पश्चिम उड़ीसा में महानदी के तट पर 'वक्र-मंदिर' और गर्भ-गृह , ग्राम हुमा |
छत्तीसगढ़ के धमतरी जिले के सिहावा में इस नदी की उदगम भूमि रामायण-काल के महान तपस्वी श्रृंगी -ऋषि की तपो-भूमि के रूप में लाखों लोगों की आस्था का केन्द्र है .इसी जिले में इस नदी पर निर्मित विशाल गंगरेल बाँध राज्य के लाखों किसानों के खेतों की प्यास बुझाने का एक बहुत बड़ा संसाधन है. सिहावा से आगे चलें तो रायपुर जिले में धार्मिक-नगरी राजिम में महानदी अपनी दो सहायक नदियों-पैरी और सोंढूर के साथ त्रिवेणी संगम बनाती है , जहाँ आठवीं-नवमी शताब्दी में निर्मित भगवान श्री ,राजीवलोचन और कुलेश्वर महादेव के प्रसिद्ध मंदिर हैं . छत्तीसगढ़ के मुख्यमंत्री डॉ.रमन सिंह की सरकार ने यहाँ माघ-पूर्णिमा के पन्द्रह-दिवसीय वार्षिक मेले को पिछले कुछ वर्षों में अपने बेहतर प्रबंधन के ज़रिए 'राजिम-कुम्भ ' के नाम से एक नयी पहचान दिलाई है , जिससे यह परम्परागत मेला अब देश भर के लाखों श्रद्धालुओं के आकर्षण का केंद्र बन गया है .अब तो इसे देश का पांचवां कुम्भ भी कहा जाने लगा है .राजिम से आगे निकलें तो करीब १५ किलोमीटर पर महाप्रभु वल्लभाचार्य के जन्म-स्थान के नाम से प्रसिद्ध चम्पारण्य है , जहाँ पंद्रहवीं सदी में जन्मे महाप्रभु ने वैष्णव सम्प्रदाय को जन-जन तक पहुंचाने का ऐतिहासिक कार्य किया. यहाँ उनके पवित्र मंदिर की अपनी महिमा है. वहां से आगे जाएँ तो पुराण-प्रसिद्ध दानवीर राजा मोरध्वज की नगरी के नाम से मशहूर आरंग मिलेगा , जहाँ ग्यारहवीं-बारहवीं सदी में निर्मित जैन सम्प्रदाय का मंदिर भांड-देवल इतिहास और पुरातत्व के नज़रिए से भी काफी महत्व रखता है . आरंग से आगे महानदी महासमुंद जिले में दाखिल होती है .इस जिले में दक्षिण कोशल के नाम से प्रसिद्ध प्राचीन छत्तीसगढ़ की राजधानी सिरपुर है , जो अपने ऐतिहासिक स्मारकों की वजह से शैव, वैष्णव और बौद्ध संस्कृतियों का त्रिवेणी संगम माना जाता है और जहाँ पांचवीं से दसवीं सदी के बोलते इतिहास के रूप में खड़े लक्ष्मण मंदिर , गंधेश्वर मंदिर और बौद्ध स्मारक लोगों के आकर्षण का केंद्र बने हुए हैं . सिरपुर और आस-पास के कुछ किलोमीटर के दायरे में शैव, वैष्णव और बौद्ध प्रतिमाओं सहित जैन-प्रतिमाएं भी उत्खनन में मिली हैं . इसी महानदी के किनारे रायपुर जिले में तुरतुरिया को 'रामायण' के महाकवि महर्षि वाल्मिकी की तपोभूमि और गिरौदपुरी को अठारहवीं सदी के महान समाज सुधारक और सतनाम पंथ के प्रवर्तक संत गुरु घासीदास की जन्म स्थली और तपोभूमि होने का गौरव प्राप्त है . वहाँ से थोड़ा आगे चले जाएँ तो महानदी जांजगीर -चाम्पा जिले के प्रसिद्ध तीर्थ शिवरीनारायण में शिवनाथ और जोंक नदियों के पवित्र संगमसे जुडती है. माघ-पूर्णिमा पर शिवरीनारायण में लगने वाले वार्षिक मेले का भी छत्तीसगढ़ के जन-जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है .