Friday, August 20, 2010

घोर कलि युग में किस पर करें भरोसा ?

आज की दुनिया में भोले -भाले लोग आखिर किस पर भरोसा करें ? जम्बू द्वीप के भारत वर्ष  में यह लगभग आठ साल पहले की बात है. वहां के एक राज्य में हायर सेकेंडरी बोर्ड की बारहवीं की परीक्षा पास करने के बाद आँखों में डॉक्टर बनने का सपना लेकर किशोर वय के  सैकड़ों  बच्चों ने अखबारों में  प्रकाशित एक  सरकारी विज्ञापन पढ़ कर आवेदन किया और  होम्योपैथी कालेजों में अपने दाखिले के लिए सरकारी बुलावा पत्र आने पर  काफी उत्साह से काउंसिलिंग में हिस्सा लिया.  उस  राज्य में कुल जमा  तीन सरकारी मान्यता प्राप्त  होम्योपैथी मेडिकल कॉलेज हैं और तीनों निजी संस्थाओं द्वारा संचालित हैं, जिन्हें राज्य के सरकारी विश्वविद्यालयों  से भी मान्यता और सम्बद्धता मिली हुई है .
                किसी भी देश अथवा  राज्य में डॉक्टरों की संख्या बढाने के लिए सरकारों  की भी यह कोशिश रहती है कि मेडिकल शिक्षा के लिए एलोपैथी  , आयुर्वेद और होम्योपैथी समेत इलाज की हर विधा के  नए -नए कॉलेज खुलें, ताकि वहां से डॉक्टर बनकर निकलने वाले युवा अपने राज्य की जनता की सेवा कर सकें.इसके अलावा दूर -दराज़ के गाँवों में डॉक्टरों की कमी दूर करने का प्रयास भी सरकारें करती रहती हैं . इसलिए अगर कोई निजी संस्था मेडिकल कॉलेज खोलना चाहे तो  इसके  लिए  सरकारें  नियमों के तहत उसे  अनुमति भी देती है . डॉक्टर बनने की चाहत रखने वाले बच्चे भी जीव-विज्ञान विषय के साथ बारहवीं पास करने के बाद  पी.एम. टी. जैसी प्रवेश परीक्षा में शामिल हो कर अपनी किस्मत आजमाना चाहते हैं .  बहरहाल किस्सा यह कि   भारत वर्ष के उस  राज्य  में होम्योपैथी के तीनों मेडिकल कॉलेजों में दाखिले के लिए वर्ष २००२ में कोई प्रवेश परीक्षा तो नहीं हुई अलबत्ता इसके लिए भारतीय चिकित्सा पद्धति संचालनालय से एक सरकारी विज्ञापन जारी हुआ और प्राप्त आवेदनों में से मेरिट के आधार पर सूची बनाकर छात्र -छात्राओं को बुलावा पत्र भेज कर काउंसिलिंग के लिए बुलाया गया. फिर विधिवत काउंसिलिंग हुई ,  जहाँ तीनों कॉलेजों के प्रबंधन के पदाधिकारी और प्राचार्य अपनी -अपनी टेबल सजा कर बैठे थे. 
     महान देशभक्त महाराणा प्रताप के नाम पर नया- नया खुला एक मेडिकल कॉलेज भी उनमे शामिल था जिसे उस राज्य की राजधानी के सरकारी विश्वविद्यालय से मान्यता मिली हुई थी .  . काउंसिलिंग में आए कई विद्यार्थियों ने बेहतर पढ़ाई और बेहतर भविष्य की उम्मीद लेकर उसमे दाखिला ले लिया . सालाना फीस थी लगभग तैंतीस हज़ार से चालीस हज़ार रूपए के आस-पास .  अब उनकी डाक्टरी की पढाई शुरू हुई .  बी. एच . एम. एस . याने कि बैचलर ऑफ होम्योपैथिक  मेडिसिन  एंड सर्जरी की डिग्री के लिए एम बी. बी. एस. की तरह साढ़े चार साल की पढ़ाई और  एक साल के इंटर्नशिप को मिलाकर कुल साढ़े पांच साल का पाठ्यक्रम होता है , लेकिन  विश्वविद्यालय से कभी वार्षिक परीक्षा में देरी और कभी प्रायोगिक परीक्षा में विलम्ब  होने पर वर्ष २००२ बैच के होम्योपैथी के  इन छात्र- छात्राओं को लम्बे इंतज़ार के बाद वर्ष २००९ में याने कि पूरे सात साल बाद  डिग्री मिली,  लेकिन अभी तो  समय उनका एक और इम्तहान लेने वाला था.  बी. एच .एम. एस . की डिग्री मिलने पर वे खुश हो रहे थे कि अब राज्य होम्योपैथी परिषद  में डॉक्टर के रूप में  उनका पंजीयन हो जाएगा और वे अपना क्लिनिक खोल सकेंगे और समाज को डॉक्टर के रूप में अपनी सेवाएँ दी सकेंगे. या नहीं तो होम्योपैथिक  डॉक्टरों की सरकारी  भरती के लिए विज्ञापन निकलने पर आवेदन कर सकेंगे और चयनित होने पर सरकारी  डॉक्टर की हैसियत से जनता और सरकार की सेवा कर कर सकेंगे ,लेकिन उनके दोनों ही सपनों पर ग्रहण लग गया . महाराणा प्रताप जैसे देशभक्त के नाम पर खुले इस होम्योपैथी कॉलेज के प्रथम बैच के डिग्री धारक इन युवाओं के लिए यह किसी सदमे से कम नहीं था , जब उन्हें पता चला कि केंद्रीय स्वास्थ्य  मंत्रालय के आयुष विभाग की द्वितीय अनुसूची में उनका यह कॉलेज  शामिल ही नहीं था , इसलिए भले ही उनको सरकारी विश्वविद्यालय से कानूनी तौर पर बी. एच. एम एस की डिग्री मिल गयी हो , फिर भी होम्योपैथिक  डॉक्टर के रूप में  राज्य होम्योपैथी परिषद उनका पंजीयन नहीं कर सकता. नतीज़ा यह कि अब ये लोग डाक्टरी की वैधानिक डिग्री होने के बावजूद डॉक्टर के रूप में पंजीकृत नहीं हो पा रहे हैं.किसी सरकारी भर्ती के विज्ञापन में अगर आवेदन करने पर उनका चयन हो भी गया, तो भी राज्य होम्योपैथी परिषद से पंजीयन नहीं होने के कारण उनकी नियुक्ति नहीं हो पा रही है.  कितना अजीब-सा लगता है कि आवेदन से लेकर काउंसिलिंग और दाखिले से लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर परीक्षा आयोजन तक सब कुछ सरकारी प्रक्रिया से हुआ,       लेकिन जिस  विश्वविद्यालय ने  कछुआ चाल से  परीक्षाएं लेकर छात्र-छात्राओं को साढ़े पांच साल में मिलने वाली  डाक्टरी की डिग्री सात साल में दी , आज उसकी वह डिग्री उनके लिए बेकार साबित हो रही है. पढ़ाई में लगा धन और करीब सात साल का  कीमती समय भी बर्बाद होता नज़र आ रहा है .  समस्या केवल यह है कि  कॉलेज को केंद्रीय स्वास्थ्य मंत्रालय की दूसरी अनुसूची में जगह नहीं मिलने के कारण इन होम्योपैथिक  डाक्टरों का पंजीयन नहीं हो पा रहा है .
         इस बारे में पूछताछ के लिए जब कुछ डिग्रीधारकों और उनके अभिभावकों ने कॉलेज प्रबंधन  से सम्पर्क साधा तो उन्होंने विश्वविद्यालय की ओर उंगली उठा दी , जब ये डिग्री धारक और उनके गार्जियन  दौड़े -दौड़े विश्वविद्यालय पहुंचे  तो कुलपति और वहां के दूसरे अधिकारियों ने पल्ला झाड़ कर कॉलेज प्रबंधन की ओर इशारा कर दिया. एक -दूसरे पर दोषारोपण करने के बजाए उन्हें आपस में मिलकर समस्या का हल निकालने का ख़याल आज तक  नहीं आया. उनके  इस आरोप-  प्रत्यारोप में उन युवाओं का भविष्य चौपट होता साफ़ नज़र आ रहा है , जिन्होंने बड़ी हसरत से डॉक्टर बनने का सपना संजोकर , कॉलेज और  विश्वविद्यालय  पर भरोसा जताया था.  आज उन्हीं संस्थाओं ने उनके भरोसे को तोड़ कर रख दिया .  इस घोर कलि युग में हम और आप और हमारे बच्चे आखिर  किस पर भरोसा करें ?                                              
                                                                                                                             ----   स्वराज्य करुण  

