- स्वराज्य करुण
सपनों से जिंदगी इस तरह कट के रह गयी
जैसे किसी राह से नज़र हट के रह गयी !
जैसे किसी राह से नज़र हट के रह गयी !
मंजिलों का बढता ही चला गया फासला ,
क़दमों की हिम्मत भी यहाँ घट के रह गयी !
बुझी नहीं प्यास मेरे मन के महासागर की
हर लहर बूँद-बूँद ' प्यास' रट के रह गयी !
हमसफ़र हर कदम ज़ख्म दे के चले गए ,
परछाई भी ज़ख्मों से लिपट के रह गयी !
सितम देख -देख यहाँ उन मरहम वालों का,
पीडाएं अब मन ही मन सिमट के रह गयीं !
अपनों से मिला एहसास बेगानों की तरह ,
रिश्तों की हरियाली खूब छँट के रह गयी !
हमें विरासत में मिली दुनिया की नफरत ,
मुहब्बत नोटों ही नोटों में बँट के रह गयी !
मुहब्बत नोटों ही नोटों में बँट के रह गयी !
विरासत में मिली नफरत को जवाबी मुहब्बत से लाचार कर दें.
ReplyDeleteबुझी नहीं प्यास मेरे मन के महासागर की
ReplyDeleteहर लहर बूँद-बूँद' प्यास' रट के रह गयी!
वाह वाह, क्या कहने।
बहुत सुन्दर प्रस्तुति।
ReplyDeleteदिल की गहराईयों को छूने वाली खूबसूरत अभिव्यक्ति. आभार.
ReplyDeleteसादर,
डोरोथी.
सुन्दर रचना ! पर क़दमों के हौसले बुलंद रहने चाहिए !
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