महानदी शिवरीनारायण से चंद्रपुर आती है , जहाँ मांड नदी केसाथ इसके संगम तट पर देवी चंद्रहासिनी और नाथल दाई के प्राचीन मंदिर हैं. चंद्रपुर से होकर रायगढ़ जिले में प्रवाहित होते हुए महानदी उत्कल प्रदेश ( उड़ीसा) में प्रवेश करती है , जहाँ सम्बलपुर के पास इस पर १९५७ में निर्मित विश्व-विख्यात हीराकुद बाँध के चार हजार ८०० मीटर के दायरे में यह अपनी अपार , अथाह और विशाल जल-राशि से किसी महासागर का नज़ारा पेश करती है. . हीराकुद बाँध भारतीय इजीनियरिंग की एक शानदार मिसाल है, जिसका शिलान्यास देश की आज़ादी के महज आठ महीने बाद १२ अप्रेल १९४८ को हमारे प्रथम प्रधान मंत्री पंडित जवाहर लाल नेहरू ने किया था. लगभग नौ साल में निर्माण पूरा हुआ और नेहरूजी ने ही १३ जनवरी १९५७ को इसका लोकार्पण भी किया. करीब ७४३ वर्ग किलोमीटर के जल-विस्तार वाले इस बाँध से उड़ीसा में किसानों के तीन लाख ९० हजार एकड़ खेतों को पानी मिलता है और ३२७ मेगावाट बिजली पैदा होती है . हीराकुद से आगे देखें तो महानदी का आँचल रेतीला नहीं बल्कि पथरीला हो जाता है .सम्बलपुर में इस नदी के किनारे माँ समलेश्वरी का प्राचीन मंदिर पश्चिम उड़ीसा के प्रमुख आस्था केन्द्रों में से एक है . वहां से महानदी आगे सोनपुर की तरफ निकल पडती है . हीराकुद से करीब ४५ किलोमीटर और सम्बलपुर से २५ किलोमीटर पर हुमा-धुमा के नाम से मशहूर ग्राम हुमा में इसके तट पर बाबा विमलेश्वर महादेव का लगभग नौ सौ साल पुराना मंदिर अपनी विशेष निर्माण शैली की के कारण वक्र-मंदिर के नाम से दूर-दूर तक प्रसिद्ध है. आम तौर पर सभी मंदिर और भवन सीधे तन कर खड़े होते हैं लेकिन वहां न केवल बाबा विमलेश्वर का मुख्य मंदिर बल्कि उसी परिसर में स्थित दो छोटे शिव-मंदिर भी कुछ वक्राकार झुके हुए नज़र आते हैं . बाबा विमलेश्वर के मंदिर के गर्भ गृह के प्रवेश द्वार की चौखट भी कुछ तिरछापन लिए हुए है.पीसा की झुकती हुई नज़र आती मीनार तो मैंने नहीं देखी लेकिन अपनी महानदी के पावन तट पर झुकी हुई संरचना वाले इस मंदिर को देख कर उसकी याद ज़रूर आ गयी.बाबा विमलेश्वर महादेव की महिमा तो अपरम्पार है ही , मंदिर के तिरछेपन या झुकी हुई मुद्रा के कारण ही उनके इस मंदिर को 'वक्र-मंदिर' के नाम से ख्याति मिली है .यह सचमुच आश्चर्य का विषय है कि नौ सौ साल से यह मंदिर इसी तरह शान से खडा है और बड़ी शालीनता से जीवनदायिनी माँ महानदी के प्रति झुक कर अपना सम्मान प्रकट कर रहा है .
हुमा के वक्र-मंदिर के पीछे महानदी |
स्वराज्य करुण
sundar aalekh
ReplyDeleteबड़ी सुन्दर प्रविष्टि है !
ReplyDeleteमंदिर के पीछे कल-कल बहती महानदी का अपना एक अदभुत सौंदर्य और अनोखा आकर्षण| छत्तीसगढ़ की सुदूर की सुन्दर और अनूठी जगहों को नेट पर ला कर दुनिया में प्रसारित प्रचारित करने का शुक्रिया| देखा नहीं है अभी तक अब मौक़ा लगा तो जरूर जाउंगा|
ReplyDeleteनदियों को हम माँ की तरह आदर देते हैं। गंगा माँ की नित्य आरती उतारते हैं। लेकिन अपना कर्तव्य भूल जाते हैं।
ReplyDelete..उम्दा पोस्ट।