Friday, December 9, 2022

(आलेख) छठवीं-सातवीं सदी का भीम -कीचक मन्दिर :प्राचीन भारतीय वास्तु -शिल्प का अनुपम उदाहरण

                (आलेख -स्वराज्य करुण)

छत्तीसगढ़ के कस्बेनुमा ऐतिहासिक नगर मल्हार का 'भीम -कीचक ' मन्दिर  प्राचीन भारत के वास्तु शिल्प का एक अनुपम उदाहरण है। यह दरअसल एक शिव मंदिर है , हालांकि उसकी जलहरि में शिवलिंग नहीं है। लेकिन मन्दिर की भव्यता बताती है कि कभी यह दक्षिण कोसल के नाम से प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ का एक प्रमुख आस्था केन्द्र रहा होगा।  पुरातत्वविदों ने अनुमान के आधार पर इसे छठवीं -सातवीं सदी का मन्दिर बताया है। अगर उनका अनुमान सटीक हो  तो इसे तेरह सौ से चौदह साल साल पुराना कहा जा सकता है।भारत सरकार द्वारा'प्राचीन स्मारक एवं पुरातात्विक स्थल व अवशेष अधिनियम 1958 (यथा संशोधित)के अंतर्गत इसे राष्ट्रीय महत्व का स्मारक घोषित किया गया है। 

मल्हार के  'भीम कीचक' मन्दिर की अब तक शायद उतनी चर्चा नहीं हो पायी है ,जितनी वहाँ के डिडनेश्वरी मन्दिर की होती रही है।मुझे उस दिन 'भीम कीचक'मन्दिर और उसके परिसर के अवलोकन का अवसर मिला। उसकी दीवारों पर कुछ एक पत्थरों को हाथ से नाप कर भी देखा। प्रत्येक पत्थर की चौड़ाई दो हाथ और लम्बाई ढाई हाथ की है।यानी कम से कम दो फुट चौड़ी और दाई फुट लम्बी पत्थर की ईंटें !  यह कल्पना करके आश्चर्य होता है कि जिस युग में बड़े बड़े  पत्थरों को दूर दराज से उठाकर लाने के लिए आज की तरह भारी वाहन नहीं थे , भारी मशीनें नहीं थीं , पत्थरों को तराशने के लिए आधुनिक औजार नहीं थे , उस दौर में इस ऊँचे और विशाल मन्दिर का निर्माण आख़िर कैसे किया गया होगा? जिस प्रकार मिस्र के हजारों साल पुराने  विशाल पिरामिड हमें आश्चर्यचकित करते हैं ,ठीक उसी तरह भारत और दुनिया के अलग -अलग देशों के सैकड़ों-हजारों साल पुराने विशाल भवनों की निर्माण -कला और उनके निर्माण-काल के बारे में सोचकर हैरत होती है। 


                                                


भीम कीचक मन्दिर एवं परिसर,मल्हार (छत्तीसगढ़)
फोटो : स्वराज्य करुण 

भीम-कीचक मन्दिर  छत्तीसगढ़ के मल्हार  नगरपंचायत क्षेत्र के पातालेश्वर महादेव वार्ड में,  (बिलासपुर मार्ग पर)  स्थित है। मन्दिर परिसर लगभग पौने दो एकड़ में विस्तारित है।। इस मंदिर के साथ यहाँ प्राप्त पुरातात्विक अवशेषों  का रख -रखाव भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग के रायपुर मंडल द्वारा किया जाता है। परिसर में पुरातात्विक महत्व की कई खण्डित अवशेष भी हैं ,जिन्हें सुव्यस्थित रूप से रखा। गया है। परिसर को एक सुन्दर उद्यान के रूप में विकसित किया गया है। सम्पूर्ण परिसर को लोहे का  जालीदार घेरा लगाकर सुरक्षित किया गया है। परिसर की देखभाल के लिए भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण की ओर से एक पूर्णकालिक कर्मचारी तैनात है,जबकि तीन मज़दूर ठेके पर रखे गए हैं।

        परिसर के भीतर (प्रवेश द्वार के पास)   उनके सूचना फलक पर  'भीम -कीचक 'मन्दिर के बारे में दी गयी जानकारी के अनुसार - "यह भव्य मन्दिर अवशेष स्थानीय तौर पर देऊर के नाम से प्रचलित है। मन्दिर की भित्ति के ऊपर का भाग खण्डित है।पश्चिमाभिमुखी इस मन्दिर के गर्भगृह में स्थापित शिवलिंग प्रमाणित करता है कि मन्दिर भगवान शिव को समर्पित था मन्दिर की द्वार -शाखा पर गंगा और यमुना का सुन्दर अंकन है।द्वार -शाखा पर ही अन्दर की ओर शिव और उनके गणों को विभिन्न भाव-भंगिमाओं में दर्शाया गया है।मूर्ति शिल्प के आधार पर यह मन्दिर छठवीं -सातवीं शताब्दी का प्रतीत होता है ।"  यानी पुरातत्वविद भी इसका निर्माण काल पक्के तौर पर बताने की स्थिति में नहीं हैं ,यही कारण है कि उन्होंने 'प्रतीत होता है ' लिखा है। सूचना फलक में इसे शिव मंदिर तो बताया गया है ,लेकिन इसका नामकरण 'भीम -कीचक' के नाम पर क्यों हुआ , इस संबंध में भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण के सूचना फलक में कोई जानकारी नहीं दी गयी है। क्या इस नामकरण का  महाभारत की कथा में भीम द्वारा  कीचक वध के प्रसंग से भी कोई संबंध जुड़ता है ?  इतिहासकार और पुरातत्वविद इस बारे में बेहतर बता पाएंगे।- स्वराज्य करुण 

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