जीवन का मकसद खो गया उन्मादों की भीड़ में ,
दिशाहीन हो गए हैं सपने संवादों की भीड़ में !
स्याह -सुरंगों में गायब सूरज आखिर कब आएगा ,
हर बार हम तो छले गए है वादों की भीड़ में !
खेत-खेत और जंगल-जंगल जिसे खोजने आए हैं ,
सावन का वो सरगम गायब सूखे भादों की भीड़ में !
बीते दिन की बात करोगे तो कोई शुभ-लाभ न होगा ,
इसीलिए अब और न उलझो तुम यादों की भीड़ में !
हुए हैं तुम पे ज़ुल्म कई पर किसे कहोगे अपनी कहानी ,
यहाँ तो हर इन्साफ का मंदिर अपराधों की भीड़ में !
खोई मंजिल को पाने की अगर चाहना बाकी है ,
तो फिर तुम अब और न भटको फरियादों की भीड़ में !
स्वराज्य करुण
बहुत अच्छी प्रस्तुति .
ReplyDeleteश्री दुर्गाष्टमी की बधाई !!!
बेहतरीन ख्यालों से सजी कविता ! बधाई !
ReplyDelete4/10
ReplyDeleteअच्छा प्रयास
बहुत अच्छी प्रस्तुति ...
ReplyDeleteआत्मीय टिप्पणियों के लिए आप सबका आभार .
ReplyDeleteachhi kavita
ReplyDeletebadhaye