हर गाँव-शहर ,गली -कूचे में देश की आजादी की हर सालगिरह पर हवाओं में तैरता यह एक तराना ज़रूर हम तक पहुंचता है. जिसे हम और आप बरसों से न जाने कितनी बार सुनते आए हैं -
दे दी हमें आज़ादी बिना खड्ग ,बिना ढाल
साबरमती के संत तूने कर दिया कमाल .
इसमें कोई शक नहीं कि देशभक्ति की भावनाओं से भरपूर यह गीत आज़ादी की लम्बी लडाई में हमारे राष्ट्रपिता महात्मा गांधी की शानदार भूमिका की याद में लिखा गया है ,जिसमे कवि ने बापू के अहिंसक संग्राम की अपरम्पार महिमा को जन-जन तक पहुंचाने की शानदार कोशिश के साथ अहिंसा के पुजारी का सम्मान बढ़ाया है. लेकिन हम क्या कर रहे हैं ? भारत माता के इस अनमोल रतन को हमने आज तक भारत रत्न का सम्मान नहीं दिया और सत्य ,अहिंसा , सादगी और ईमानदारी के प्रतीक इस महामानव का फोटो भारतीय रिजर्व बैंक के हरे -हरे और हलके गुलाबी रंग के नोटों में छापकर उन्हें तो भूल ही गए , उनके आदर्शों को भी भुला दिया . सत्य का तो हमने राम नाम सत्य कर दिया और अहिंसा,सादगी और ईमानदारी का क्या हाल किया ,यह हमसे अच्छा और कौन बता सकता है ? अहिंसा को हम अराजकता और आतंक की आग में भस्म करने लगे , सादगी के नाम पर जनता के खजाने से जोर -ज़बरदस्ती अस्सी हजार करोड़ रुपये निकाल कर एक ऐसे खेल आयोजन पर खर्च करने लगे , जो उस इंग्लैंड की महारानी एलिज़ाबेथ की मशाल के साथ यहाँ आ रहा है, जिसने हमारे प्यारे वतन को आज से सिर्फ तिरेसठ साल पहले कम-से कम एक सौ वर्षों तक गुलाम बना रखा था , जिसने आजादी की लडाई के हमारे कठिन दौर में साबरमती के संत को और उनके सहयात्री बने आजादी के लाखों दीवानों को जेल की यातनाएं दी , जलियाँवाला बाग़ में हमारे ही सैकड़ों भाई-बहनों को बंदूकों से छलनी कर दिया और आज तक अपनी इस काली करतूत पर भारत माता से सार्वजनिक माफी नहीं मांगी.
हम सादगी के नाम पर मेहनतक़श जनता के टैक्स के इस भारी -भरकम धन को अपने पूर्व मालिक ब्रिटेन अगुवाई में बेदर्दी और बेशर्मी से लुटाये जा रहे हैं. अगर मणिशंकर अय्यर का यह कहना सच है कि देश के चालीस करोड़ किसानों की क़र्ज़ माफी के लिए जनता के खजाने में रखे गए सत्तर हज़ार करोड़ रुपये की विशाल धन राशि का आधा याने कि पैंतीस हज़ार करोड़ इन खेलों की तैय्यारी में खर्च किये जा चुके हैं तो इससे ज्यादा खौफनाक हादसा हमारे साथ और क्या हो सकता है ? .जनता ने जिन लोगों को अपने इस खजाने की पहरेदारी का जिम्मा दिया है और उसकी चाबी भी सौंप दी है , आज वही पहरेदार हमारे पसीने की कमाई के इस खजाने को इस तरह से लूट रहे हैं . हमारी सादगी का आलम यह है कि हम चकाचौंध से भरी गुलामी के इस ग्लैमर में अपनी आज़ादी को और हमें आज़ादी दिलाने वाले साबरमती के संत का नाम लेने की फुरसत भी हमें नहीं है. जहाँ तक हमारी ईमानदारी का सवाल है, तो वह भी जग -जाहिर है .घर से लेकर दफ्तर तक और सड़क से लेकर संसद तक कोई भी हमें बेईमानी का गोल्ड -मेडल दे सकता है .
सच्चाई और ईमानदारी के पुजारी राष्ट्र पिता की मुस्कुराती तस्वीर वाले हरे -गुलाबी कड़क नोटों के करोड़ों - अरबों रुपयों के बण्डल जब टैक्स चोर , रिश्वतखोर धनपशुओं की तिजोरियों, आलमारियों और बाथरूमों तक से बरामद होते नज़र आते हैं , जब मासूम बच्चों और भोले-भाले निरीह नागरिकों के खून से किसी आतंकी गिरोह की झोलियों से हमारे राष्ट्र-पिता के फोटो छपे पांच -पांच सौ और हज़ार -हज़ार के नोट मिलने की खबरें छपती हैं , तो लगता है कि वक्त के ऐसे नाजुक दौर में अगर साबरमती के संत आज हमारे बीच होते तो भले ही ये नोट असली हों या नकली, उनमें अपना चित्र देख कर इस विचित्र और भयंकर माहौल में शायद वे आत्महत्या के लिए मजबूर हो जाते. किसी भी देश की महान विभूतियाँ वहां का राष्ट्रीय गौरव होती हैं .राष्ट्रीय मुद्राओं में हम उनकी तस्वीरें छाप कर उनके प्रति अपना सम्मान प्रकट करना चाहते हैं , लेकिन जब उनके किसी भी उसूल से हमारा कोई लेना-देना ही नहीं रह गया हो और जब उनकी तस्वीरों वाले नोट और सिक्के चोर --डाकुओं, हत्यारों और बेईमानों के हाथों खिलौनों की तरह खेले जा रहे हों , तो हम अपने राष्ट्रीय सम्मान के इन प्रतीकों को देश की राष्ट्रीय मुद्रा में चस्पा करके उन्हें सम्मानित करने का यह ढोंग आखिर कब तक करते रहेंगें ?
स्वराज्य करुण
yahi sab to vyakti k charitra ki kamjoriyan hai.ye satya hai ki sabhi vyakti Gandhi nahi ho sakte. bahusankhyak vyakti maanviya kamjoriyon se grast hote hain. BHRASTACHHAR KO NIYANTRIT KIYA JAA SAKTA HAI, KHATM NAHI KIYA JA SAKTA.PROPER MONITORING SYSTEM KA ABHAAV AUR TWARIT NYAAYA YA DAND KA ABHAV ISKA PRAMUKH KARAN HAI. vyavastha se jinko labh hai,wo to yathasthiti banaye rakhna jyada uchit samjhenge.
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