गौ माता , गायत्री माता और माँ गंगा की पावन भारत -भूमि पर , खास तौर से शहरी क्षेत्रों में हमारा भारतीय समाज गौ माता और गौ वंश की कैसी सेवा कर रहा है , यह देखने के लिए हमें तस्वीर के दोनों पहलुओं को देखना होगा. एक तरफ अपने ज़िंदा रहने के लिए कचरे के ढेर पर चारे की तलाश करते इन बेजुबान चौपायों को देख कर आसानी से महसूस किया जा सकता है कि ज्यादातर लोग गौ पालन के पवित्र कार्य को कितनी लापरवाही से लेते हैं , वहीं दूसरी तरफ कुछ सेवा भावी गौ शालाओं में गौ वंश की बेहतर देख-भाल को देख कर लगता है कि देश और दुनिया में मानवता अभी ज़िंदा है. खेती में हमारे मददगार गौ वंश की महिमा को किसानों से बेहतर भला कौन समझ सकता है , इसलिए गाँवों में तो उनकी बेहतर देख-भाल हो जाती है,जहां उनके लिए कुदरती तौर पर भी चारे-पानी की पर्याप्त व्यवस्था रहती है , लेकिन आम तौर पर शहरों में लोग अपने घरों में जगह नहीं होने के बाद भी दूध के लिए और कुछ आर्थिक लाभ के लिए गौ पालन की लालसा संभाल नहीं पाते . ऐसे लोग गौ माता को घर में लाकर ,गलियों और सड़कों में उसे अपने हाल पर भटकने के लिए छोड़ देते हैं.यह देख कर भी पीड़ा होती है कि कभी सोने की चिड़िया कहलाने वाले जिस देश में दूध की नदिया बहा करती थी , आज वहां के शहरों में गौ शालाओं से ज्यादा मधुशालाओं का बोलबाला है .
.अपने शहर की एक दीवार पर उस दिन अचानक मेरी निगाह पड़ी तो मानो एक झटका सा लगा . दीवार पर किसी ने अपनी गौ-भक्ति जताने के लिए एक नारा लिखवाया है- 'गौ माता तेरा वैभव अमर रहे' और उसी जगह पर मोहल्ले भर के कूड़े और घूरे के अम्बार में गौ माताएं अपनी बछियों के साथ अपने लिए खाना ढूंढ रही है .जहां पौलिथिन जैसी न जाने कितनी तरह की घातक वस्तुएं बिखरी पड़ी थी . मै सोचने लगा -कितने अनैतिक हैं वे लोग, जो अपने घर का कचरा सार्वजनिक सड़क और चौराहों पर लापरवाही से फेंक जाते हैं . फिर ऐसी जगह पर गौ वंश को चारा तलाशते देख सोचने लगा -अगर हैसियत नहीं है तो गाय पालने का शौक ही क्यों पालते हैं लोग ? बचपन से लेकर जवानी तक और शायद जीवन का सफ़र ख़त्म होने तक हम यह जोशीला नारा सुनते और लगाते रहेंगे -'देश-धर्म का नाता है :गाय हमारी माता है ' लेकिन माता से अपने नाते को कैसे निभाएंगे , शायद इस बारे में सोचने की फ़ुरसत हम लोगों में से बहुतों को नहीं है .
यह तस्वीर भी कुछ कहती है
आज के समय में तेजी से बढ़ती आबादी और जंगल की आग जैसे फैलते शहरों में व्यक्तिगत रूप से गौ पालन काफी मुश्किल होता जा रहा है , ऐसे में अगर किसी को निजी तौर पर गौ सेवा की इच्छा हो तो वह सार्वजनिक गौ शालाओं से जुड़ कर भी यह काम कर सकता है . छत्तीसगढ़ में ऐसी कई संस्थाएं बेहतर काम कर रही हैं . राजनांदगांव की पिंजरापोल गौ शाला पिछले एक सौ छह वर्षों से इस पुनीत कार्य में लगी हुई है .उसकी स्थापना वर्ष १९०४ में हुई थी . राजधानी रायपुर में श्री महाबीर गौ शाला का संचालन पिछले करीब नब्बे साल से किया जा रहा है. इसकी स्थापना सन १९२० में की गई थी. इसकी एक शाखा रायपुर से लगभग ४० किलोमीटर पर ग्राम तर्रा में है. रायपुर और तर्रा को मिलाकर संस्था के पास आज करीब आठ सौ जानवर हैं . इनमे से २२५ पशु तर्रा की शाखा में हैं. दोनों जगह गौ वंश की अच्छी सेवा-टहल होती है. संस्था में लगभग एक हजार सहयोगी आजीवन और संरक्षक दानदाता सदस्य के रूप में शामिल हैं. तर्रा की शाखा में संस्था के पास करीब पच्चीस एकड़ जमीन भी है , जिस पर दोनों जगहों के पशुओं के लिए हरे चारे की खेती की जाती है. हालांकि संस्था के प्रतिनिधियों का कहना है कि दोनों गौ शालाओं में पशुओं की बढ़ती संख्या को देखें तो चारा उगाने के लिए उन्हें आज कम से कम एक सौ एकड़ जमीन चाहिए. पन्द्रह साल पहले संस्था के लिए सिर्फ छत्तीस हजार रूपए एकड़ के भाव से भूमि खरीदी गयी थी , लेकिन जमीन का रेट आज उस इलाके में प्रति एकड़ पच्चीस लाख रूपए के आस-पास है, निश्चित रूप से यह एक बड़ी चुनौती है, इसके बावजूद गौ सेवा का यह कार्य उनके द्वारा समर्पित भाव से किया जा रहा है . कई लोग घरों में जगह की कमी या और किसी कारण से अपने गौ वंशीय पशुओं को संस्था में छोड़ जाते हैं. उनकी भी पूरी देख-भाल वहां होती है.