आलेख : स्वराज करुण
भारत के सांस्कृतिक इतिहास में मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्रीराम की जीवन -गाथा अनुपम और अतुलनीय है। प्राचीन काल में उनके । महान जीवन संग्राम पर महाकवियों द्वारा कई रामायणों की रचना की गयी है । अलग -अलग समय में ,अलग -अलग भाषाओं में अनेक रचनाकारों ने भगवान श्रीराम की कीर्ति -कथा को अपने -अपने ढंग से प्रस्तुत किया है।
भारतीय लोक मानस में भगवान श्रीराम की छवि मानव रूप में एक महान लोक नायक की है। वह हमारे समाज के 'रोल मॉडल' हैं । उनकी जीवन यात्रा पर केन्द्रित जितने महाकाव्यों की रचना की गई है ,उतनी कृतियाँ संभवतः किन्हीं और प्राचीन या पौराणिक नायकों पर विश्व साहित्य में कहीं भी नहीं मिलती । उनका सम्पूर्ण जीवन और चरित्र अपने -आप में एक महाकाव्य था ,है और रहेगा, जिसमें मनुष्य के पारिवारिक ,सामाजिक ,सांस्कृतिक और राजनीतिक जीवन के कई रंग हैं। मनुष्य रूप में उनके जीवन में समय -समय पर इतने नाजुक मोड़ और इतने गंभीर उतार - चढ़ाव आए ,जिन्हें देखकर किसी भी भावुक और संवेदनशील व्यक्ति के सहज ही कवि बन जाने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता ।
राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त ने अपने महाकाव्य 'साकेत '
की दो पंक्तियों में इस भाव को कुछ इस तरह प्रकट किया है ---
" राम तुम्हारा चरित स्वयं ही महाकाव्य है।
कोई कवि बन जाए ,सहज संभाव्य है ।।"
लेकिन मेरे जैसे सामान्य नागरिक रामकथा के नाम से सिर्फ संस्कृत में रचित वाल्मीकीय रामायण और अवधि में गोस्वामी तुलसीदास जी के 'रामचरितमानस' को ही जानते हैं , जबकि राजेश्री महंत रामसुन्दर दास जी ने अपने ग्रंथ 'श्रीराम संस्कृति की झलक ' में १०८ रामायणों का उल्लेख करते हुए लिखा है कि यह यथासंभव उपलब्ध सूची है। यानी रामायणों की संख्या इससे भी अधिक हो सकती है । महंत जी के लगभग साढ़े नौ सौ पृष्ठों के इस महा ग्रंथ पर 'पुस्तक चर्चा ' के रूप में मेरा यह आलेख अयोध्या में आज हो रहे श्रीराम मंदिर के भूमिपूजन के अवसर पर शायद मित्रों के लिए प्रासंगिक हो सकता है ।
दक्षिण कोसल के नाम से इतिहास प्रसिद्ध छत्तीसगढ़ को मर्यादा पुरुषोत्तम भगवान श्री राम के ननिहाल के रूप में भी पौराणिक मान्यता प्राप्त है ।यानी यह माता कौशल्या का मायका माना जाता है । राजधानी रायपुर के पास ग्राम चंदखुरी को कौशल्या माता का जन्मस्थान माना जाता है ,जहाँ उनका भव्य मंदिर भी है। छत्तीसगढ़ सरकार ने उनके इस मंदिर को और भी अधिक भव्य रूप देने का निर्णय लिया है । राज्य में चिन्हांकित किए गए श्रीराम वन गमन पथ के संरक्षण और संवर्धन के लिए छत्तीसगढ़ सरकार ने प्रोजेक्ट बनाकर काम शुरू कर दिया है।
