ठहरी-ठहरी नदिया लगती , गहरा-गहरा पानी ,
डूब रही है बीच धार में युग की नयी जवानी !
कहाँ है ममता के फूलों के
किसी चमन -सा हिरदय हमारा
जीवन की यात्रा में राह से
हुआ नहीं परिचय हमारा !
हर मुकाम पर दिशा भूलने वाले हम सैलानी ,
डूब रही है बीच धार में युग की नयी जवानी !
प्रवचन बहुत सुना हमने पर
प्रवंचना से मुक्त हुए क्या ,
उपदेशों की प्रयोगशाला से
अब तक संयुक्त हुए क्या !
जब भी अवसर आया अपनी रक्षा की ही ठानी ,
डूब रही है बीच धार में युग की नयी जवानी !
स्वराज्य करुण
कविता काफी अर्थपूर्ण है, और ज्यादा समकालीन । बहुत अच्छी प्रस्तुति।
ReplyDeleteमध्यकालीन भारत-धार्मिक सहनशीलता का काल (भाग-२), राजभाषा हिन्दी पर मनोज कुमार की प्रस्तुति, पधारें
त्वरित टिप्पणी के लिए मनोज जी आपको बहुत-बहुत धन्यवाद .
ReplyDeleteबड़ी गहरा सन्देश देती कविता .....वर्तमान परिपेक्ष्य में प्रासंगिक है !
ReplyDeleteबहुत अच्छी प्रस्तुति। नवरात्रा की हार्दिक शुभकामनाएं!
ReplyDeleteप्रवचन और प्रवंचना वाला अंश ज्यादा बेहतर लगा !
ReplyDeleteआत्मीय प्रतिक्रिया के लिए आप सबका हार्दिक आभार .
ReplyDeleteडूब रही है बीच धार में युग की नयी जवानी
ReplyDeleteबेहतरीन पोस्ट .
नव-रात्रि पर्व की हार्दिक बधाई एवं शुभकामनाएं .
समसामयिक रचना ..
ReplyDeleteप्रशंसनीय गीत...वर्तमान परिवेश का अच्छा चित्रण।
ReplyDeleteस्नेहिल टिप्पणियों के लिए आप सबका हार्दिक आभार. शारदीय-नवरात्रि की हार्दिक बधाई और शुभकामनाएं .
ReplyDeleteaadarniya sir ,punah , ek bahut sundar kavita ,prashansha kay yogya- BALMUKUND
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