प्रति जानवर एक निर्धारित राशि संस्था को देकर लोग अपनी गायों को यहाँ रख जाते हैं. यह राशि पशुओं की खुराक के लिए होती है,इसलिए इसे 'खुराकी' कहा जाता है. रायपुर के मौदहापारा में श्री महावीर गौ शाला के मुख्य परिसर में गाय बैलों के रहने की व्यवस्था तेरह बड़े शेडों में की गयी है . प्रत्येक शेड में उनके लिए चारा-पानी की अच्छी व्यवस्था है . उन्हें बाकायदा नहलाया -धुलाया जाता है. धार्मिक आस्था से जुड़े कई लोग गोपाष्टमी , जन्माष्टमी ,गोवर्धन पूजा अथवा अन्य किसी विशेष प्रसंग में वहां आकर गायों को रोटी , खीर-पूड़ी और लड्डू-पेड़ा भी खिला जाते हैं. परिसर में बायो-गैस सयंत्र भी लगाया गया है.
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तस्वीर का दूसरा पहलू ; गौ शाला में बेहतर जीवन |
गौ शाला से प्रति दिन निकलने वाला गोबर इस सयंत्र में इस्तेमाल कर इसके ज़रिए रसोई-गैस तैयार की जाती है . संस्था को सरकारी अनुदान भी मिलता है .श्री महाबीर गौ शाला छत्तीसगढ़ की उन बयालीस गौ शालाओं में से है , जिनका पंजीयन प्रदेश सरकार द्वारा गठित राज्य गौ सेवा आयोग ने किया है . आयोग द्वारा वर्ष २००८-०९ तक पंजीकृत गौ शालाओं को तीन करोड़ १३ लाख रूपए का अनुदान भी दिया जा चुका है.एक सबसे महत्वपूर्ण बात यह है दस वर्ष पहले बना छत्तीसगढ़ देश का पहला ऐसा राज्य है , जहाँ गौवंशीय पशुओं सहित भैंस वंशीय पशुओं के वध पर प्रतिबन्ध लगा दिया गया है. मुख्य मंत्री डा, रमनसिंह की सरकार ने वर्ष २००४ में ही छत्तीसगढ़ कृषक पशु परिरक्षण अधिनियम लागू कर दुधारू पशुओं की रक्षा के लिए अपनी वचनबद्धता को स्पष्ट कर दिया था. उन्होंने नगरीय निकायों को गोकुल नगर जैसी महत्वपूर्ण योजना दी है. शहरों की घनी बसाहट में चल रही दूध-डेयरियों कोइस योजना के ज़रिए शहर के बाहर सुव्यवस्थित रूप से गौ शालाओं की तर्ज़ पर बसाया जा रहा है .खेती के लिए किसानों को सिर्फ तीन प्रतिशत सालाना ब्याज पर ऋण -सुविधा देने के बाद अब छत्तीसगढ़ सरकार डेयरी व्यवसाय के लिए गौ-पालकों को भी इतनी ही किफायती ब्याजं पर क़र्ज़ दे रही है. रमन सरकार राज्य में कामधेनु विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए भी पुरजोर कोशिश में है.धमतरी जिले के कुरूद निवासी पत्रकार श्री कृपाराम यादव ने अपने साप्ताहिक समाचार पत्र 'छत्तीसगढ़ उदय' की ओर से वर्ष २००९ में गोपाष्टमी पर्व पर प्रकाशित स्मारिका 'गो सेवा सन्देश' में गो वंश और गौ माता के वरदानों के बारे में बहुत ज्ञानवर्धक और उपयोगी सामग्री दी है . कहने का मतलब यह कि समाज में गौ माता की सेवा को गंभीरता से लेने वाले लोग भी हैं.छत्तीसगढ़ में बयालीस पंजीकृत गौ शालाएं भी इसका उदाहरण हैं .जबकि दूसरी तरफ कई ऐसे लोग भी हैं, जो गौ-पालन जैसे पुनीत कार्य को बहुत हलके ढंग से लेते हैं. ऐसे लोग घर में गाय लाकर कुछ दिनों बाद उसे सड़कों पर विचरण के लिए बेसहारा छोड़ देते हैं. अपनी भूख मिटाने के लिए वे कचरे के ढेर पर चारा ढूंढती हैं और अनजाने में पौलिथिन, प्लास्टिक . रद्दी कागज़ और फटे-पुराने कपड़े के टुकड़े और लोहे कील सहित न जाने कितने प्रकार की प्राणघातक चीजें अपने पेट में डाल लेती है. इससे कई बार उनकी असामयिक मौतें भी हो जाती है.
