तरह-तरह के घोटालों में फंसे-धंसे अधिकाँश महान लोग अक्सर अखबारों में यह कहते हुए पाए जाते हैं कि उन्हें व्यर्थ ही 'बलि का बकरा ' बनाया जा रहा है . आज भी एक महान आत्मा का ऐसा ही एक बयान नयी दिल्ली से निकल कर बेमौसम बादलों की तरह देश भर के अखबारों में सुर्खियाँ बन छाया हुआ है कि खेलों के तथाकथित महा-कुम्भ में हुए नाना प्रकार के १०००८ कुंडीय महा-यज्ञ में हवन -पूजन के सामानों की खरीदी और आपूर्ति में अगर कोई भूल-चूक हुई है तो इसमें उनका कोई हाथ नहीं है और उनका नाम इसमें घसीट कर उन्हें 'बलि का बकरा ' बनाया जा रहा है . मेरे जैसे आम आदमी को उनके इस बयान से कोई लेना-देना नहीं है ,पर ऐसे महापुरुषों के श्रीमुख से 'बलि का बकरा ' जैसे शब्द सुन कर बेचारे बकरे पर तरस ज़रूर आता है . इसके अलावा मन के आकाश में यह विचार भी उभरता है बलि के नाम पर सिर्फ बेजुबान बकरा ही क्यों किसी भी मूक प्राणी का इस्तेमाल नहीं होना चाहिए .वैसे भी बलि प्रथा अमानवीय है और आज के ज़माने में इसे अच्छा नहीं माना जाता .भारत के कई राज्यों में इस पर कानूनी प्रतिबंध भी है लेकिन कहावत के रूप में इस्तेमाल धड़ल्ले से जारी है .यही कारण है कि घपलों-घोटालों के मामलों में बलि के लिए लोग बकरे को नहीं , बल्कि इंसान को खोजते हैं और मौका मिलते उसे शब्दों की बाजीगरी में 'बकरा ' बना देते हैं ? बकरा तो एक बेजुबान प्राणी है . फिर सवाल यह भी है कि घोटालों के आरोपों में घिरने पर कोई इंसान 'बलि का बकरा ' ही क्यों बनता है, 'बलि का इंसान ' क्यों नहीं ? इंसान अपनी चमड़ी बचाने के लिए यह कह कर आसानी से अपना दामन झाड़ लेता है ,या झाड़ने की कोशिश करता है कि उसे 'बलि का बकरा ' बनाया जा रहा है .उसका विरोधी यह सुनकर या पढ़ कर कह सकता है कि ठीक है , ठीक है , देखते हैं 'बकरे की अम्मा ' कब तक खैर मनाएगी ? बलि के नाम इंसानों की ऐसी बदजुबानी ? मै सोचता हूँ कि यह सुन कर बकरा आखिर क्या सोचता होगा ? बद्जुबानों के बीच बेचारा बेजुबान बकरा ...!
स्वराज्य करुण
बेचारा बेजुबान बकरा.. सही है.. कर भी क्या सकता है वो..
ReplyDeleteएक तरफ लोग कुत्ते की मौत मरते हैं और दूसरी ओर बलि का बकरा बन रहे हैं.. जानवरों पर हमारी अच्छी पकड़ है :)
1.5/10
ReplyDeleteलिखते रहिये धीरे-धीरे लेखन में वजन आएगा
बहुत खूब कहा।
ReplyDeleteआपकी रचनात्मक ,खूबसूरत और भावमयी
प्रस्तुति कल के चर्चा मंच का आकर्षण बनी है
कल (22/10/2010) के चर्चा मंच पर अपनी पोस्ट
देखियेगा और अपने विचारों से चर्चामंच पर आकर
अवगत कराइयेगा।
http://charchamanch.blogspot.com
पर कुछ बकरे ज़ुबानदराज़ भी हो सकते हैं :)
ReplyDeletebahut khoob...
ReplyDeleteपहली बार आपके ब्लॉग पर आई हूं |व्यंग अच्छा बन पड़ा है |
ReplyDeleteबधाई
आशा
ये सब बकरए हैं।:)
ReplyDeleteआपने भी इनकी चमड़ी छील कर धर दी।
ReplyDeleteसान अपनी चमड़ी बचाने के लिए यह कह कर आसानी से अपना दामन झाड़ लेता है
ReplyDeleteबात तो सच है ...विचारणीय आलेख !!