छत्तीसगढ़ की धरती के कण -कण में श्री राम संस्कृति की महिमा व्याप्त है । यहाँ के गाँव-गाँव में ' मानस मण्डलियां ' हैं , जिनमें शामिल बच्चे युवा और बुजुर्ग नवधा रामायण जैसे धार्मिक आयोजनों में और अन्य अवसरों पर उत्साह के साथ महाकवि तुलसीदास कृत 'रामचरितमानस ' की संगीतमय प्रस्तुति देते हैं । यहाँ के प्रसिद्ध मानस मर्मज्ञों में धमतरी जिले के स्वर्गीय दाऊद खान और महासमुन्द जिले के पिथौरा निवासी स्वर्गीय शेख करीम का नाम भी सम्मान के साथ लिया जाता है , जिन्होंने इस अंचल में कई दशकों तक मानस प्रस्तुतिकरण के जरिये सामाजिक समरसता और सदभावना का अनुकरणीय उदाहरण प्रस्तुत किया (स्वराज करुण ) भगवान श्रीराम के ननिहाल की इस धरती पर उनके आदर्श जीवन की अमिट छाप है , जिसे लेखक राजेश्री डॉ .महंत रामसुन्दर दास ने अपने महाग्रन्थ ' श्रीराम संस्कृति की झलक ' में बड़ी ख़ूबसूरती से प्रस्तुत किया है । इस महाग्रन्थ में न सिर्फ राजधानी रायपुर बल्कि छत्तीसगढ़ के विभिन्न जिलों के प्रमुख और प्राचीन मन्दिरों का अत्यंत सुरुचिपूर्ण शैली में वर्णन किया गया है । इनमें श्रीराम और श्री हनुमान जी और भगवान शिव के भी अनेक मन्दिर शामिल हैं । राजेश्री महन्त रामसुंदर दास वर्तमान में रायपुर शहर के ४६४ साल पुराने दूधाधारी मठ के प्रमुख महन्त हैं ।
इस मठ की स्थापना स्वामी बलभद्रदास जी द्वारा संवत १६१० में की गयी थी । एक सुरही गाय हनुमान जी की एक प्राचीन मूर्ति को अपने दूध से नहलाती थी ।(स्वराज करुण)उस समय जो दूध बहकर आता था स्वामीजी उसी का सेवन करते थे । इसलिए उनका नामकरण 'दूध आहारी' हुआ जो आगे चलकर बोलचाल में दूधाधारी उच्चारित होने लगा । मठ का सञ्चालन गुरु - शिष्य परम्परा से हो रहा है ।
लेखक राजेश्री डॉ. महन्त रामसुंदर दास इस परम्परा के नवमें गुरु हैं । उनकी इस पुस्तक से पाठकों को यह भी पता चलेगा कि रायपुर में एक हजार साल से भी ज्यादा पुराना एक मन्दिर है ।यह विरंची नारायण मन्दिर शहर के ब्रम्हपुरी इलाके में स्थित है ,जो छत्तीसगढ़ के प्राचीनतम हनुमान मन्दिरों में से एक है । इसका निर्माण अक्टूबर सन् ९७३ ईस्वी में हुआ था । (स्वराज करुण ) पुस्तक के अनुसार इस मन्दिर में शेषशायी भगवान विष्णु और श्री नृसिंहनाथ जी की भी प्रतिमाएं हैं । (स्वराज करुण )हममें से अधिकांश लोग रामायण के नाम पर सिर्फ वाल्मीकीय रामायण और तुलसीदास जी के रामचरित मानस से परिचित हैं ,जबकि महन्त रामसुंदर दास के इस महाग्रन्थ से हमें १०८ रामायणों की भी जानकारी मिलती है । वह कहते हैं -जिस प्रकार प्रभु श्रीरामचन्द्रजी अनन्त हैं ,उसी प्रकार रामायण भी अनन्त हैं ।
राजेश्री डॉ .महन्त ने इस महाग्रन्थ में वाल्मीकीय रामायण और रामचरित मानस जैसे कालजयी महाकाव्यों के साथ इन रामायणों की सूची दी है और लिखा है कि यह यथा संभव उपलब्ध सूची है। यानी यह सूची और भी लम्बी हो सकती है। वर्तमान में उनके महाग्रंथ में दी गयी १०८ रामायणों की सूची इस प्रकार है --
(1)श्रीवाल्मीकीय रामायण ,(2)श्रीरामचरितमानस ,
(३)अध्यात्मरामायण , (४) योग वशिष्ठ रामायण ,
(५) श्रीहनुमद रामायण (६) श्रीनारद रामायण
(७) लघु रामायण (८) वृहद रामायण
(९)अगस्त्य रामायण (१०) सार रामायण
(११) देह रामायण (१२) वृत्त रामायण
(१३) ब्रम्ह रामायण (१४ भारद्वाज रामायण