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देवी-देवताओं का निवास : गौ माता का शरीर |
मानव -जीवन पर गौ माता के असंख्य उपकार हैं.पौराणिक मान्यता है कि गौ माता के सम्पूर्ण शरीर में देवी-देवताओं का निवास होता है.देखा और सोचा जाए तो वास्तव में जो दे ,वही देवी और वही देवता .गौ माता हमें कितना कुछ देती है और जब तक जीवित रहती है , कुछ न कुछ देती ही रहती है .इसलिए यह मान्यता यूं ही नहीं बन गयी .मनुष्य पर उसके अनेकानेक वरदानों को देख कर ही लगता है कि समाज में यह सहज भाव से प्रचलित हो गयी. शिशु-अवस्था में माँ का दूध और बचपन में गौ माता का दूध पी कर हम एक स्वस्थ शरीर प्राप्त करते हैं. गौ माता के बछड़े बैल बनकर खेती में किसान के सहयोगी बनते है. गो मूत्र से बन रही औषधियां मधुमेह ,पीलिया और कैंसर जैसी जटिल बीमारियों के इलाज में काफी उपयोगी साबित हो रही हैं.गो मूत्र और गोबर से रोगाणुनाशक फिनायल बन रही है , खेतों में फसलों को कीड़ों से बचाने के लिए गो मूत्र से तैयार कीटनाशक भी काफी अच्छा असर दिखाता है . यह रासायनिक कीट नाशकों के मुकाबले मानव शरीर के लिए ज़रा भी नुकसानदायक नहीं है. मच्छर भगाने के लिए हम आम तौर पर हानिकारक रसायन वाले क्वायल्स का इस्तेमाल करते हैं ,जबकि गो मूत्र और कुछ अन्य वनस्पतियों के मिश्रण से तैयार क्वायल्स मच्छरों को हमसे दूर भगा देते हैं और रासायनिक दुष्प्रभावों से मुक्त होने के कारण हानिकारक भी नहीं होते.वैसे भी गोबर और गो मूत्र से हमारे उपयोग के लिए बनने वाली कोई भी वस्तु हानिकारक नहीं होती . कुटीर उद्योग के रूप में इनका उत्पादन किया जा सकता है .गाय के गोबर से बायो गैस संयंत्र में रसोई गैस के साथ-साथ बिजली बनाने का प्रयोग काफी कामयाब रहा है. गोबर के कंडों को जला कर बनाया गया दन्त-मंजन दाँतों और मुंह के रोगों की रोक-थाम में मददगार होता है. ऐसी महान गौ माता और ऐसे महान गौ वंश की रक्षा के लिए हम नहीं तो आखिर कौन आगे आएगा ? क्या हमारा भारतीय समाज यह भूल गया कि यही वह देश है ,जहाँ योगेश्वर भगवान श्री कृष्ण ने स्वयं आम जनता के साथ गौ पालन कर गौ वंश के संरक्षण का आदर्श स्थापित किया था . यही वजह है कि उन्हें गोपाल , गोविन्द और गोवर्धन के नाम से भी संबोधित किया जाता है . हमारी कृषि-प्रधान और ऋषि-प्रधान संस्कृति में और हमारे सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में गौ माता और गौ वंश की महिमा हजारों-हजार वर्षों से गूँज रही है ? क्या उसकी इस महिमा की रक्षा हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है ?
स्वराज्य करुण
स्वामी दयानंद ने "गोकरुणानिधि" में कहा था कि एक गाय अपने जीवन काल में 4,44020 लोगों का भरण पोषण करती है। स्वामी श्रद्धानंद ने जामा मस्जिद के मिम्बर से की गयी अपनी तकरीर की शुरुवात "गायों की हिंसा मत करो" कह कर की थी।
ReplyDeleteगाय को माता माना जाता है क्योंकि माता के अभाव में गौदुग्ध से नवजात बालक का भरण-पोषण हो जाता है।
भाई साहब,सारगर्भित आलेख के लिए आपको साधुवाद
हमारी कृषि-प्रधान और ऋषि-प्रधान संस्कृति में और हमारे सम्पूर्ण वैदिक साहित्य में गौ माता और गौ वंश की महिमा हजारों-हजार वर्षों से गूँज रही है ? क्या उसकी इस महिमा की रक्षा हमारी नैतिक और सामाजिक जिम्मेदारी नहीं है....बहुत सटीक सवाल उठाया है आपने और इसके लिए हममे से हर कोई जिम्मेदार है. कभी 'शब्द-सृजन की ओर' भी आयें.
ReplyDeleteगाय की दशा पर आपने सुन्दर चित्रण किया है . कहा जाता है कि गाय में 33 कोटि देवी-देवताओं का वास होता है .
ReplyDeleteअच्छा आलेख !
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