- स्वराज्य करुण
जब-जब आग लगी धरती पर, आसमान को रोना आया ,
बेमतलब की बातों में उलझे जग वालों को सोना आया !
जिसको जितनी हुई ज़रूरत लूटा दोनों हाथों से ,
माटी के सम्मान को बेचा चिकनी -चुपड़ी बातों से !
ज़ख्मों पर शीतल हाथ फिराना भूल गया है चंदन-वन
हरे -सलोने खेतों में उसको विष का पौधा बोना आया. !
फ़ैल रहा शहरी दावानल , अब गाँव जल रहे ,
मरुथल के इस महा सफर में पाँव जल रहे !
अपनी -अपनी आँखों में कपड़े बाँध यहाँ सब दौड़ रहे
कुछ ने सीखा छीन के पाना , बहुतों को सब खोना आया !
सदियाँ बंधक ,नदियाँ बंधक ,गिरवी पंछी-पर्वत ,
समय भी गहरी नींद में , जाने कब लेगा यह करवट !
किसी चमन में चहक नहीं , कहीं प्यार की महक नहीं
फूलों की चाहत के बदले ,काँटों का बिछौना आया ! स्वराज्य करुण
सदियाँ बंधक ,नदियाँ बंधक ,गिरवी पंछी-पर्वत ,
ReplyDeleteसमय भी गहरी नींद में , जाने कब लेगा यह करवट !
vaah laajavaab| badhaaI.
अपनी -अपनी आँखों में कपड़े बाँध यहाँ सब दौड़ रहे
ReplyDeleteकुछ ने सीखा छीन के पाना , बहुतों को सब खोना आया !
बेहद खुबसुरत। धन्यवाद।
किसी चमन में चहक नहीं, कहीं प्यार की महक नहीं
ReplyDeleteफूलों की चाहत के बदले ,काँटों का बिछौना आया !
वाह, यथार्थ का अच्छा चित्रण।
कहां छुपे हैं, दुनिया के कायम रहने के ताने-बाने.
ReplyDeleteumda rachana...........bahut sundar
ReplyDeleteसदियाँ बंधक ,नदियाँ बंधक ,गिरवी पंछी-पर्वत ,
ReplyDeleteसमय भी गहरी नींद में , जाने कब लेगा यह करवट
बहुत खूब !
uncle ji dil ko chune wali rachna hai aaj raat ke 12.15 baje padh raha hoon dil khush ho gaya
ReplyDeleteकिसी चमन में चहक नहीं ,कहीं प्यार की महक नहीं
फूलों की चाहत के बदले ,काँटों का बिछौना आया !
bhai wah wah wah wah
फ़ैल रहा शहरी दावानल , अब गाँव जल रहे
ReplyDeletebahut sunder chitr kheench dali.
अपनी -अपनी आँखों में कपड़े बाँध यहाँ सब दौड़ रहे
ReplyDeleteकुछ ने सीखा छीन के पाना , बहुतों को सब खोना आया !
सदियाँ बंधक ,नदियाँ बंधक ,गिरवी पंछी-पर्वत ,
समय भी गहरी नींद में , जाने कब लेगा यह करवट !.......
जीवन से जुड़ी भावपूर्ण ग़ज़ल के लिए बधाई।
यथार्थ को कहती अच्छी रचना
ReplyDeleteज़ख्मों पर शीतल हाथ फिराना भूल गया है चंदन-वन
ReplyDeleteहरे -सलोने खेतों में उसको विष का पौधा बोना आया. !
लाजवाब, सुन्दर लेखनी को आभार...
अपनी -अपनी आँखों में कपड़े बाँध यहाँ सब दौड़ रहे
ReplyDeleteकुछ ने सीखा छीन के पाना , बहुतों को सब खोना आया !
सदियाँ बंधक , नदियाँ बंधक , गिरवी पंछी-पर्वत ,
समय भी गहरी नींद में , जाने कब लेगा यह करवट !.......
वास्तिक जीवन को खूबसूरती से उजागर करती रचना !