(१५) शिव रामायण (१६) क्रौंच रामायण
(१७) भरत रामायण (१८) जैमिनी रामायण
(१९)आत्म धर्म रामायण (२०) श्वेतकेतु रामायण
(२१) जटायु रामायण (२२) रवि रामायण
(२३) पौलस्ति रामायण (२४) देवि रामायण
(२५) गुह्यक रामायण (२६) मंगल रामायण
(२७) विश्वामित्र रामायण (२८) सुतीक्ष्ण रामायण
(२९ ) सुग्रीव रामायण (३०) विभीषण रामायण
(३१) आनन्द रामायण (३२) ब्यासोक्त रामायण
(३३) शुक रामायण (३४) शेष रामायण
(३५) आगम रामायण (३६) कूर्म रामायण
(३७) स्कंद रामायण (३८) अरुण रामायण
(३९) पद्य रामायण (४०) धर्म रामायण
(४१) आश्चर्य रामायण (४२) अदभुत रामायण
(४३) अत्रि रामायण (४४) अम्बिका रामायण
(४५) अवधूत रामायण (४६) आचार्य रामायण
(४७) औसनस रामायण (४८) दुर्वासा रामायण
(४९) नन्दि रामायण (५०) ईश्वर रामायण
(५१) कपिल रामायण (५२) कलि रामायण
(५३) कालिका रामायण (५४) कुमार रामायण
(५५) गणेश रामायण (५६) गरुड़ रामायण
(५७) चम्पू रामायण (५८) जैन रामायण
(५९) जामवन्त रामायण (६०) नल रामायण
(६१) नील रामायण (६२) नाटक रामायण
(६३) नरसिंह रामायण (६४) पद्म रामायण
(६५) परासर रामायण (६६) बकदाल्भ्य रामायण
(६७) ब्रम्ह वैवर्तक रामायण (६८) ब्रम्हाण्ड रामायण
(६९) भविष्योत्तर रामायण (७० ) भागवत रामायण
(७१) भार्गव रामायण (७२) भारत रामायण
(७३) मैंद रामायण (७४) मरीचि रामायण
(७५) माहेश्वर रामायण (७८) मारुति रामायण
(७९) मुदगल रामायण (८०) लिंग रामायण
(८१) वरद रामायण (८२) वरुण रामायण
(८३) वायु रामायण (८४) विष्णु रामायण
(८५) श्रीरंग रामायण (८६) सनत्कुमार रामायण
(८७) सनकादि रामायण (८८) वामन रामायण
(८९) सुकन्द रामायण (९०) सूर्य रामायण
(९१) हरिवंशीय रामायण (९२) शैव रामायण
(९३) पंचरात्र रामायण (९४) हनुमन्त रामायण
(९७)महाकाली रामायण (९८) अग्नि रामायण
(९९) महाभारत रामायण (१००) शिव भवानी रामायण
(१०१) आत्म रामायण (१०२) संवृत रामायण
(१०३) किशोर रामायण (१०४) नरकुटक रामायण
(१०५) प्रसन्न राघव रामायण (१०६) राधेश्याम रामायण
(१०७) बरवै रामायण (१०८) अभिनव रामायण
लेखक राजेश्री डॉ. महन्त अपने महाग्रंथ 'श्रीराम संस्कृति की झलक ' में 'आत्म निवेदनम' के अंतर्गत लिखते हैं -
" छत्तीसगढ़ राज्य का यह सौभाग्य है कि इस पावन धरा को मर्यादा पुरुषोत्तम श्री राघवेन्द्र सरकार जी का ननिहाल होने का गौरव प्राप्त है ।इसीलिए इस क्षेत्र को कोसल प्रान्त के नाम से जाना जाता था ।छत्तीसगढ़ के निवासियों में यह भाव आज भी स्पष्ट देखा जा सकता है कि अपनी बहन की संतानों को भगवान श्रीरामजी के रूप में ही भांजा -भांजी मानकर पूजा जाता है ।"
राजेश्री डॉ .महन्त जी के इस महाग्रन्थ में 53 अध्याय हैं । इसके चौथे अध्याय में जहाँ श्री राम राज्य की विशेषताएं बतायी गयी हैं ,वहीं अध्याय 7 में भारत भूमि के महात्म्य और अध्याय 8 में प्रभु श्री राघवेन्द्र सरकार जी और रावण के युध्द का वर्णन है। इसके अलावा अध्याय 13 में छत्तीसगढ़ प्रदेश के विभिन्न व्रत ,उत्सवों और त्यौहारों में तथा लोगों के दैनिक जीवन में श्रीराम भक्ति की झलक दिखायी गयी है ।