3 comments:

  1. apka post padhke kuchh batein dimag me aai hain. sabse PAHLI BAAT, aap kisi yug me kisi par bhi bharosa nahi kar sakte, par kisi par bharosa kiye bina kisi ka kaam nahi chal sakta. DUSRI BAAT, samarath ko nahi dosh gusain. samarth ko koi dosh tab tak nahi hota jab tak wo samarth hai, dosh tabhi lagta hai jab wo asamarth hone lagta hai. sarkar ko koi dosh nahi lagta jab tak wo samarth hai.TEESRI BAAT,kaliyug me shayad dhire dhire hi sahi, par sahi galat k prati jaagrukta to badh rahi hai,jo ek shubh sanket hai.CHAUTHI BAAT,paristhitiyon ko dosh dena ya uske vishay me sochkar dukhi hone se hamara koi faayda nahi hai. fayda to tabhi hota hai jab ham paristhitiyon ko apne paksh me karne k liye sangharsh karte hain, yuddh karte hain.ye sochna jyada uchit haiki kami ham me hai na ki yug me ya paristhiti me. ANTIM BAAT, jyada padh likh k aadmi apne se kam padhe likhe aadmi k yahan hi naukri karta hai.private naukri me seth ko salaam karta hai aur sarkari naukri me neta ko. dono aksar unke niche kaam karne walon se KAM PADHE LIKHE LEKIN ADHIK YOGYA,SAAHSI AUR KITAB KI PADHAI KAM, SADAK KI PADHAI JYADA KIYE RAHE HOTE HAIN.ASAL ZINDAGI ME KITABI GYAN SE JYADA SADAK KA GYAN KAAM AATA HAI. saadar BALMUKUND

    ReplyDelete
  2. पहुंच गए मैं भी आपको ढुंढते ढुंढते।
    ब्लाग जगत की भूल भुलैया में आपका स्वागत है।
    भूल भुलैया इसलिए कह रहा हूँ कि यहां आकर ऐसा खोया कि निकल ही नहीं पाया।

    शुभकामनाएं


    एक ब्रह्माण्ड सुंदरी यहाँ पर इंतजार कर रही है।

    ReplyDelete
  3. शायद यह आपके विचारोत्‍तेजक पोस्‍ट का ही कमाल है कि ऐसी सार्थक टिप्‍पणियां आई हैं, जो पोस्‍ट की पूरक जैसी लग रही हैं.

    ReplyDelete