैयार कर सबको हैरत में डाल दिया था .छत्तीसगढ़ सरकार की एजेंसी 'क्रेडा ' के सहयोग से इन पौधों को उन्होंने महाराष्ट्र , बंगाल और ओड़िशा में तीन बड़ी निजी कंपनियों को बेचा ,जिससे लगभग तीन करोड़ रूपए की आमदनी हुई. वे छत्तीसगढ़ के सर्वाधिक सफल रतनजोत कृषक हैं. हमारे तत्कालीन वैज्ञानिक राष्ट्रपति डॉ. ए.पी. जे. अब्दुल कलाम भी उनसे मिलकर और रतन जोत की खेती में उनकी कामयाबी के बारे में हैदराबाद की एक राष्ट्रीय संगोष्ठी में उनके अनुभवों को सुनकर काफी प्रभावित हुए थे . रायपुर प्रवास के दौरान उन्होंने श्री पटेल को व्यक्तिगत रूप से याद किया और राज-भवन में आमंत्रित कर उनसे मुलाक़ात की. मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह भी श्री पटेल को एक आदर्श कृषक मानते हैं और उनके प्रशंसक हैं.,जबकि श्री पटेल के अनुसार उन्हें रतनजोत की खेती के रास्ते कामयाबी का यह मुकाम डॉ. रमन सिंह की प्रेरणा से ही हासिल हुआ है . श्री पटेल रतनजोत से मिली आर्थिक सफलता में अपनी सामाजिक जिम्मेदारी को नहीं भूल पाए . मानव-कल्याण की भावना से उन्होंने बसना के सरकारी अस्पताल को मरीजों की सेवा के लिए दान स्वरुप एक एम्बुलेंस प्रदान किया
. पटेल : सागौन और पपीते की अपनी मिश्रित खेती के बीच
बेहद विनम्र स्वभाव के प्रयोग-धर्मी किसान श्री पटेल इन दिनों सागौन के ज़ल्द बढ़ने वाले पौधों से एक हरा -भरा जंगल बना कर उसके बीच-बीच में पपीता , मिर्च , बैंगन इत्यादि सब्जियों की भी खेती कर रहे हैं . उनके बी.ए. पास पुत्र वसंत उनके सहयोगी हैं. अपने कृषि-प्रक्षेत्र के एक हिस्से में रबी मौसम का बेहतर उपयोग करते हुए चमार सिंह पटेल ने गेंहूँ भी बोया है और उसी में सरसों भी बो दिए हैं. गेंहूँ की बालियों में दाने आ रहे हैं और उनके बीच सरसों के पीले फूलों की आभा देखते ही बनती है. स्प्रिंकलर और ड्रिप सिंचाई उपकरणों के ज़रिए वे अपनी खेती में आधुनिक तकनीक का भी अच्छा इस्तेमाल कर रहे हैं. कहने का आशय यह कि कोई किसान अगर ठान ले ,तो उसके खेत कभी वीरान नहीं रह सकते . उनमे हर मौसम में हरियाली होगी .कृषि-उत्पादन बढ़ेगा तो भूख और गरीबी की समस्या खत्म होगी . हरियाली से ही किसानों के घरों में खुशहाली आएगी . और जब किसान खुशहाल होगा , तो देश भी खुशहाल होगा . चमार सिंह पटेल अपनी बारहमासी खेती से देश के किसानों को यह सन्देश भी दे रहे हैं कि खेत उनके मंदिर हैं और मेहनत उनकी पूजा ! - स्वराज्य करुण
अनाज कारखानों में नहीं बनता। इसे खेत ही पैदा कर सकते हैं।
ReplyDeleteनयी पीढी खेती करना नहीं चाहती,इससे बोआई का रकबा कम हो रहा है।
चमार सिंह पटेल का कार्य अनुकरणीय है। नयी पीढी को फ़सल उपजाने की दिशा में गंभीर होना पड़ेगा।
पटेल जी का प्रयोग अनूठा लगा।
ReplyDelete‘खेती, अपन सेती‘- इस कहावत को उन्होंने चरितार्थ कर दिखाया है।
सभी कृषक भाइयों को इनसे प्रेरणा लेनी चाहिए।
पटेल साहब का योगदान सराहनीय और अनुकरणीय है पर मेहनत और लगन आज ढूंढने से मिलती है क्योंकि इसमें कुछ भी ready to eat नहीं होता है
ReplyDeleteबहुत ही अच्छी जानकारी देनेवाला लेख ...
ReplyDeleteपटेल जी की हिम्मत और लगन सराहनीय है |
प्रेरक अच्छी खबरें.
ReplyDeleteचमार सिंह जी का व्यक्तित्व सब के लिये प्रेरनादायी है अगर समय रहते नही चेते तो शायद बहुत देर हो जायेगी। धन्यवाद।
ReplyDeleteek achhote wishay kee samoochee padtaal aur saartahk blog lekhan kee haardik badhaee.
ReplyDeletechhattisgadh me gehu!!! sukhad badlaw kee bayaar
saraswati puljan kee shubhkamnaa
Is Saphalta ki jankari ke bad hame bhi Shri Patelji ke raste par chalna chahiye. Main bhi sarvice ke sath-sath khet bhi karta hoon. Is saphalta ke liye Shri patelji ko PRANAM
ReplyDeleteOP PANDEY