अध्याय १४ से अध्याय ४६ तक (पृष्ठ ३२८ से ३७८ तक )छत्तीसगढ़ के प्राचीन और पुरातात्विक महत्व के मंदिरों सहित विगत कुछ दशकों में स्थापित मंदिरों की जिलेवार सूची उनमें से प्रत्येक मंदिर के प्रमुख विवरणों सहित प्रकाशित की गयी है ,जिनमें कहीं न कहीं ,किसी न किसी रूप में श्रीराम संस्कृति की झलक मिलती है । इनमें अधिकांश श्रीराम जी और हनुमानजी के मंदिर शामिल हैं । राजधानी रायपुर के ऐतिहासिक श्रीदूधाधारी मंदिर के बारे में उन्होंने लिखा है कि इसकी स्थापना का काल सम्वत १६१० माना जाता है। यह स्थान श्रीस्वामी बलभद्र दास जी द्वारा स्थापित है।
यह भी उल्लेखनीय है कि श्री दूधाधारी मंदिर न्यास ने छत्तीसगढ़ को शिक्षा के प्रकाश से आलोकित करने के लिए अपना सराहनीय योगदान दिया है। लेखक ने पुस्तक में जानकारी दी है कि इस मंदिर के तत्कालीन प्रमुख राजेश्री महंत वैष्णवदास ने रायपुर में वर्ष १९५५ में श्री दूधाधारी वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय और वर्ष १९५८ में श्री दूधाधारी बजरंगदास महिला महाविद्यालय और वर्ष १९५८ में ही अभनपुर में बजरंग दास उच्चतर माध्यमिक विद्यालय की स्थापना की थी। बजरंगदास जी उनके गुरु थे। रायपुर में श्रीदूधाधारी वैष्णव संस्कृत महाविद्यालय का शुभारंभ राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी की जयंती पर 2 अक्टूबर १९५५ को देश के प्रथम राष्ट्रपति डॉ. राजेन्द्र प्रसाद के हाथों हुआ था। महंत वैष्णव दास जी ने संस्कृत महाविद्यालय और महिला महाविद्यालय के सुचारू संचालन के लिए आर्थिक स्रोत के रूप में बलौदाबाजार और भाटापारा इलाके में पर्याप्त कृषि योग्य भूमि भी दान की गयी थी। उनके द्वारा बलौदाबाजार के विधि महाविद्यालय को भी आर्थिक दृष्टि से सक्षम बनाने के लिए पलारी के पास कृषि भूमि दान में दी गयी थी।
मेरे विचार से यह महाग्रन्थ छत्तीसगढ़ के सांस्कृतिक और आध्यात्मिक इतिहास का एक विशाल अभिलेख है ,जिसे अपने -आप में एक शोध -ग्रन्थ भी माना जा सकता है ।लेखक ने यह पुस्तक अपने गुरु राजेश्री महन्त वैष्णवदास जी को समर्पित की है । रामनवमी के दिन संवत २०७४ यानी ५अप्रेल सन् २०१७ ईस्वी को इसका प्रकाशन हुआ । इस महाग्रन्थ के रचनाकार राजेश्री डॉ.महन्त वर्ष २००८ से २०१३तक जांजगीर जिले के मालखरौदा से विधायक भी रह चुके हैं और वर्तमान में भी वह उस क्षेत्र के विधायक हैं ,लेकिन मूल रूप में उनका व्यक्तित्व राजनीतिक नहीं बल्कि आध्यात्मिक है । उन्होंने अपनी पुस्तक के माध्यम से छत्तीसगढ़ के आध्यात्मिक और सांस्कृतिक इतिहास को सामने लाने का सराहनीय प्रयास किया है ।
-स्वराज करुण
उपयोगी जानकारी।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteज्ञानवर्धक आलेख।
ReplyDeleteहार्दिक आभार ।
Deleteसुन्दर प्रस्तुति
ReplyDeleteबहुत -बहुत धन्यवाद ओंकार जी ।
Deleteहार्दिक आभार मीना जी ।
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