पता नहीं फिर कब आएगा सावन मेरे देश में ,
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में !
नज़रबंद है सच की सीता ,
अशोक वृक्ष की छाँव में ,
प्रलोभनों की इस मंडी में
सब कुछ तो है दांव में !
ताश-महल के आँगन परियां बावन मेरे देश में ,
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में !
दांये देखा बेकारी का ,
बांये देखा मक्कारी का,
आगे देखा रंगदारी का ,
पीछे देखा गद्दारी का !
जाने कितने वेश बनाए मन-भावन मेरे देश में ,
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में !
सुबह कहाँ है , शाम कहाँ है ,
मर्यादा का राम कहाँ है ,
नगर-नगर सोने की लंका ,
हरे-भरे अब ग्राम कहाँ हैं !
लालच के दस्यु का चेहरा लुभावन मेरे देश में ,
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में !
स्वराज्य करुण
नज़रबंद है सच की सीता ,
ReplyDeleteअशोक वृक्ष की छाँव में ,
प्रलोभनों की इस मंडी में
सब कुछ तो है दांव में !
बेहतरीन अभिव्यक्ति !
विजयादशमी की बहुत बहुत बधाई !!
वाह भाई साहब, आज तो समा बांध दिया
गेय रचना के लिए आपका कोटिश आभार
विजयादशमी पर्व की हार्दिक शुभकामनाएं
दशहरा में चलें गाँव की ओर-प्यासा पनघट
6.5/10
ReplyDeleteबहुत सुन्दर गीत - गुनगुनाने लायक
सार्थक पोस्ट
आजकल आप ज़बरदस्त फार्म में हैं ! सुन्दर प्रस्तुति ! पर्व की हार्दिक शुभकामनायें !
ReplyDeleteदांये देखा बेकारी का ,
ReplyDeleteबांये देखा लाचारी का
आगे देखा रंगदारी का ,
पीछे देखा गद्दारी का !
जाने कितने वेश बनाए मन-भावन मेरे देश में ,
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में !
सही चित्रण हालातों का सामयिक और सटीक ।
अब तो चारों ओर घूमते रावण मेरे देश में ...
ReplyDeleteहोते हैं मगर राम या साधु के वेश में ....
एक रावण जलाते हैं और कई रावण जन्म ले लेते हैं ..
देश के हालातों पर बहुत सटीक कविता ...!
सरस, संदेशप्रद, सुंदर कविता। बहुत अच्छी प्रस्तुति। राजभाषा हिन्दी के प्रचार-प्रसार में आपका योगदान सराहनीय है।
ReplyDeleteबेटी .......प्यारी सी धुन
bahut sundar rachna!
ReplyDeleteregards,
बहुत खूब बहुत सटीक कहा है
ReplyDeleteरावणों के देश में ही रहते हैं हम। राम बनवास पर गए हैं।
ReplyDeleteसुंदर रचना
ReplyDeleteआज के संधार्व में एक दम सटीक
ReplyDeletebahut hi sunder rachna hai.hamesha hi gungunane ka dil karta.
ReplyDeletehum sub ki shubh kamnai sada hi aap k sath hai.